मेरठ:अंग्रेजों के खिलाफ देश में क्रांति की पहली चिंगारी 10 मई 1857 में मेरठ शहर से फूटी थी. हालांकि, यह क्रांति उस वक्त सफल नहीं हुई थी लेकिन इस क्रांति के बाद हर हिंदुस्तानी में देश को आजाद कराने का जज्बा और अधिक जोश भर गया था. पहली क्रांति से जुड़ी यादों को यहां के राजकीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय में संजोकर रखा गया है. देशभर से लोग यहां आते हैं और यहां मौजूद फोटो गैलरी के माध्यम से क्रांति के बारे में जानकारी हासिल करते हैं.
- राजकीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय में बनी गैलरी में एक गैलरी मेरठ में हुई क्रांति से जुड़ी तस्वीरों की है.
- दूसरी गैलरी में देशभर में हुए क्रांति आंदोलनों को चित्रों के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है.
- मेरठ प्रांत से जुड़ी गैलरी में 10 मई 1857 को हुई क्रांति से जुड़े हर पहलू को चित्रों के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है.
- कुल पांच गैलरियों में से दो गैलरी मुख्य रूप से मेरठ के गदर की कहानी बताती है.
- इन गैलरियों में काली पलटन मंदिर से शुरू हुई क्रांति की चिंगारी से दिल्ली चलो तक की दास्तान चित्रों से प्रदर्शित की गई है.
- तीन अन्य गैलरियों में कानपुर और बिहार समेत अन्य जगहों पर हुए विद्रोह के बारे में जानकारी दी गई है.
एक फकीर जिसने क्रांति की चिंगारी सुलगाई-
चित्रों के माध्यम से ही बताया गया है कि कैसे यहां के काली पलटन मंदिर से एक फकीर ने हिंदुस्तानी सैनिकों के दिलों में अंग्रेजों से लड़ने का जोश भरा था. यह फकीर हिंदुस्तानी सैनिकों को अंग्रेजों से जुड़ी जानकारी देता था. इस फकीर ने ही सैनिकों को चर्बी लगे कारतूस की जानकारी दी थी. उस समय मेरठ के कोतवाल धन सिंह गुर्जर थे. भारी आवाज वाले धन सिंह कोतवाल का उन दिनों बड़े रौब का दर्जा था. जब धन सिंह कोतवाल ने मेरठ छावनी में विद्रोह का समाचार सुना तो यह संदेश उन्होंने आस-पास के गांव में पहुंचा दिया. इसके बाद गांव के लोग डंडे, फरसे, भाले आदि लेकर शहर की ओर दौड़ पड़े थे. दिनभर मेरठ में मारकाट के दौरान 'दिल्ली चलो' का नारा लगता रहा था. इसके बाद शाम के समय क्रांतिकारियों की टोली दिल्ली की ओर बढ़ गई थी.