रामपुर: नवाबों के शहर रामपुर ने पिछले कुछ सालों में ऐतिहासिकता से आधुनिकता का सफर तय किया है. यह वह ऐतिहासिक शहर है, जहां आजादी से पहले कभी नवाबों ने राज किया था. उन्होंने लंबे समय तक शहर की धरोहर, सभ्यता और इतिहास का संरक्षण किया. उनमें से एक धरोहर है 'महात्मा गांधी' की समाधि.
राजघाट के अलावा रामपुर में भी है गांधी की समाधि
यह बात शायद ही लोगों को पता हो कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि दिल्ली स्थित राजघाट के अलावा रामपुर में भी है. 30 जनवरी 1948 को दुनिया का गौरव रहे महात्मा गांधी की प्रार्थना सभा में शामिल नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर हत्या कर दी. बापू की अंत्येष्ठि के बाद अस्थि विसर्जन को लेकर दिल्ली में ये बहस छिड़ी कि महात्मा गांधी हिंदू हैं. इसलिए उनकी अस्थि विसर्जन की क्रिया हिंदू ही करेंगे.
बापू की अस्थि विसर्जन का कार्य रामपुर के आखिरी नवाब रजा अली खान भी करना चाहते थे, लेकिन बापू की अस्थियां किसी नवाब या मुस्लिम को देना जायज नहीं था. इसके बाद दिल्ली में नवाब रजा अली खान और दरबारी पंडित, विद्वानों के साथ बैठक हुई. बैठक में साफ हुआ कि बापू की अस्थियां नवाब रजा अली खान को दी जा सकती हैं.
नवाब रजा अली खान ने दफनाई थीं बापू की अस्थियां
11 फरवरी 1948 को स्पेशल ट्रेन के जरिए बापू की अस्थियों को नवाब रजा अली खान बापू के परिवार से लेकर रामपुर आये थे. उन्होंने अस्थियों का कुछ हिस्सा कोसी नदी में विसर्जित कर दिया. शेष अस्थियों को चांदी के कलश में रखकर दफनाया गया और वहीं बनाई गई महात्मा गांधी की समाधि.
आजम खान ने करवाया था गांधी समाधि का सौंदर्यीकरण
दिल्ली के बाद सिर्फ रामपुर ही ऐसा शहर है, जहां गांधी समाधि है. समय के साथ इसका सौंदर्यीकरण करायाा गया. सपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे आजम खां ने करीब 14 करोड़ की लागत से गांधी समाधि का सौंदर्यीकरण करवाया था. इसकी बदौलत वर्तमान में गांधी समाधि दर्शनीय स्थल बन गई है.