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जब नहीं सुने जनप्रतिनिधि तो ग्रामीणों ने खुद बना डाला लकड़ी का पुल

मऊ के मोहम्मदाबाद में बार-बार पुल की गुहार लगाने के बाद भी जब कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो ग्रामीणों ने खुद ही लड़की का पुल बना लिया. यह पुल टौंस नदी पर बनाया गया है.

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Published : Mar 16, 2019, 9:13 PM IST

टौंस नदी पर ग्रामीणों ने बनाया पुल.


मऊ: मोहम्मदाबाद गोहना क्षेत्र के बंदीघाट और सरयां गांव के बीच पड़ने वाली टौंस नदी पर पक्का पुल बनाने की मांग कई सालों से होती आ रही है. वहीं शासन और प्रशासन के साथ ही क्षेत्रीय विधायकों और सांसद ने इस मांग को अनसुना कर दिया. इसके बाद स्थानीय ग्रामीणों ने खुद ही नदी पर लकड़ी का पुल बना डाला.

टौंस नदी पर ग्रामीणों ने बनाया पुल.


मुहम्मदाबाद गोहना तहसील मुख्यालय से चार किलोमीटर दूर टौंस नदी के उत्तरी पूर्वी क्षेत्र में दर्जनों गांव है. लोगों को तहसील और जनपद मुख्यालय आने-जाने के लिए कई किलोमीटर घूमकर जाना पड़ता था. वहीं नदी के दूसरे पार दक्षिणी हिस्से के सरयां गांव में एक कॉलेज भी स्थापित है, जिसमें दर्जनों गांवों से सैकड़ों बच्चे पढ़ने आते हैं. जिसे देखते हुए पुल बनाने की मांग जोर पकड़ने लगी.


नाव चलाने वाले मल्लाह इश्वरचन्द्र साहनी ने बताया कि पहले हम लोग यहां नाव चलाते थे तो नदी पार करने के लिए स्कूली बच्चों की भीड़ बढ़ जाती थी, इसलिए पुल बनाना जरूरी हो गया था, जिसमें सबने सहयोग दिया. अब पुल बन जाने से बहुत आराम हो गया है, लोगों को अपने काम के लिए देर नहीं होती है, लेकिन पुल बनने से जिन नाविकों का रोजगार खत्म हो गया वो अब आने-जाने वाले लोगों से शुल्क लेते हैं.


स्कूल के प्रबंधक अम्मान अहमद ने बताया कि पुल नहीं था तो तहसील मुख्यालय जाने के लिए लगभग 15 किलोमीटर घूमकर जाना पड़ता था. शाम पांच बजे के बाद क्षेत्र का जिले से सम्पर्क समाप्त हो जाता था, जिससे रात में लोगों को आने-जाने में कठिनाई होती थी.


सालों से लोग पुल की मांग करते रहे, लेकिन काम नहीं हुआ. यहां के लोगों ने खुद ही योजना बनाकर ग्रामीणों और ग्राम प्रधानों के सहयोग से पुल बनाया. पुल निर्माण के लिए पिछली सरकार में भी काफी प्रयास किया गया, जिस पर पैमाईश तो हुई लेकिन पुल नहीं बना. वर्तमान विधायक से भी गुहार लगाया गया है, लेकिन अभी तक किसी ने ध्यान नहीं दिया है.


बता दें कि पुल के निर्माण की पहल गांव में स्थित कॉलेज के अध्यापक अम्मान, नदीम और हीरा ने की. गांव के कारीगरों ने लकड़ी और बांस आदि की व्यवस्था की और मजदूरों ने श्रमदान किया. तीन महीने तक चले इस कार्य में लगभग 3 लाख रूपये खर्च हुए, जिसमें ग्राम प्रधानों और क्षेत्रवासियों ने भी सहयोग दिया.

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