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शब-ए-बारात पर पुरुखों की कब्रोंं पर किया गया चिरागां

मुस्लिम समुदाय में शब-ए-बारात की काफी अहमियत है. इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से आठवां यानी शाबान के महीने की 15वीं तारीख की रात में शब-ए-बारात मनाई जाती है. प्रयागराज के साथ ही देशभर में 28 अप्रैल को शब ए बारात मनाई गई. इस रात में मुस्लिम समुदाय के लोग पुरखों की कब्रों पर जाकर मोमबत्ती, अगरबत्ती जलाकर उनके लिए दुआ मांगते हैं.

पुरखों की कब्र पर चिरागां करते लोग.
पुरखों की कब्र पर चिरागां करते लोग.

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Published : Mar 29, 2021, 4:41 AM IST

प्रयागराज: मुस्लिम समुदाय में शब-ए-बारात की काफी अहमियत है. इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से आठवां यानी शाबान के महीने की 15वीं तारीख की रात में शब-ए-बारात मनाई जाती है. प्रयागराज के साथ ही देशभर में 28 अप्रैल को शब ए बारात मनाई गई. इस रात में मुस्लिम समुदाय के लोग पुरखों की कब्रों पर जाकर मोमबत्ती, अगरबत्ती जलाकर उनके लिए दुआ मांगते हैं. पुरखों की कब्रों पर जाने के लिए लोगों का रातभर मजमा लगा रहता है. यह रात पूरे साल के गुनाहों से तौबा की रात होती है.

शब-ए-बारात पर पुरुखों की कब्रोंं पर किया गया चिरागां.

प्रयागराज में शाम से ही कब्रिस्तानों पर हर कोई अपने पुरखों की कब्रों पर हाजरी लगाने के लिए चल पड़ा. उम्मुल बनीन सोसाइटी के महासचिव सै मो अस्करी के मुताबिक़ कोरोना के बढ़ते मरीज़ो के दृष्टिगत लोगों ने मास्क लगा कर ही कब्रिस्तानों में प्रवेश किया. मज़ारों और दरगाहों पर फातेहा पढ़ने के लिए भी लोग गए.

माता-पिता के लिए दुआ करता एक परिवार.
गरीबों को खिलाया गया खानाशब ए बारात पर घरों में सूजी का हलवा और लज़ीज़ पकवान बनाए. इसके बाद फातेहा दिलाकर ग़रीबों, मिस्कीनों खिलाया गया. कब्रिस्तानों के बाहर कब्रिस्तान कमेटी और तनज़ीमों की ओर से सैनिटाइजर और मास्क की व्यवस्था की गई थी. शब ए बारात पर शहर के दरियाबाद, काला दाड़ा करेली, काला दाड़ा हिम्मतगंज, कीडगंज, राजापुर कब्रिस्तानों में रातभर मुस्लिम समुदाय के लोग पहुंचते रहे.

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आने वाले साल की तकदीर तय करने वाली रात होती है येअस्करी कहते हैं कि यह रात पिछले एक साल में किए गए कर्मों का लेखा-जोखा तैयार करने और आने वाले साल की तकदीर तय करने वाली रात होती है. इस रात में पूरे साल के गुनाहों का हिसाब-किताब किया जाता है और लोगों की किस्मत का फैसला भी होता है. इसीलिए लोग रात भर जागकर अपने गुनाहों से तौबा करते हैं और दुनिया से जा चुके अपने बुजुर्गों की मगफिरत के लिए दुआ मांगते हैं. यही वजह है कि लोग इस मौके पर कब्रिस्तान भी जाते हैं. लोग पुरखों की कब्रगाहों अगरबत्ती, मोमबत्ती जलाकर चिरागा करते हुए उनके लिए दुआ करते है.

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शब-ए-बारात के अगले दिन रखते है रोजा
मुस्लिम समुदाय शब-ए-बारात के अगले दिन रोजा रखता है. यह रोजा फर्ज नहीं है, बल्कि इस्लाम में नफिल रोजा कहा जाता है. माना जाता है कि शब-ए-बारात के अगले दिन रोजा रखने से इंसान के पिछली शब-ए-बारात से इस शब-ए-बारात तक के सभी गुनाह माफ कर दिए जाते हैं. हालांकि, मुसलमानों में कुछ का मत है कि शब-ए-बारात पर एक नहीं, बल्कि दो रोजे रखने चाहिए. पहला शब-ए-बारात के दिन और दूसरा अगले दिन.

सलामती के लिए करें दुआ
शहर मुफ्ती कारी शफ़ीक़ अहमद सरिफी के अनुसार शब-ए-बारात इबादत की रात है. इस दिन सभी अपने घरों में ही रहकर इबादत करें. सभी कोरोना महामारी के खात्मे के लिए और पूरे मुल्क व दुनिया की सलामती के लिए दुआ करें.

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