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गोबर के उत्पादों को बनाया रोजगार का जरिया, इस गौशाला में की जा रही पहल

दीपावली पर दीयों की अच्छी खासी बिक्री हो जाती है. हालांकि, दीपावली के बाद मिट्टी से बने दीयों का दोबारा उपयोग उतना नहीं किया जाता. इसी बात को ध्यान में रखते हुए स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं गोबर व मिट्टी के मिश्रण से बने दीये (Women made products from cow dung) बनाकर अपनी आजीविका चला रही हैं.

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Published : Oct 22, 2022, 11:13 PM IST

Updated : Oct 25, 2022, 4:40 PM IST

लखनऊ : दीपावली पर दीयों की अच्छी खासी बिक्री हो जाती है. हालांकि, त्यौहार के बाद मिट्टी से बने दीयों का दोबारा उपयोग उतना नहीं किया जाता. इसी बात को ध्यान में रखते हुए स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं गोबर व मिट्टी के मिश्रण से बने दीये बनाकर (Women made products from cow dung) अपनी आजीविका चला रही हैं. इन दीयों को दीपावली में इस्तेमाल करने के बाद खाद के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इसकी पहल मलिहाबाद के गोपेश्वर गौशाला में की जा रही है. जहां महिलाएं स्वावलम्बन की नई इबारत लिख रही हैं.



मलिहाबाद के टिकरी खुर्द गांव निवासी समूह की अध्यक्ष सरिता देवी का कहना है उनका समूह दो वर्ष पुराना है. उनके समूह की महिलाएं मलिहाबाद में बने गोपेश्वर गौशाला में जाकर गाय के गोबर से दीये बनाने का काम करती हैं. पहले कुछ दिन उन्होंने और समूह की महिलाओं से ट्रेनिंग ली, बाद में बनाने लगीं. उन्होंने बताया कि समूह की सदस्य सर्वेश कुमारी, अर्चना यादव, रीता सिंह, करिश्मा, उमा आदि की सहायता से विभिन्न उत्पादों का निर्माण किया जाता है.

जानकारी देते संवाददाता मो. मारूफ

महिलाएं गोबर व अन्य जड़ी-बूटियों की मदद से दीयों के अलावा धूप, हवन सामग्री, हवन ब्रिक, समरानी कप, भगवान की मूर्तियां आदि का निर्माण कर रही हैं. समूह की महिला अर्चना यादव बताती हैं कि यह सभी उत्पाद वातावरण को सुगंधित करने के साथ नकारात्मक ऊर्जा को भी समाप्त करते हैं. इनसे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता है. इनका कोई विसर्जन भी करता है तो पानी दूषित नहीं होता है.



स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिला सर्वेश कुमारी ने बताया कि गाय हमारे लिए बहुत उपयोगी है. गाय के गोबर से हम लोग गौशाला में जाकर दीये बनाते हैं और साथ ही उन्हीं दीयों से हम लोग प्रतिदिन 300-400 रुपये बचा लेते हैं, जिससे उनके परिवार की आजीविका अच्छे से चल रही है. गोबर से बनी धूप का एक पैकेट 120 रुपये में उपलब्ध है, जिसमें 60 पीस होते हैं. 31 दीयों के एक पैकेट की कीमत 100 रुपये रखी गई है. वहीं गैस सिलिंडर के बढ़ते दाम को ध्यान में रखते हुए गोबर के धूपबत्ती भी बनाई जा रही है. जिन्हें जलाकर खाना पकाया जा सकता है. इसकी कीमत 10 से 12 रुपये रखी गई है.

गोपेश्वर गौशाला के प्रबंधक उमाकान्त गुप्ता ने बताया गोपेश्वर गौशाला मलिहाबाद में ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को गाय के गोबर से बने उत्पादों के माध्यम से रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है. स्वयं सहायता समूह और गौशाला परिवार मिलकर महिलाओं को रोजगार दे रहा है. गाय के गोबर से दीये, मूर्ति व हवन की लकड़ी बनाकर लगभग 250 महिलाओं को रोजगार मिल रहा है. आज जो रोजगार की समस्या है और गाय की समस्या है उसको इस गोबर के माध्यम से बने उत्पादों ने पूरा कर दिया है और और गाय के गोबर से बने दीयों ने रोजगार की समस्या को दूर कर दिया है. जिस कारण लोगों को घर में गाय रखने की लालसा जगेगी. इनसे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता है

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Last Updated : Oct 25, 2022, 4:40 PM IST

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