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स्वतंत्रता दिवस: मेरठ के राजकीय म्यूजियम में मौजूद हैं आजादी की पहली 'गदर' की यादें

यूपी के मेरठ से देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत हुई थी. इस गदर से भले ही ब्रिटिश हुकूमत की विदाई नहीं हो सकी लेकिन देशवासियों के दिल में राष्ट्रभक्ति का ज्वर पैदा कर दिया था. मेरठ का राजकीय स्वतंत्रता संग्राम संग्राहलय इसी क्रांति की जीती-जागती मिसाल है.

देश की पहली क्रांति का दस्तावेज है मेरठ का राजकीय संग्राहलय.

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Published : Aug 15, 2019, 8:00 AM IST

मेरठ:अंग्रेजों के खिलाफ देश में क्रांति की पहली चिंगारी 10 मई 1857 में मेरठ शहर से फूटी थी. हालांकि, यह क्रांति उस वक्त सफल नहीं हुई थी लेकिन इस क्रांति के बाद हर हिंदुस्तानी में देश को आजाद कराने का जज्बा और अधिक जोश भर गया था. पहली क्रांति से जुड़ी यादों को यहां के राजकीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय में संजोकर रखा गया है. देशभर से लोग यहां आते हैं और यहां मौजूद फोटो गैलरी के माध्यम से क्रांति के बारे में जानकारी हासिल करते हैं.

देश की पहली क्रांति का दस्तावेज है मेरठ का राजकीय संग्राहलय.
राजकीय स्वतंत्रता संग्राम संग्राहलय के खास आकर्षण-
  • राजकीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय में बनी गैलरी में एक गैलरी मेरठ में हुई क्रांति से जुड़ी तस्वीरों की है.
  • दूसरी गैलरी में देशभर में हुए क्रांति आंदोलनों को चित्रों के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है.
  • मेरठ प्रांत से जुड़ी गैलरी में 10 मई 1857 को हुई क्रांति से जुड़े हर पहलू को चित्रों के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है.
  • कुल पांच गैलरियों में से दो गैलरी मुख्य रूप से मेरठ के गदर की कहानी बताती है.
  • इन गैलरियों में काली पलटन मंदिर से शुरू हुई क्रांति की चिंगारी से दिल्ली चलो तक की दास्तान चित्रों से प्रदर्शित की गई है.
  • तीन अन्य गैलरियों में कानपुर और बिहार समेत अन्य जगहों पर हुए विद्रोह के बारे में जानकारी दी गई है.

एक फकीर जिसने क्रांति की चिंगारी सुलगाई-
चित्रों के माध्यम से ही बताया गया है कि कैसे यहां के काली पलटन मंदिर से एक फकीर ने हिंदुस्तानी सैनिकों के दिलों में अंग्रेजों से लड़ने का जोश भरा था. यह फकीर हिंदुस्तानी सैनिकों को अंग्रेजों से जुड़ी जानकारी देता था. इस फकीर ने ही सैनिकों को चर्बी लगे कारतूस की जानकारी दी थी. उस समय मेरठ के कोतवाल धन सिंह गुर्जर थे. भारी आवाज वाले धन सिंह कोतवाल का उन दिनों बड़े रौब का दर्जा था. जब धन सिंह कोतवाल ने मेरठ छावनी में विद्रोह का समाचार सुना तो यह संदेश उन्होंने आस-पास के गांव में पहुंचा दिया. इसके बाद गांव के लोग डंडे, फरसे, भाले आदि लेकर शहर की ओर दौड़ पड़े थे. दिनभर मेरठ में मारकाट के दौरान 'दिल्ली चलो' का नारा लगता रहा था. इसके बाद शाम के समय क्रांतिकारियों की टोली दिल्ली की ओर बढ़ गई थी.

...और कारवां बढ़ता गया-
जानकार बताते हैं कि उस वक्त शहर की नगरवधु ने भी जनता में अंग्रेजों के खिलाफ जोश भरने का काम किया था. उन्होंने भी लोगों को उकसाया और कहा कि वह अंग्रेजों का डटकर मुकाबला करें. इसके बाद लोग अपने घरों से निकलकर सड़कों पर आ गए. इस तरह कारवां बढ़ता चला गया जिसे संभालना अंग्रेज अफसरों के वश से बाहर हो गया. उसी दिन गुस्साए विद्रोहियों की भीड़ ने अंग्रेजों के बंगलों में आग लगा दी थी. उग्र भीड़ ने, जो भी अंग्रेज सामने आया उस पर हमला बोल दिया. विक्टोरिया पार्क से सैनिकों को छुड़ाने के बाद केसरगंज जेल पर धावा बोलकर यहां बंद हिंदुस्तानियों को रिहा कराया गया था.

यहां मौजूद गैलरी में शहर में फूटी क्रांति की पहली चिंगारी से लेकर दिल्ली कूच करने तक की घटनाओं का वर्णन गैलरी में लगे चित्रों के माध्यम से किया गया है. यहां लोग आते हैं और आजादी के लिए हुई क्रांति के बारे में जानकारी हासिल करते हैं.
- पीके मौर्य, अध्यक्ष- स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय

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