प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग की 18 जातियों को अनुसूचित (एससी) वर्ग की कैटेगरी में शामिल करने के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने इस मामले में यूपी सरकार की ओर से जारी नोटिफिकेशन रद्द कर दिया है. इसके साथ ही हाईकोर्ट ने इस मामले में तल्ख टिप्पणी की है. हाईकोर्ट ने कहा है कि संवैधानिक अधिकार न होने के बाद भी यूपी में राजनीतिक लाभ के लिए अनुसूचित जातियों की सूची में बार-बार फेरबदल किया जा रहा है. अनुसूचित वर्ग की सूची में बदलाव का अधिकार केवल देश की संसद को है. केंद्र और राज्य सरकारों को नहीं है.
कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत अनुसूचित वर्ग की सूची में बदलाव का अधिकार केवल देश की संसद को है. केंद्र व राज्य सरकारों को इस सूची में बदलाव का कोई अधिकार संविधान ने नहीं दिया है. एक खास बात यह भी कि राज्य सरकार ने कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर यह कहा है कि उसके पास यह अधिसूचना जारी रखने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है. सरकार की ओर से पेश इस दलील के आधार पर ही कोर्ट ने याचिकाएं मंजूर कर लीं. यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की खंडपीठ ने गोरखपुर की डॉ. भीमराव अंबेडकर ग्रंथालय एवं जन कल्याण समिति की दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के बाद दिया है.
कोर्ट ने इन सभी अधिसूचनाओं के अमल पर पहले ही रोक लगा रखी थी. अखिलेश यादव और योगी सरकार ने अपने कार्यकाल में दो-दो अधिसूचनाएं जारी कर प्रदेश में 18 ओबीसी जातियों को अनुसूचित वर्ग में शामिल करने की बात कही थी. अखिलेश यादव सरकार ने 21 और 22 दिसंबर 2016 को प्रदेश विधानसभा के चुनाव से ठीक पहले दो अधिसूचनाएं जारी कर 18 ओबीसी जातियों को अनुसूचित वर्ग में शिफ्ट करने की बात कही थी. कोर्ट ने याचिकाओं की प्रमुख मांग मंजूर करते हुए सभी अधिसूचनाएं रद्द कर दीं.