प्रयागराज:इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के बाद 14 वर्ष की बालिग की जलाकर हत्या के आरोपी की फांसी की सजा रद्द कर दी है. कोर्ट ने कहा कि पाक्सो एक्ट के तहत स्वीकार्य आधार भूत सबूतों के बगैर मात्र इस अवधारणा पर सजा नहीं दी जा सकती कि अभियुक्त स्वयं को निर्दोष साबित करने में नाकाम रहा है. कोर्ट ने कहा कि निश्चित तौर पर अभियुक्त पर स्वयं को निर्दोष साबित करने का भार होता है, उसे साबित करना चाहिए, किन्तु अभियोजन को उसके अपराध में लिप्त होने का प्रथमदृष्टया पर्याप्त तथ्य और आधार भूत साक्ष्य होना चाहिए.
संदेह से परे अपराध साबित करना अभियोजन का दायित्व है. केवल अभियुक्त अपने को निर्दोष साबित नहीं कर सका. इसकी अवधारणा पर सजा नहीं सुनाई जा सकती. कोर्ट ने आरोपों से मुक्त करते हुए फांसी और आजीवन कैद और जुर्माने की सजाएं रद्द कर दी है और उसे तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज मिश्र तथा न्यायमूर्ति समीर जैन की खंडपीठ ने मानू ठाकुर की अपील को स्वीकार करते हुए दिया है.
कोर्ट ने कहा कि अभियोजन ने पीड़िता के मृत्युकालिक बयान को साबित करने के लिए मजिस्ट्रेट और डाक्टर का बयान नहीं लिया और न ही फोरेंसिक और डीएनए जांच करायी. ट्रायल कोर्ट में पीड़िता का बयान दर्ज करने वाले मजिस्ट्रेट को सम्मन करने की अर्जी भी नहीं दी. कोर्ट ने कहा कि अधीनस्थ अदालतों ने सबूतों को समझने में गलती की.
आरोप साबित किए बगैर इस आधार पर सजा सुना दी कि आरोपी अपने को निर्दोष साबित नहीं कर सका. अभियोजन का कहना था कि पीड़िता अपनी नानी के घर में थी. आरोपी ने घर में आकर छेड़छाड़ की. दुराचार कर मिट्टी तेल डालकर आग लगा दी. गंभीर अवस्था में अस्पताल में भर्ती कराया गया. 20 दिन बाद उसकी मौत हो गई, जिसकी एफआईआर हाथरस के सिकंदर राव थाने में दर्ज कराई गई.