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रंग लाई कनकलता की मेहनत, लंदन-ओमान में मिर्जापुर के टमाटर की डिमांड

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के सीखड़ गांव निवासी कनकलता के खेतों में पैदा लाल टमाटर अब लंदन व ओमान में खाने का स्वाद बढ़ाएंगे. जैविक खाद की मदद से उगाए गए लाल टमाटर की मांग काफी बढ़ गई है.

रंग लाई कनकलता की मेहनत
रंग लाई कनकलता की मेहनत

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Published : Feb 13, 2021, 5:11 PM IST

मिर्जापुर: जैविक खाद की मदद से तैयार किए गए टमाटर की मांग विदेशों तक हो रही है. जिले के सीखड़ गांव का लाल टमाटर लंदन और ओमान में भेजा जा रहा है. पहली बार में इस टमाटर का सैंपल गया था. वहीं अब आने वाले दिनों में 10 से 15 क्विंटल ऑर्डर प्रति हफ्ते मिलने वाला है. महिला किसान कनकलता की मेहनत और नाबार्ड, कृषि विभाग के सहयोग से यह संभव हुआ है. जैविक विधि से खेती करने से तीन गुना से ज्यादा लाभ हो रहा है.

कनकलता ने डेढ़ बीघे में की है दुर्ग प्रजाति के टमाटर की खेती.

लंदन और ओमान में मिर्जापुर के टमाटर की मांग
सीखड़ ब्लॉक की सीखड़ ग्राम पंचयात के विठ्ठलपुर मौजे की रहने वाली महिला किसान कनकलता ने 60 हजार रुपये लागत लगाकर डेढ़ बीघा खेत में जैविक खाद से चढ़ाव विधि के माध्यम से दुर्ग प्रजाति के टमाटर की खेती की है. कनकलता की मेहनत से पैदा किए गए लाल टमाटर की लंदन और ओमान में मांग बढ़ रही है. कनकलता ने इन दोनों देशों में 100 क्विंटल टमाटर सैंपल के लिए भेजा था. अब वहां से आर्डर मिल रहा है. प्रति हफ्ते 10 से 15 क्विंटल टमाटर की मांग की जा रही है. दुर्ग प्रजाति के टमाटर की खेप पहुंचना वहां शुरू हो गई है.

नवचेतना एग्रो सेंटर प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड से जुड़ी हैं कनकलाता
महिला किसान कनकलता बताती हैं कि वह पहले पारंपरिक तरह से खेती करती थीं, लेकिन जब वह नाबार्ड और कृषि विभाग के द्वारा लगाए गए कैंपों में गईं तो पता चला कि आधुनिक विधि से खेती की जाए तो अच्छी इनकम हो सकती है. कनकलता बताती हैं कि डेढ़ बीघा के खेत में जहां पर पहले मटर और लोकल टमाटर लगाया जाता था तो कोई पैदावार नहीं होती थी. हर बार घाटे का सौदा होता था, लेकिन आधुनिक विधि के द्वारा जैविक खाद डालकर चढ़ाव विधि से टमाटर की खेती की गई तो बहुत कम लागत में बहुत अच्छी पैदावार हो रही है. प्रतिदिन एक से डेढ़ क्विंटल टमाटर निकल रहा है.

कनकलता के टमाटर के सैंपल भेजे गए ओमान और लंदन.

हमारे टमाटर की मांग ओमान और लंदन तक की जा रही है. इसके अलावा यह टमाटर लोकल मंडियों में भी तेजी से बिक रहा है. यह नए प्रजाति का है, इसलिए लोग इसे ज्यादा पसंद कर रहे हैं. किसान आधुनिक विधि से खेती करें तो फायदे की खेती है.
-कनकलता, महिला किसान

कृषि उत्पादक संगठन (एफपीओ) से मिल रहा है लाभ
नाबार्ड भारत सरकार, राष्ट्रीय कृषि ग्रामीण विकास बैंक नाबार्ड और कृषि विभाग के द्वारा स्थापित एफपीओ किसानों के लिए लाभप्रद साबित हो रहा है. एक एफपीओ कंपनी में लगभग 500 किसान जोड़े जाते हैं. नवचेतना एग्रो सेंटर प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड के सीईओ मुकेश पांडे बताते हैं कि कनकलाता इस कंपनी से जुड़ी हैं. इन्होंने दुर्ग प्रजाति के टमाटर को चढ़ाव विधि से जैविक खाद डालकर तैयार किया है. 60 हजार रुपये की लागत से उन्होंने टमाटर की खेती शुरू की. लगभग इन्हें साढे 3 गुना लाभ होने वाला है. इनके टमाटर की डिमांड ओमान और लंदन तक की जा रही है. अभी दोनों देशों में सैंपल गया है. दोनों देशों में 10 से 15 क्विंटल प्रति सप्ताह जाने की संभावना है.

खेत से टमाटर तोड़तीं महिला किसान कनकलता.

दुर्ग प्रजाति के टमाटर नहीं होते हैं खराब
कृषि खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण के प्रयास के चलते दुर्ग प्रजाति के टमाटर को बाजार में एक नई पहचान मिल रही है. कृषि उत्पादक संगठन एफपीओ नवचेतना से जुड़ीं कनकलता ने नाबार्ड और कृषि विभाग के कार्यक्रम से सीख लेते हुए डेढ़ बीघे में दुर्ग प्रजाति के टमाटर की चढ़ाव विधि से खेती की है. जैविक खाद का उपयोग करते हुए उन्होंने अपनी मेहनत से टमाटर की फसल की अच्छी पैदावार की है. दुर्ग प्रजाति के टमाटर की खासियत है कि यह महीनों तक खराब नहीं होता है. नए प्रजाति के होने की वजह से इसकी मांग बढ़ रही है. इसके मूल्यांकन के लिए केंद्र सरकार की एजेंसी एपीडा की देखरेख में पहली खेप ओमान व लंदन भेजी जा चुकी है. दुर्ग प्रजाति के टमाटर के बाद अब गर्मी के सीजन के टमाटर भी लगाए जाने की तैयारी की जा रही है.

एपीडा ने विदेश जाने का किया है क्लियर
कृषि उपनिदेशक डॉ. अशोक उपाध्याय ने बताया कि महिला किसान कनकलता नवचेतना एफपीओ से जुड़ी हैं. उन्होंने जैविक खाद डालकर चढ़ाव विधि से टमाटर की दुर्ग प्रजाति की खेती की है. टमाटर के निर्यात के लिए एपीडा (कृषि खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण) उत्तर प्रदेश सरकार के माध्यम से एफपीओ नवचेतना का टमाटर ओमान और लंदन जा रहा है. मिर्जापुर का टमाटर तो पहले से ही बहुत अच्छा माना जाता था, लेकिन कनकलाता की मेहनत की वजह से आज इस क्वालिटी के टमाटर से अब और मिर्जापुर का नाम हो रहा है.

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