उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

630 किलो गांजा के साथ पकड़े गए आरोपियों की सज़ा इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रद्द की

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 630 किलो गांजा के आरोपियों को विशेष न्यायालय इलाहाबाद द्वारा सुनाई गई सजा रद्द करते हुए उन्हें बरी कर दिया. कोर्ट ने कहा कि इंटेलिजेंस अधिकारी के समक्ष अपराध स्वीकार करने के बयान को साक्ष्य नहीं माना जा सकता.

By

Published : Mar 1, 2021, 11:05 PM IST

इलाहाबाद हाई कोर्ट
इलाहाबाद हाई कोर्ट

प्रयागराज : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 630 किलो गांजा के आरोपियों को विशेष न्यायालय इलाहाबाद द्वारा सुनाई गई सजा रद्द करते हुए उन्हें बरी कर दिया. कोर्ट ने कहा कि इंटेलिजेंस अधिकारी के समक्ष अपराध स्वीकार करने के बयान को साक्ष्य नहीं माना जा सकता. गांजा बरामदगी व सैंपल जांच के लिए भेजने में धारा 52 ए नारकोटिक्स एक्ट की प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया. स्वतंत्र गवाह भी पेश नहीं किए गए. विचारण न्यायालय बिना साक्ष्यों पर विचार किए बगैर पुलिस के सामने अपराध स्वीकार करने के आधार पर सजा सुनाई, जो सुप्रीम कोर्ट के तूफान सिंह केस के विधि सिद्धांत के विपरीत है. यह फैसला न्यायमूर्ति अजित कुमार ने नजीबाबाद आजमगढ़ निवासी विजय कुमार उर्फ प्यारे लाल व विनोद कुमार की सजा के खिलाफ अपील को स्वीकार करते हुए दिया. अपील पर वरिष्ठ अधिवक्ता डी एस मिश्र व चंद्रकेश मिश्र ने बहस की.

इनका कहना था कि नारकोटिक्स विभाग वाराणसी के इंटेलिजेंस अधिकारी कौशल कान्त मिश्र सूचना पर टीम लेकर इलाहाबाद की ट्रांसपोर्ट कंपनी पर छापा मारा. कंपनी के दो कर्मचारियों की गवाह बनने की सहमति लेकर 20 प्लाई बॉक्स बरामद किया, जिसमें 630 किलो गांजा भरा था. बॉक्स के पास खडे़ विजय कुमार के गांजा विनोद कुमार के लिए लेने आए हैं, के बयान पर माल जब्त किया और 25 ग्राम को दो सेट सैंपल लेकर दिल्ली जांच को भेजा. इसके दो दिनों बाद जूट बैग में भरकर सील कर वाराणसी मालखाने में जमा कर दिया. चार्जशीट के बाद विशेष न्यायालय ने आरोपियों को सजा सुनाई, जिसे अपील में चुनौती दी गई थी.

अधिवक्ता का कहना था कि स्वतंत्र गवाह व जब्त माल कोर्ट में पेश नहीं किए गए. सैंपल के वजन में भारी अंतर पाया गया. सूख जाने का तर्क संदेहास्पद है. बैग को सील करने का गवाह भी पेश नहीं किया. पुलिस के सामने अपराध स्वीकार करने के बयान को आधार मानकर सजा सुना दी गई. जबकि ऐसे बयान साक्ष्य में स्वीकार्य नहीं हैं. फोन कॉल्स पीसीओ की है, स्पष्ट नहीं है. अधिनियम की धारा 52 ए का पालन नहीं किया गया. बिना साक्ष्य के दोषी करार दिया गया जो कि विधि विरूद्ध होने के करण रद्द होने योग्य है.

इसे भी पढ़ें -कोरोना गाइडलाइन्स का पालन करना अब भी है जरुरी : हाईकोर्ट

ABOUT THE AUTHOR

...view details