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आखिर क्यों नहीं हुई कोतवाली में पुलिस के सामने भाजपा प्रत्याशी के पति को पीटने के मामले में विधायक पर कार्रवाई?

यूपी के गौरीगंज शहर कोतवाली में बीते बुधवार को सपा विधायक पर भाजपा प्रत्याशी के पति को थाने में पीटने का आरोप लगा है. वहीं इस मामले में विधायक पर कार्रवाई न होने पर कहीं न कहीं सवाल खड़े हो रहे हैं. पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण...

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Published : May 18, 2023, 9:14 AM IST

लखनऊ : निकाय चुनाव के दौरान विगत 10 मई को अमेठी जिले की गौरीगंज कोतवाली में धरने पर बैठे सपा विधायक राकेश प्रताप सिंह ने भाजपा प्रत्याशी रश्मि सिंह के पति दीपक सिंह को तमाम पुलिस कर्मियों के सामने ही बुरी तरह पीट दिया. मामले का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. इस घटना में पांच लोग घायल हुए. मामला यहीं नहीं थमा. विधायक का गुस्सा जब इस पर भी नहीं थमा तो उन्होंने पुलिस अधिकारियों से चूड़ियां पहन लेने के लिए कहा और सार्वजनिक तौर पर अपनी पिस्टल निकाल ली. विधायक राकेश प्रताप सिंह ने कहा कि "या तो मैं अपने आप को गोली मार लूंगा या उसको गोली मार दूंगा.' बाद में विधायक के खिलाफ 307 समेत गंभीर धाराओं में मुकदमा तो दर्ज किया गया, लेकिन एक सप्ताह बीत जाने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई. ऐसे अपराधों को लेकर योगी सरकार का सख्त रवैया रहा है. जब वारदात पुलिस के सामने हुई हो, सारे साक्ष्य मौजूद हों, बावजूद इसके कार्रवाई न हो तो सवाल उठेंगे ही. आखिर पुलिस ने अब तक विधायक को गिरफ्तार क्यों नहीं किया? सार्वजनिक तौर पर पिस्टल निकालकर जान से मारने की धमकी दी, पर उनका लाइसेंस निरस्त क्यों नहीं किया गया? आखिर अपराधियों पर सख्त रवैया रखने वाली भाजपा सरकार इस मामले में नरमी क्यों अपना रही है?



मामले की शुरुआत तब हुई, जब विधायक के करीबी रहे दीपक सिंह की पत्नी को भारतीय जनता पार्टी ने नगर पालिका अध्यक्ष पद के लिए अपना प्रत्याशी बनाया और दीपक ने सपा विधायक के विरोध में ताल ठोक दी. विधायक सपा प्रत्याशी तारा का समर्थन कर रहे थे, जिनके पति केडी सरोज विधायक के काफी करीबी माने जाते हैं. यह घटना विधायक के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने वाली थी. कभी विधायक की जी हजूरी करने वाला आज उन्हीं से मुकाबिल था! इसे लेकर घटना वाले दिन से पहले भी कई आरोप-प्रत्यारोप रहे. दोनों ही पक्षों ने एक दूसरे पर अपने समर्थकों और रिश्तेदारों को पीटने का आरोप लगाया. विधायक तो एक दिन पहले ही कोतवाली में धरने पर बैठ गए थे. उन्होंने ने आरोप लगाया था कि दीपक और उसके साथी कई दिनों से उन्हें व उनके समर्थकों को प्रताड़ित कर रहे हैं और कार्रवाई के बजाय पुलिस भाजपा नेता को संरक्षण दे रही है. विधायक के आरोप सही भी हो सकते हैं. दीपक सिंह की छवि भी कोई अच्छी नहीं है और उन पर कई मुकदमे भी दर्ज हैं. बावजूद इसके कोई भी कानून थाने में पुलिस कर्मियों के सामने किसी की पिटाई करने की इजाजत विधायक या किसी अन्य को नहीं देता. अपने निजी हथियारों का सार्वजनिक प्रदर्शन करने पर आए दिन लाइसेंस निरस्त किए जाने जैसी कार्रवाई होती रहती है, लेकिन जब एक विधायक पुलिस अधिकारियों के सामने धमकी देता है और पिस्टल निकाल लेता है, तब उस पर कोई कार्यवाही नहीं होती है. आखिर ऐसा क्यों?


फाइल फोटो

इस पूरे प्रकरण के बाद पुलिस अधिकारी कहते रहे कि आरोपियों को चिन्हित किया जा रहा है और उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी. जब सारे साक्ष्य से सामने हैं और पूरी घटना वीडियो में कैद है, फिर पुलिस अधिकारियों को किस तरह के साक्ष्य चाहिए? जब इस घटना की वीडियो टि्वटर पर वायरल हुआ तो कई यूजर्स ने लिखा कि "इस मामले में विधायक पर कोई कार्यवाही नहीं होगी, मामला भले ही भाजपा प्रत्याशी के पति को पीटे जाने का हो. लोगों ने लिखा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा विधायक राकेश प्रताप सिंह ने पार्टी लाइन के खिलाफ जाते हुए भाजपा प्रत्याशी और अब अमेठी से सांसद, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का समर्थन किया था. ऐसे में विधायक की भाजपा के शीर्ष नेताओं में अच्छी पकड़ है. कुछ माह बाद ही लोकसभा चुनाव शुरू होने वाले हैं. ऐसे में भाजपा विधायक को नाराज करना नहीं चाहेगी. क्योंकि अमेठी की प्रतिष्ठा वाली सीट पर भाजपा दोबारा अपने उम्मीदवार को जीतता हुआ देखना चाहती है." शायद यही कारण है कि विधायक पर मुकदमा तो दर्ज हुआ पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई. अब चुनाव के नतीजे आ चुके हैं और सपा विधायक समर्थित प्रत्याशी की पराजय भी हो चुकी है. इसलिए कोतवाली में पुलिस के सामने पिटने वाले भाजपा प्रत्याशी के पति दीपक सिंह के लिए अब जीत की खुशी में शायद इस घटना को भुला देना ही बेहतर होगा. राजनीति का यही तकाजा है.



फाइल फोटो

इस मामले में राजनीतिक विश्लेषक डॉ प्रदीप यादव कहते हैं 'इसमें कोई दो राय नहीं योगी सरकार ने अपराधियों अथवा कानून को हाथ में लेने वालों के खिलाफ कड़े से कड़े कदम उठाए हैं. हां कुछ अपवाद जरूर हैं और समय-समय पर भाजपा सरकार पर कुछ लोगों को बचा लेने और कार्रवाई न करने के आरोप भी लगते रहे हैं. राजनीतिक दल कोई भी कदम अपनी पार्टी और चुनावी लाभ को देखते हुए ही उठाते हैं. इसलिए इस मामले में विधायक पर कार्रवाई न किए जाने को आश्चर्य से देखा नहीं जाना चाहिए. आखिर विधायक ने भाजपा का साथ तब दिया था, जब उसे सबसे प्रतिष्ठा पूर्ण सीटों में से एक पर जीत की दरकार थी. लोकसभा के अगले चुनाव 2024 में होने हैं. ‌ऐसे में सरकार कोई भी कदम सोच समझकर ही उठाएगी और अपना नफा नुकसान जरूर देखेगी. अपवादों को छोड़कर भाजपा ही नहीं अन्य दल भी जब सत्ता में होते हैं, तो ऐसा ही करते हैं. इसलिए भाजपा के इस कदम पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए.'

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