मिर्जापुर :गोस्वामी तुलसीदास की लिखी रामचरितमानस से आप सभी जरूर वाकिफ होंगे. मिर्जापुर में भी रामचरितमानस की एक खास पुस्तक मौजूद है. 225 साल पहले इसे बलिया जिले के बसंतपुर गांव के आत्माराम कायस्थ ने लिखा था. यह हस्तलिखित है. इसमें बालकांड से लेकर उत्तरकांड तक के कथाओं का समावेश है जबकि अन्य प्रकाशित किसी भी मानस में ऐसा नहीं है. मिर्जापुर के एक शख्स इसे बलिया से खरीद कर लाए थे. दावा है कि इस पुस्तक में कई रंगीन तस्वीरें हैं, जब ये पुस्तक लिखी गई, उस दौर में रंगीन छपाई भी नहीं होती थी. लिखावट काली स्याही से की गई है. छंद अलग करने के लिए लाल स्याही का भी प्रयोग किया गया है. इसे पांडुलिपि के विद्वान उदय शंकर दुबे ने आज भी सहेज कर रखा है.
रंगीन छपाई से पहले का है रामचरितमानस :उदय शंकर दुबे का दावा है कि देश में 19वीं सदी के शुरुआती दौर में साहित्य को रंगीन चित्रों के साथ संवारने की कोशिश चल रही थी. कलर पर्दे पर फिल्मों को भी उतारने का प्रयास किया जा रहा था. सफलता 1901 में मिली जब मुंबई के एक प्रेस से रंगीन पुस्तकों की पहली खेप निकली. उसकी सबसे ज्यादा मांग रही. यह पुस्तक रंगीन छपाई वाली गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित मानस थी.भदोही जनपद से सटे मिर्जापुर के करडुआ गांव में रंगीन छपाई के पहले की रामचरितमानस आज भी मौजूद है.
देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं लोग :उदय शंकर दुबे का कहना है कि लिखावट काली स्याही से एक जैसी की गई है. छंद अलग करने के लिए लाल स्याही का भी प्रयोग हुआ है. कुछ जगहों पर कलर फोटो भी लगाए गए हैं. प्रकाशित न होने के कारण यह लोगों तक नहीं पहुंच पाई .इस रामचरितमानस को आज भी सहेज कर उन्होंने अपने पास रखा है. इस रामचरितमानस को देखने और पढ़ने के लिए आज भी दूर-दूर से लोग आते हैं.
चार किलो से ज्यादा है वजन :उदय शंकर दुबे ने बताया कि 18वीं और 19वीं सदी में रामचरितमानस की प्रतिलिपि तैयार करने के लिए राजाओं और महाराजा स्वर्ण मुद्राएं भेंट किया करते थे. बलिया जनपद के बसंतपुर गांव के रहने वाले मंसाराम के बेटे भगतराम को पढ़ाने के लिए भृगु आश्रमवासी रामप्रसाद कायस्थ के बेटे आत्माराम कायस्थ ने इस रामचरितमानस को तैयार किया था. 4 किलो से ज्यादा इस रामचरितमानस का वजन है. इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें बालकांड से लेकर उत्तरकांड तक की विविध कथाओं का समावेश है. यह अब तक छप चुकी किसी पुस्तक में नहीं है.