मिर्जापुर:जिले में ओझला नदी पर बना पुल अपने बेजोड़ नमूने को पेश करता है. इस पुल का निर्माण रुई व्यापारी परशुराम गिरी ने अपने एक दिन के मुनाफे से करवाया था. मिर्जापुर नगर से विंध्याचल को जोड़ता यह पुल किसी समय में इसे व्यापारियों के लिए स्वर्ग कहा जाता था. इस पुल के गर्भ में व्यापार के सिलसिले में आए हुए व्यापारियों को ठहरने के लिए कमरे भी बनाये गए थे. दूर-दराज से आए व्यापारी यहां रात्रि विश्राम करते थे.
ओझला पुल का इतिहास
आजादी के पहले मां विंध्यवासिनी धाम और मिर्जापुर नगर को यह पुल जोड़ता था. पहले इस नदी को पुण्य जला नदी के नाम से जाना जाता था. इस पुल का निर्माण परशुराम गिरी द्वारा संवत 1772 में करवाया गया था. आज भी यह पुल वास्तुकला का एक सुंदर नमूना है. इस पुल पर मिर्जापुर के प्रस्तर कला में माहिर कारीगरों द्वारा नक्काशियां भी की गई हैं, जो देखने लायक है. रुई और लाह व्यापारियों के लिए यह पुल केंद्र बिंदु था. सड़क रास्ते और गंगा नदी के रास्ते व्यापारी यहां आते थे.
नदी के रास्ते आए व्यापारी इस पुल के नीचे से बनी सीढ़ियों के सहारे ऊपर आ जाते थे और बने कमरे में विश्राम करते थे, फिर इसी रास्ते से अपने व्यापार के लिए निकल जाते थे. बताया जाता है, ओझला नदी आगे गंगा नदी में भी मिल जाती है.
व्यापारी ओझला नदी के साथ ही गंगा नदी से भी व्यापार करते थे. साथ ही इस पुल के बन जाने से विंध्याचल धाम और मिर्जापुर के यात्रियों की परेशानी भी खत्म हो जाती है, क्योंकि उस समय पुल न रहने से यहां के लोगों को आने-जाने में परेशानी होती थी. उसको देखते हुए परशुराम गिरी ने इस पुल का निर्माण करवाया था.
साहित्यकार बतातें हैं कि गोस्वामी प्रमुख परशुराम गिरी को सड़क पर एक पत्र मिलता है. पत्र में लिखा होता है कि रुई और लाह का मूल्य बढ़ने वाला है तो उन्होंने बहुत सी रुई को खरीद लिया. एक दिन की कमाई से उन्हें इतना लाभ हुआ कि उन्होंने जनहित में इस पैसे का प्रयोग कर दिया. साथ ही परशुराम गिरी द्वारा जयराम जी का बगीचा और गोसाईं टोला भी बनाने में उनका योगदान रहा है. ब्रिटिश के समय इस पुल को इंग्लैंड के तमाम लोग देखने आते थे. आजादी के समय परशुराम गिरी जी का प्रमुख स्थल हुआ करता था.
मुगलों के आक्रमण के बाद मध्यप्रदेश से गिरी लोग आए थे. मिर्जापुर नगर के लोगों को विंध्याचल में जाने में परेशानी होती थी. नाव से जाते थे या बारिश खत्म होने के बाद नीचे उतरकर पैदल जाते थे. रुई की एक दिन की कमाई से इतना लाभ हुआ कि उन्होंने जनहित में इस पैसे का प्रयोग किया.
सलिल पांडेय,साहित्यकार
यह पुल अपने दादा के समय से ही देखते चले आ रहे हैं,दादाजी बताते थे कि एक व्यापारी हुआ करते थे, जिन्होंने एक दिन के मुनाफे से इस पुल को बनवाया था. इस तरह का पुल अब नहीं बन सकता है. अब यह पुल कई जगह से जर्जर हो चुका है. इस धरोहर को बचाने की जरूरत है.
लालजी,स्थानीय