प्रयागराज:इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खरीदारों को फ्लैट समय से उपलब्ध न करा पाने की स्थिति में रियल एस्टेट रेग्युलेटरी अथॉरिटी (रेरा) की हस्तक्षेप करने की अधिकारिता की चुनौती याचिका खारिज कर दी है. कोर्ट ने कहा है कि प्रमोटर ने भवन के विकास कार्य पूरे किए बगैर ही पूर्णता का प्रमाणपत्र पाने के लिए आवेदन कर दिया. इतना करने मात्र से वह रेरा की अधिकारिता से बाहर नहीं हो जाता है.
कोर्ट ने रेरा द्वारा प्रमोटर को 60 दिन में क्रेताओं को कब्जा सौंपने और विलंब अवधि का ब्याज अदा करने के आदेश को सही करार दिया है. यह आदेश न्यायाधीश एसपी केसरवानी और न्यायाधीश डा. वाई के श्रीवास्तव की खंडपीठ ने पैरामाउंट प्रोप बिल्ड प्राइवेट लिमिटेड गौतम बुद्ध नगर की याचिका पर दिया है.
याची कंपनी ने पैरामाउंट गोल्फ फॉरेस्ट नाम से प्रोजेक्ट की शुरुआत की. उसने क्रेताओं को 10 अगस्त 2011 को फ्लैट आवंटन पत्र जारी कर दिया. प्रोजेक्ट तय समय पर पूरा नहीं हो पाया तो 50 से अधिक क्रेताओं ने रेरा में शिकायत दर्ज करा दी.
रेरा ने पाया कि प्रोजेक्ट पूरा करने में चार वर्ष से अधिक का विलंब हुआ है. उपलब्ध दस्तावेजी साक्ष्यों के अलावा तकनीकी विशेषज्ञों से भौतिक निरीक्षण कराकर उनकी रिपोर्ट के आधार पर रेरा ने प्रमोटर को 60 दिन में कब्जा सौंपने और विलंब के लिए क्रेताओं को ब्याज देने का निर्देश दिया.
इस आदेश को यह कहते हुए चुनौती दी गई कि याची का प्रोजेक्ट अपूर्ण प्रोजेक्ट नहीं है. याची प्राधिकारी के समक्ष पूर्णता प्रमाणपत्र जारी करने के लिए आवेदन कर चुका है. इसलिए वह रेरा अधिनियम 2016 की धारा 2(एच) की परिधि में नहीं आता है. ऐसी स्थिति में रेरा को उसके खिलाफ शिकायत सुनने का क्षेत्राधिकार नहीं है. धारा 2(एच) में प्रावधान है कि अधिनियम लागू होने के समय जो बिल्डिंग प्रोजेक्ट अपूर्ण हैं, उनको भी रेरा के तहत पंजीकरण कराना होगा और वह अधिनियम के दायरे में होंगे.
कोर्ट ने कहा कि रेरा ने भौतिक सत्यापन में पाया है कि प्रोजेक्ट का काम अभी भी पूरा नहीं हुआ है और सभी आवश्यक सेवाएं उपलब्ध नहीं कराई जा सकी हैं. अग्निशमन सहित कई विभागों से एनओसी लेने का कार्य भी पूरा नहीं हुआ है. ऐसे में इसे ऑन गोइंग प्रोजेक्ट मानना सही है. कोर्ट ने कहा कि इस स्थिति में प्रोजेक्ट को धारा 2(एच) की परिधि से बाहर नहीं माना जा सकता है. रेरा को सुनवाई का क्षेत्राधिकार है और उसके आदेश में कोई अवैधानिकता नहीं है.