मिर्जापुर : सरकार सभी को छत मुहैया करा रही है तो वहीं सरकार का एक ऑफिस ऐसा भी है जहां आजादी के बाद से ही छत नही है. यहां के कर्मचारी अधिकारी और मेस चलाने वाले लोग झोपड़ी में रहकर काम कर रहे हैं. हम बात कर रहे हैं मड़िहान इलाके के वन डिपो का जहां पर जिलेभर के सरकारी बेशकीमती लकड़ियों का भंडारण किया जाता है. जिसे नीलामी के माध्यम से बेचा जाता है, लेकिन यहां की रखवाली और नीलामी का काम 34 सालों से झोपड़ी से चल रहा है.
वन डिपो को पक्के मकान का इंतजार 34 सालों से झोपड़ी से हो रही निगरानीजिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर मड़िहान वन डिपो में जिलेभर की सरकारी बेशकीमती लकड़ियों का भंडारण किया जाता है. करोड़ों रुपये की बड़ी खेप लकड़ियां इस डिपो में रखी जाती हैं. जिसे नीलामी के माध्यम से बेचा जाता है, लेकिन इसकी रखवाली 34 सालों से झोपड़ी के सहारे चल रही है. पक्की छत न होने के कारण हमेशा किसी अनहोनी की आशंका बनी रहती है. बता दें, यहां पर शीशम, सागौन, आम सखुआ और महुआ जैसी इमारती लकड़ियों की नीलामी और रखवाली की जाती है. झोपड़ी में काम करने को मजबूर कर्मचारी हर महीने होती है नीलामीउत्तर प्रदेश वन निगम डिपो मड़िहान, विक्रय प्रभाग दुद्धी सोनभद्र के अधीन यह डिपो है. जिले भर के कीमती लकड़ियां यहां पर रखी जाती हैं जिसे नीलाम के माध्यम से बेचा जाता है. ई नीलाम प्रत्येक महीने के 4 तारीख को सार्वजनिक नीलाम प्रत्येक महीने के 16 तारीख को की जाती है. 34 सालों से यह डिपो चल रहा है यहां के कर्मचारी पक्के मकान के निर्माण के लिए इंतजार कर रहे हैं. बरसात के दिनों में तो पानी गिरने से दस्तावेजों के सड़ने गलने की भी आशंका बनी रहती है जिसे बचाने में कर्मचारी जुटे रहते हैं.मड़िहान में इस वन डिपो की स्थापना 1946 में हुई थी. यहां पर इमारती लकड़ियों को एकत्रित कर उनकी नीलामी कर राजस्व में बढ़ोतरी की जा सके. ऑनलाइन ऑफलाइन दोनों प्रकार की नीलामी हर महीने लाखों रुपये की जाती है. 6 अधिकारी और कर्मचारियों की टीम इस झोपड़ी में काम करती है. सालों से इन्हें पक्के मकान का इंतजार है बारिश और ठंड हो गर्मी हो इसी टूटी झोपड़ी में रहने के लिए यह कर्मचारी मजबूर हैं. सोनभद्र के दुद्धी में इसका मेन ऑफिस होने के कारण अधिकारी कुछ बोलने को तैयार नहीं.