सहारनपुर:राजेश बचपन से सेना में भर्ती होने की तैयारी करते थे, जिसके चलते 18 साल की उम्र में राजेश बैरागी 1988 में सेना में भर्ती हो गए. राजेश बैरागी ने 11 साल के कार्यकाल में कई लड़ाई लड़ी और दुश्मनों के छक्के छुड़ाए. जिसके चलते उनका प्रमोशन लांस नायक के पद पर हो गया.
बचपन से सेना में भर्ती होने की तैयारी :
राजेश बचपन से सेना में भर्ती होने की तैयारी कर रहे थे. राजेश बैरागी ने 11 साल के कार्यकाल में कई लड़ाई लड़ी और दुश्मनों के छक्के छुड़ाए, जिसके चलते उनका प्रमोशन लांस नायक के पद पर हो गया.
दुश्मनों से युद्ध करते हुए शहीद :
31 साल की उम्र में राजेश बैरागी 7 जुलाई 1999 को पैराशूट रेजीमेंट में लांस नायक के पद पर रहते हुए दुश्मनों से युद्ध करते हुए शहीद हो गए. जैसे ही राजेश की शहादत की खबर गांव में पहुंची तो न सिर्फ परिवार में कोहराम था बल्कि पूरे इलाके में शोक की लहर थी.
शहीद के बूढ़े माता-पिता गरीबी में कर रहे जीवन-यापन. मां के लिए दी कुर्बानी और अब कैंसर से जूझ रही मां :
राजेश दुश्मनों से युद्ध में जिस भारत मां की रक्षा करते हुए शहीद हो गये. आज उसकी मां पैसे के अभाव में कैंसर के चलते देहरादून के एक अस्पताल में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही हैं. बावजूद इसके जिला प्रशासन की ओर उन्हें आर्थिक मदद तो दूर उनकी बुढ़ापे की पेंशन भी नहीं भेजी गई है.
कौन सुनेगा शहीद परिवार का दर्द :
शहीद राजेश अपने पीछे बूढ़े मां-बाप के साथ पत्नी और बच्चों को छोड़ गए. उनकी शहादत पर आए अधिकारियों और नेताओं की मौजूदगी में राष्ट्रीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया. प्रशासन ने अंत्येष्टि में पहुंचकर शहीद राजेश बैरागी के परिवार को सांत्वना देकर हर सभंव मदद का वादा किया था, लेकिन राजेश के शहादत के कुछ दिन बाद ही शहीद के परिवार को भूल गयी.
प्रशासन के झूठे वादे :
प्रशासन ने राजेश बैरागी की याद में गांव में सड़क मार्ग का नाम रखने, कस्बा गगोह में बस अड्डे पर शहीद की प्रतिमा लगाने और पक्का मकान बनाने का वादा किया था, लेकिन सरकार और अधिकारी सब भूल गए. इस वक्त शहीद के बूढ़े माता-पिता अपने छोटे-बेटे राकेश बैरागी के साथ गरीबी में जीवन जी रहे हैं.
एक साल से पेंशन का एक भी पैसा नहीं आया है. 90 साल की उम्र में अधिकारियों के चक्कर काटने को मजबूर हूं. राजेश की पत्नी अपने दोनों बच्चो के साथ हरियाणा के यमुनानगर में रह रही हैं.
-ताराचंद बैरागी, शहीद के पिता
कारगिल युद्ध के दौरान वह 20 दिन की छुट्टी पर आया हुआ था. राजेश 10 दिन ही घर रूका था कि बीच में ही कारगिल युद्ध छिड़ गया और उसको वापस जाना पड़ा. पूरा परिवार उसे रोकता रहा, लेकिन राजेश ने देश सेवा को अपना कर्तव्य बताकर किसी की नहीं सुनी. घर से जाने के 10 दिन बाद ही उसकी शहादत की खबर आई.
-राकेश बैरागी, शहीद के भाई