प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि आपराधिक केस कार्रवाई पर अपवाद स्वरूप सीमित दायरे में हस्तक्षेप किया जा सकता है. कोर्ट देखेगी कि अपराध हुआ है या नहीं, कार्रवाई दुर्भाग्यपूर्ण तो नहीं, अपराध की सजा के लिए प्रथम दृष्टया साक्ष्य है या नहीं और आपराधिक कार्रवाई का उद्देश्य पूरा होगा या नहीं.
कोर्ट ने कहा कि अंतर्निहित शक्तियों के इस्तेमाल का हाईकोर्ट को व्यापक अधिकार है, लेकिन इस्तेमाल न्याय हित में सावधानी पूर्वक किया जाना चाहिए. कोर्ट ने गोवध निरोधक कानून के तहत दाखिल चार्जशीट, संज्ञान लेकर सम्मन जारी करने तथा प्रथमदृष्टया अपराध बनने के आधार पर दर्ज आपराधिक केस में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है और याचिका खारिज कर दी है.
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यह आदेश न्यायमूर्ति शमीम अहमद ने इमामुद्दीन और दो अन्य की याचिका पर दिया है. याचियों के खिलाफ एफसीजेएम अमरोहा की अदालत में आपराधिक केस चल रहा है, जिसे चुनौती दी गई थी. याचियों का कहना था कि गांव से छूरी, चाकू बरामद किया गया है और 10 किलो संदिग्ध मांस की बरामदगी दिखाई गई है, लेकिन अभी तक फोरेंसिक जांच रिपोर्ट नहीं आयी है. पुलिस ने चार्जशीट दाखिल कर दी है. साक्ष्यों के आधार पर याचियों के खिलाफ केस नहीं बनता, इसलिए आपराधिक केस कार्रवाई रद्द की जाए.
सरकारी वकील का कहना था कि पुलिस टीम अंबरपुर चौराहे पर थी तो सूचना मिली कि सिरसा खुमार के खेत में कुछ लोग गाय काटने जा रहे हैं. मौके पर पुलिस टीम ने मांस सहित अन्य सामान बरामद किया और गिरफ्तारी की. सैंपल फोरेंसिक जांच के लिए भेजा गया है. पुलिस ने साक्ष्य के आधार पर चार्जशीट दाखिल की है और आपराधिक केस बनता है. हालांकि दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने हस्तक्षेप से इंकार कर दिया है.