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अनोखा हल्तलिखित रंगीन रामचरित मानस, 225 साल पहले लिखा गया, खासियत जान रह जाएंगे हैरान - हस्तलिखित रंगीन रामचरित मानस पुस्तक

मिर्जापुर में एक अनोखे रामचरित मानस (Mirzapur Unique Ramcharit Manas) की पुस्तक है. जब कलर छपाई नहीं होती थी, इस दौर में ये पुस्तक लिखी गई थी. लिखावट के अलावा इसमें रंगीन तस्वीरों का भी इस्तेमाल किया गया है.

दुनिया में नहीं है ऐसा कोई अन्य मानस.
दुनिया में नहीं है ऐसा कोई अन्य मानस.

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 28, 2023, 4:26 PM IST

मिर्जापुर में है अनोखा रामचरित मानस.

मिर्जापुर :गोस्वामी तुलसीदास की लिखी रामचरितमानस से आप सभी जरूर वाकिफ होंगे. मिर्जापुर में भी रामचरितमानस की एक खास पुस्तक मौजूद है. 225 साल पहले इसे बलिया जिले के बसंतपुर गांव के आत्माराम कायस्थ ने लिखा था. यह हस्तलिखित है. इसमें बालकांड से लेकर उत्तरकांड तक के कथाओं का समावेश है जबकि अन्य प्रकाशित किसी भी मानस में ऐसा नहीं है. मिर्जापुर के एक शख्स इसे बलिया से खरीद कर लाए थे. दावा है कि इस पुस्तक में कई रंगीन तस्वीरें हैं, जब ये पुस्तक लिखी गई, उस दौर में रंगीन छपाई भी नहीं होती थी. लिखावट काली स्याही से की गई है. छंद अलग करने के लिए लाल स्याही का भी प्रयोग किया गया है. इसे पांडुलिपि के विद्वान उदय शंकर दुबे ने आज भी सहेज कर रखा है.

दुनिया में नहीं है ऐसा कोई अन्य मानस.

रंगीन छपाई से पहले का है रामचरितमानस :उदय शंकर दुबे का दावा है कि देश में 19वीं सदी के शुरुआती दौर में साहित्य को रंगीन चित्रों के साथ संवारने की कोशिश चल रही थी. कलर पर्दे पर फिल्मों को भी उतारने का प्रयास किया जा रहा था. सफलता 1901 में मिली जब मुंबई के एक प्रेस से रंगीन पुस्तकों की पहली खेप निकली. उसकी सबसे ज्यादा मांग रही. यह पुस्तक रंगीन छपाई वाली गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित मानस थी.भदोही जनपद से सटे मिर्जापुर के करडुआ गांव में रंगीन छपाई के पहले की रामचरितमानस आज भी मौजूद है.

देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं लोग :उदय शंकर दुबे का कहना है कि लिखावट काली स्याही से एक जैसी की गई है. छंद अलग करने के लिए लाल स्याही का भी प्रयोग हुआ है. कुछ जगहों पर कलर फोटो भी लगाए गए हैं. प्रकाशित न होने के कारण यह लोगों तक नहीं पहुंच पाई .इस रामचरितमानस को आज भी सहेज कर उन्होंने अपने पास रखा है. इस रामचरितमानस को देखने और पढ़ने के लिए आज भी दूर-दूर से लोग आते हैं.

इस रामचरित मानस की अलग खासियत है.

चार किलो से ज्यादा है वजन :उदय शंकर दुबे ने बताया कि 18वीं और 19वीं सदी में रामचरितमानस की प्रतिलिपि तैयार करने के लिए राजाओं और महाराजा स्वर्ण मुद्राएं भेंट किया करते थे. बलिया जनपद के बसंतपुर गांव के रहने वाले मंसाराम के बेटे भगतराम को पढ़ाने के लिए भृगु आश्रमवासी रामप्रसाद कायस्थ के बेटे आत्माराम कायस्थ ने इस रामचरितमानस को तैयार किया था. 4 किलो से ज्यादा इस रामचरितमानस का वजन है. इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें बालकांड से लेकर उत्तरकांड तक की विविध कथाओं का समावेश है. यह अब तक छप चुकी किसी पुस्तक में नहीं है.

पुस्तक में कई अलग कहानियां :पांडुलिपि विद्वान ने बताया कि गोस्वामी तुलसीदास के मानस में उत्तरकांड कथाओं को स्थान नहीं मिल पाया था, मगर इस प्रति में सबसे अधिक उत्तरकांड मिलते हैं. जैसे सीता की तीन सखियों की कथा, राम का कैकेयी को वर देना, कैकेयी की कथा, अयोध्या से जनकपुर दूत का जाना , जनक जी का अयोध्या आगमन और दोनों राजसभाओं उपस्थित में राम का राज्याभिषेक, कौशल्या द्वारा कुल देवता की पूजा, राम का भाइयों सहित चौगान खेलना, लवणासुर से शत्रुघ्न का युद्ध, स्वान की कथा, श्री राम स्वप्न दर्शन और सीता वनवास, दुष्ट काग का झगड़ा, ब्राह्मण की कथा, कंकन प्रसंग ,गन्धर्व वध, लवकुश राज्यप्राप्ति कथाओं को पिरोया गया है.

कई साल पहले लिखी गई थी पुस्तक.

देश की इकलौती पुस्तक है :मिर्जापुर के कोन ब्लॉक के करडुआ गांव के रहने वाले 83 वर्षीय उदय शंकर दुबे पांडुलिपि के विद्वान हैं. वह कई वर्षों तक वाराणसी खोज विभाग में हस्तलिखित ग्रंथों की खोज, अध्ययन और संपादन का कार्य कर चुके हैं. देश के कई राज्यों में घूमकर हस्तलिखित ग्रंथों के बारे में भी उन्होंने जानकारी जुटाई है. उन्होंने बताया कि इस रामचरितमानस बुक को हमारे पिता पंडित राम बुझावन दुबे बलिया से 1940 में एक सेठ के यहां से खरीद कर लाए थे. पिता अधिकतर भृगु आश्रमवासी जाया करते थे. हम भी इस आश्रम में जाते थे. लोग बताते थे यहां पर गोस्वामी तुलसीदास भी आते थे. यह रामचरितमानस लगभग 225 साल पुराना है. हमें इसकी दूसरी प्रति देश की किसी कोने में नहीं मिली. यह देश का इकलौता रामचरितमानस है.

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