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वकालत के लिए सीओपी की बाध्यता के खिलाफ दायर याचिका पर बार काउंसिल से जवाब तलब

इलाहाबाद हाइकोर्ट (Allahabad High Court ) ने कहा कि वकालत के अधिकार पर सीओपी जैसे प्रतिबंध नहीं लगाए जा सकते. इसके अलावा बार काउंसिल की ओर से जारी किए गए नामांकन प्रमाण पत्र किसी व्यक्ति को अधिवक्ता के रूप में नामांकित करते समय कोई समय सीमा निर्दिष्ट नहीं की गई है.

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Published : Oct 26, 2022, 10:24 PM IST

प्रयागराजःइलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने वकालत के लिए सर्टिफिकेट ऑफ प्रैक्टिस (सीओपी) की बाध्यता को चुनौती वाली जनहित याचिका पर बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया और यूपी बार काउंसिल से जवाब मांगा है.

यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल एवं न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की खंडपीठ ने रत्नेश मिश्र की जनहित याचिका पर अधिवक्ता रविनाथ तिवारी को सुनकर दिया है. कोर्ट ने मामले में जवाब के लिए समय देते हुए अगली सुनवाई के लिए याचिका को 16 दिसंबर को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है. याचिका में कहा गया है कि द सर्टिफिकेट एंड प्लेस ऑफ प्रैक्टिस रूल्स 2015 के कुछ उपबंध एडवोकेट एक्ट-1961 के विरुद्ध हैं इसलिए इसे अल्ट्रा वायरस घोषित किया जाना चाहिए.

कहा गया है कि अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 30 के मद्देनजर वकालत के अधिकार पर सीओपी जैसे प्रतिबंध नहीं लगाए जा सकते. इसके अलावा बार काउंसिल की ओर से जारी किए गए नामांकन प्रमाण पत्र किसी व्यक्ति को अधिवक्ता के रूप में नामांकित करते समय कोई समयसीमा निर्दिष्ट नहीं की गई है. जिसके लिए प्रमाण पत्र मान्य है. ऐसे में सीओपी नियमों द्वारा ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है.

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