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मां अष्टभुजा के दर्शन मात्र से पूरी होती ये मनोकामनाएं, श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़ - मिर्जापुर विंध्याचल धाम

यूपी के मिर्जापुर में नवरात्रि के अवसर पर अष्टमी तिथि के दिन मां अष्टभुजा के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी है. माता के दर्शन के लिए बुधवार सुबह से ही श्रद्धालु लाइन लगाते नजर आए. श्रद्धालुओं की मान्यता है कि मां के दर्शन मात्र से ही सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.

मां अष्टभुजा
मां अष्टभुजा

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Published : Oct 13, 2021, 11:03 AM IST

मिर्जापुर: विंध्याचल के धाम में विंध्य पर्वत पर विराजमान मां अष्टभुजा के मंदिर में अष्टमी तिथि के दिन श्रद्धालुओं की सुबह से भीड़ उमड़ पड़ी है. मंगला आरती के बाद से मां अष्ठभुजा मंदिर में श्रद्धालु मां गौरी स्वरूप का दर्शन कर रहे हैं. कहा जाता है कि अज्ञानी पापी कंश का विनाश करने के लिए नंद के घर प्रकट होने वाली महामाया भक्तों की रक्षा करने के लिए विंध्य पर्वत पर विराजमान हैं. इन्हें ज्ञान की देवी भी कहा जाता है.

मां अष्टभुजा के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़.

मां अष्ठभुजा नंद के घर पैदा हुई और पापी कंश के हाथों से छूट कर विंध्याचल पर्वत पर वास कर भक्तों को अभय प्रदान कर रही हैं. पापों का संहार करने वाली मां के पैरों में कंस के अंगुलियों के निशान आज भी मौजूद हैं. मां अष्टभुजा के दर्शन के लिए नवरात्र में दूर-दराज से श्रद्धालु आकर दर्शन कर रहे हैं.


अनादिकाल से ही विंध्य पर्वत के गुफा में विराजमान अष्टभुजा मां भक्तों का कल्याण कर रही हैं. पृथ्वी पर जब-जब असुरों का साम्राज्य बढ़ा है, तब-तब आदिशक्ति ने उनके विनाश के लिए अवतार लिया है. असुरों के भय से नर और नारायण को मुक्ति दिलाने वाली मां के विभिन्न रूपों में एक रूप माता अष्टभुजा का भी है.

मां के इस अवतार के बारे में मार्कंडेय पुराण में वर्णन मिलता है कि "नंद गोप गृहे जाता यशोदा गर्भ संभवा सतीश ततस्तो नाशयिष्यामी विंध्याचल वासनी''. अर्थात अष्टभुजा मां को ज्ञान की देवी भी कहा जाता है, इनका दर्शन करने से सारी कामना पूरी होती है. नवरात्र में माता के दरबार में मन्नतें लेकर पहुंचे भक्तों को असीम सुखृ-समृद्धि की प्राप्ति होती है. ज्ञान की देवी का दर्शन करने मात्र से ही उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.



मिर्जापुर के विंध्याचल विंध्य पर्वत पर मां अष्टभुजा पहाड़ के गुफा में विराजमान हैं. कहा जाता है कि पापी कंश ने अपनी मृत्यु के डर से अपनी बहन देवकी को पति सहित कारागार में कैद कर लिया था. अपने विनाश के भय से देवकी की कोख से जन्म लेने वाले हर शिशु को कंश मार रहा था. इसी बीच देवकी कोख से ज्ञान की देवी यानी अष्टभुजा ने जन्म लिया. इन्हें कंश ने जैसे मारना चाहा, वैसे ही वह उसके हाथों से छूटकर विंध्य पर्वत पर जाकर विराजमान हो गईं.

विंध्य पर्वत पर विराजमान मां विंध्यवासिनी के साथ ही त्रिकोण मार्ग पर स्थित ज्ञान की देवी मां सरस्वती रूप में अष्टभुजा विराजमान हैं. इनके दर्शन के लिए नवरात्र में दूरदराज से आने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. गुफा होने के चलते मां का दर्शन करने के लिए लोग झुककर मां के पास जाते हैं. दर्शन के बाद ही श्रद्धालु खड़े हो पाते हैं. जब तक दर्शन नहीं कर लेते हैं, तब तक झुककर श्रद्धालु उनके सामने खड़े रहते हैं.

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