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हिंदी दिवस 2020: वर्चुअल गोष्ठी में हिंदी को लेकर हुई चर्चा, अधिवक्ताओं ने रखे विचार

हिंदी दिवस के अवसर पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के कई अधिवक्ताओं ने वर्चुअल गोष्ठी के जरिए हिंदी भाषा पर अपना मत रखा. वरिष्ठ अधिवक्ता प्रदीप कुमार ने हिंदी को व्यावहारिक जीवन में उतारने का संकल्प लेने की बात कही. वहीं सेंटर फॉर कॉन्स्टीट्यूशनल एण्ड सोशल रिफॉर्म के राष्ट्रीय अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता एएन त्रिपाठी ने भारत में हिंदी दिवस मनाने को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया.

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Published : Sep 14, 2020, 10:56 PM IST

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लाहाबाद उच्च न्यायालय की हिंदी समिति ने मनाया हिंदी दिवस.

प्रयागराज:14 सितंबर को देश भर में हिंदी दिवस मनाया गया. इस मौके परइलाहाबाद उच्च न्यायालय की हिंदी समिति ने कोविड-19 के कारण वर्चुअल गोष्ठी आयोजित की. हिंदी को सम्मान दिलाने के आंदोलन में अग्रणी रहे वरिष्ठ अधिवक्ता एवं इटावा हिंदी सेवा निधि के महासचिव प्रदीप कुमार ने कहा कि, हिंदी मात्र एक भाषा नहीं, बल्कि सांस्कृतिक चेतना का संवाहक भी है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हिंदी को व्यावहारिक जीवन में उपयोग में लाने का संकल्प लिया जाए.

प्रदीप कुमार ने कहा वरिष्ठ अधिवक्ता पं. दयाशंकर मिश्रा ने उच्च न्यायालय में हिंदी में याचिकायें दाखिल कर मील का पत्थर स्थापित किया है. उन्होंने कहा कि जब तक भारत के सभी राज्य हिंदी को अपने राज्य की राजभाषा मानने का प्रस्ताव पारित करके नहीं भेजते हैं, तब तक हिंदी को राष्ट्र भाषा का स्थान नहीं मिल सकेगा.

समिति के महासचिव एच. एल. पाण्डेय ने कहा कि हिंदी का उद्गम स्थल भारत है. साहित्य, ज्ञान, विज्ञान, प्रशासन और न्याय की भाषा जब तक हिंदी नहीं बनती है, तब तक सब बेमानी है. उन्होंने बताया कि पहला हिंदी दिवस 1953 में मनाया गया था. वहीं हिंदी विधि पत्रकारिता में विशेष महत्व रखने वाले कृष्ण जी शुक्ल ने बताया कि सत्ता हस्तांतरण में भाषा का भी हाथ होता है. पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व विदेशमंत्री स्व. सुषमा स्वराज और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विश्व पटल पर हिंदी में संवाद करके हिंदी को विश्व की आधिकारिक भाषा बनाने का प्रयास किया है.

संविधान निर्माताओं की भूल से हिंदी की हो रही दुर्दशा-ए. एन त्रिपाठी

सेंटर फॉर कॉन्स्टीट्यूशनल एण्ड सोशल रिफॉर्म के राष्ट्रीय अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता एएन त्रिपाठी ने भारत में हिंदी दिवस मनाने को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है. उन्होंने कहा कि हमारे संविधान निर्माताओं की पांच भूलों के कारण आज हिंदी अपने ही देश में बेगानी बन गयी है. भले ही हिंदी राजकाज की भाषा न बन पाई हो, लेकिन भारतीय सिनेमा व सोशल मीडिया ने हिंदी को विश्व भाषा बनने की तरफ मोड़ दिया है.

एडवोकेट त्रिपाठी ने कहा कि संविधान निर्माताओं ने हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा न देकर बड़ी भूल की. संविधान के अनुच्छेद 343 में हिंदी नागरी लिपि को मान्यता दी गई, लेकिन बार-बार अंग्रेजी को सरकारी कामकाज की भाषा घोषित कर भूल की गई है. त्रिपाठी ने कहा कि अनुच्छेद 348 में सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट की भाषा अंग्रेजी रखने की स्वीकृति दी गयी है. यहां भी संसद को भाषा पर निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है. जो बड़ी भूल है.

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