प्रयागराज :इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि मेडिकल जांच प्रक्रिया पूरी किए बगैर कैदी को अपराध की घटना के दिन नाबालिग करार देना गलत है. कोर्ट ने कहा कि किशोर न्याय बोर्ड ने रेडियोलॉजी जांच के आधार पर कैदी की आयु निर्धारित कर कानूनी गलती की है. ओसीफिकेशन जांच के बाद भी निश्चित आयु निर्धारित नहीं की जा सकती तो अधूरी जांच के आधार पर कैदी को नाबालिग मान लेना सही नहीं है.
कोर्ट ने आगरा जेल में अपराध की सजा काट रहे कैदी के नाबालिग होने की किशोर न्याय बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर अवैध निरूद्धि मानने से इनकार कर दिया और नाबालिग की रिहाई की मांग को लेकर दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज कर दी. यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति पी के श्रीवास्तव की खंडपीठ ने किरण पाल उर्फ किन्ना की याचिका पर दिया.
मालूम हो कि याची सहित 13 लोगों के खिलाफ हत्या, हत्या के प्रयास, मारपीट के आरोप में खानपुर थाने में 26 मार्च 2000 को एफआईआर दर्ज करायी गयी. सत्र न्यायालय ने आजीवन कारावास सहित अन्य सजा सुनाया. हाईकोर्ट ने भी सजा की पुष्टि कर 27 मई 2013 को अपील खारिज कर दी. याची सजा भुगत रहा है. उसकी मां ने 21 मई 2018 को बोर्ड को अर्जी दी और कहा कि घटना के दिन याची नाबालिग था. मेडिकल जांच कराकर आयु निर्धारित की जाये और न्याय दिलाया जाये. किशोर न्याय बोर्ड बुलंदशहर ने रेडियोलॉजी जांच करायी और 19 सितंबर 18 को रिपोर्ट आयी कि याची की उम्र घटना के दिन 17 साल 9 माह 25 दिन थी. इसी को आधार मानते हुए नाबालिग की जेल में निरूद्धि को अवैध बताते हुए रिहाई की मांग में याचिका दाखिल की गयी. कहा गया कि नाबालिग को लंबे समय तक जेल में रखना अनुच्छेद 21 के तहत मिले जीवन के मूल अधिकारों का हनन है.
हाईकोर्ट ने कहा कि आयु निर्धारित करने में बोर्ड ने विहित कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया. सारे टेस्ट नहीं कराये गये. केवल रेडियोलॉजी जांच रिपोर्ट पर नाबालिग ठहराना गलत है. इसलिए जेल में निरूद्धि अवैध नहीं है. वह कोर्ट से सुनायी गयी सजा भुगत रहा है.
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