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मिर्जापुर का ये शख्स 2000 लावारिस शवों को करा चुका सुपुर्द-ए-खाक - मिर्जापुर लावारिस शवों का अंतिम संस्कार

मिर्जापुर के केएम हाशमी पिछले 46 वर्षों से लावारिस शवों के मसीहा बनकर उनको सुपुर्द-ए-खाक करा रहे हैं. हाशमी 2000 से अधिक लावारिस शवों को सुपुर्द-ए-खाक करा चुके हैं.

लावारिस शवों का मसीहा.
लावारिस शवों का मसीहा.

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Published : Mar 30, 2021, 8:52 PM IST

मिर्जापुर: हर शख्स की इच्छा होती है कि मौत के बाद अपनों के कंधों का सहारा मिले, लेकिन बहुत से ऐसे लोग हैं जिनको अंतिम समय में अपनों का साथ नहीं मिल पाता है. ऐसे लोगों के लिए मिर्जापुर के केएम हाशमी हमेशा सहारा बनकर खड़े रहते हैं. पिछले 46 वर्षों से लावारिस शवों के मसीहा बनकर उनको सुपुर्द-ए-खाक करा रहे हैं. हाशमी 2000 से अधिक लावारिस शवों को सुपुर्द-ए-खाक करा चुके हैं. हाशमी मुस्लिम समुदाय के शवों को रीति-रिवाज से सुपुर्द-ए-खाक करते हैं. वहीं, वे हिंदू धर्म के भी लावारिस शव मिलने पर सहायता करते हैं.

लावारिस शवों का मसीहा.
लावारिस शवों के बने मसीहा

शहर के रमई पट्टी के रहने वाले केएम हाशमी अपने उस्ताद मोहम्मद रफीक जो रिश्ते में मामू लगते थे, उनके साथ सिलाई का काम सीखा करते थे. हाशमी को अज्ञात शव के सुपुर्द-ए-खाक की प्रेरणा उन्हीं से मिली. 1955 से लेकर 1974 तक मामू रफीक के साथ मिलकर लावारिस शवों को सुपुर्द-ए-खाक किया करते थे. उनके इंतकाल के बाद हाशमी 1974 से अकेले लावारिस शवों को सुपुर्द-ए-खाक कर अपना फर्ज अदा कर रहे हैं.

कभी अपने मिशन से पीछे नहीं हटते

दिन हो या रात, सर्दी हो या बरसात अपने मिशन से कभी पीछे नहीं हटे. केएम हाशमी ने साबित किया है कि जिसका कोई नहीं होता है, उसका भी सहारा भगवान होते हैं. लावारिस शवों के साथ इंसानियत का रिश्ता पूरी शिद्दत से निभाने वाले हाशमी बताते हैं कि 1974 से लेकर 2007 तक में अपने पैसे खर्च कर सुपुर्द-ए-खाक करते थे. एक शव में 4 से 5 हजार रुपये तक का खर्च आता है. हम आपस में मिलकर खर्च को वहन करते हैं. कभी 10 तो कभी 25 लोग भी मौके पर शामिल हो जाते हैं. यह सभी लोग अपनी स्वेच्छा से सहयोग करते हैं. लावारिश शव मिलते ही इन लोगों में से एक शख्स कफन तो दूसरा 700 रुपये की मदद करता है.

कोरोना काल में तीन शवों को कराया सुपुर्द-ए-खाक

कोरोना काल में जहां लोग एक-दूसरे से दूरी बना कर रहते थे, वहीं केएम हाशमी लावारिस शवों के साथ रहे. कोरोना काल में भी इन्होंने तीन लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कराया. आखरी शव इन्हें हलिया थाना क्षेत्र के बरौंधा चौकी अंतर्गत मिला था, जिसे मुस्लिम रीति-रिवाज से सुपुर्द-ए-खाक कराया. इनको कभी सोनभद्र के रावटसगंज से तो कभी मिर्जापुर के चुनार, हलिया, जमालपुर के साथ ही मोर्चरी में रखे लावारिस शवों की सूचना वहां लाने वाला सरजू देता है. पता चलते ही केएम हाशमी लावारिस शव का वारिस बनकर अंतिम संस्कार करने में जुट जाते हैं.

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कब्रिस्तान की कमेटी ने दी जगह

मुस्लिम लावारिस शव के अंतिम संस्कार करने में कोई बाधा उत्पन्न न हो इसके लिए कब्रिस्तान कमेटी भी इस काम में सहयोग कर रही है. जितने भी लावारिस शव आएंगे, उनके दफनाने के लिए कमेटी ने जगह दे रखी है. शहर के पक्का पोखरा और टेढ़वा कब्रिस्तान में शवों को सुपुर्द-ए-खाक किया जाता है. 2000 शवों में से ज्यादातर पुरुषों के शवों का ही अंतिम संस्कार हाशमी ने किया है. महिलाओं की पहचान नहीं होने पर लोग बताते हैं कि महिला अल्लाह का नाम लेती थी, इसी से उसके मुस्लिम होने की पहचान होने पर उन्हें भी मिट्टी दी जाती है.

सरकारी मदद के बारे में पता नहीं

लावारिस शवों का अंतिम संस्कार पुलिस सम्मानपूर्वक कर सके, इसके लिए सरकार 2700 रुपये की जगह अब 3400 रुपये देती है. इसमें शवों के कफन से लेकर ले आने-जाने और अंतिम संस्कार करने तक के खर्च शामिल हैं. जनपद में कहीं न कहीं लावारिस शव मिलते रहते हैं. उनके अंतिम संस्कार के लिए पुलिस यहां पर पैसा खर्च न करके ऐसे लोगों की सूचना देती है. केएम हाशमी से जब पूछा कि क्या पुलिस इस तरह की कोई मदद करती है, तो उन्होंने कहा कि यह मुझे नहीं पता है. बस केवल मुस्लिम लावारिस शव मिलने पर सूचना मिलती है.

हाशमीबोले, उनके बाद छोटा बेटा संभालेगा जिम्मेदारी

मुस्लिम समुदाय के शवों को सुपुर्द-ए-खाक कराने वाले केएम हाशमी बताते हैं कि इस काम में मुझे बहुत सुकून मिलता है. इसका मुझे फायदा भी है. आज हमारे बेटा-बेटी बिल्कुल सुरक्षित हैं. तीन बेटों और चार बेटियों के पिता हाशमी ने बताया कि यह काम रुकेगा नहीं चलता रहेगा. उन्होंने बताया कि छोटा बेटा रिजवाक इसकी जिम्मेदारी हमारे न रहने पर संभालेगा.

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