प्रयागराज: प्रयाग को यज्ञ और तपस्या की भूमि कहा जाता है. यह हमेशा से देवों, ऋषि, मुनियों के यज्ञ के लिए सर्वोत्तम स्थान रहा रहा है. दारागंज के पूर्वी हिस्से पर गंगा के किनारे पर दशाश्वमेध मंदिर स्थित है. इस पवित्र स्थल को ब्रह्मा जी का शाश्वत स्थान बताया गया है. पुराणों में वर्णित है यहां पर दो शिवलिंग स्थित हैं. श्रावण मास के दौरान जल अर्पण करने, रुद्राभिषेक, जप-तप के लिए यहां तीर्थ यात्रियों का आना-जाना लगा रहता है.
दशाश्वमेध मंदिर की कहानी. दशाश्वमेध मंदिर की कहानी -
दारागंज के पूर्वी हिस्से पर गंगा के किनारे पर स्थित ब्रह्मकुंड जिसे ब्रह्मा जी ने बनाया था. पुराणों में वर्णित है यहाँ पर दो शिवलिंग स्थित है. एक शिवलिंग को ब्रह्मा जी ने स्थापित किया था इस लिए इसे ब्रह्मेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है और दूसरा दशाश्वमेध महादेव के नाम से जाना जाता है. मान्यता यह है कि यहां घाट पर जल कभी सूखता नहीं है.
श्री पद्म पुराण केसरी व प्रयाग महात्म्य अध्याय के 63 वें अध्याय में इस ब्रह्मकुंड का वर्णन करते हुए लिखा गया है कि यहां स्नान, दान, जप, पूजन आदि शुभ कर्मों के संपादन से मनुष्य ब्रह्म लोक को प्राप्त कर सकता है. प्रयागराज में स्थित दशाश्वमेध घाट, जो तीनों लोकों में विख्यात है इस स्थल की पवित्रता व महत्ता के चलते यहां दशाश्वमेध यज्ञ श्री माधव को प्रसन्न करने के लिए किया गया था. ऐसा कहा जाता है कि यहां यज्ञ करने से जो फल प्राप्त होता है वह अन्यत्र कहीं नही मिलता.
दशाश्वमेध घाट पर श्रावण मास में स्नान कर मंदिर में जल का अभिषेक करने पर विशेष फल मिलता है. पुराणों में वर्णित है कि जो श्रद्धालु संगम में स्नान करके ही लौट जाता है और दशाश्वमेध घाट पर स्नान नहीं करता तो उसे प्रयाग तीर्थ यात्रा का पूर्ण फल नहीं प्राप्त होता है.
वैसे तो सालभर यहां पर स्थित शिवलिंग के दर्शन को वर्ष भर श्रद्धालु आते हैं. लेकिन श्रावण मास में यहां देश के कोने-कोने से इस पवित्र स्थल के दर्शन पूजन के लिए लोग आते हैं. कांवड़िये दशाश्वमेध घाट पर गंगा स्नान कर भगवान को जल का अभिषेक करने के बाद ही अपनी कावड़ यात्रा की शुरुआत करते हैं
- हरिशंकर पुजारी, स्थानीय निवासी