लखनऊः अपने विवादित बयानों से अक्सर सुर्खियों में बने रहने वाले शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वसीम रिजवी का एक और विवादित बया सामने आया है. रिजवी ने मुसलमानों के दूसरे सबसे बड़े पर्व ईद-उल-अजहा (Eid al-Adha) पर ऐतराज़ जताया है. वसीम रिजवी ने बयान जारी कर कहा कि बकरीद के नाम पर करोड़ों जानवरों की कुर्बानी देना एक गुनाह है.
वसीम रिजवी का विवादों से पुराना नाता रहा है. कभी कुरान तो कभी मदरसों को लेकर वह टिप्पणी करते रहे हैं. अब वसीम रिजवी ने मुसलमानों के त्योहार ईद-उल-अजहा यानी कि बकरीद पर ऐतराज जताया है. वसीम रिजवी ने कहा कि बकरीद के नाम पर दुनिया में एक साथ करोड़ों जानवरों की बलि देना एक गुनाह है. यही नहीं वसीम रिजवी ने आगे बोलते हुए कहा कि अल्लाह कि राह में हजरत इब्राहिम अपने बेटे हजरत इस्माइल की कुर्बानी देने में हिचकिचाएं थे, इसलिए अल्लाह ने उनकी कुर्बानी नहीं कुबूल की थी. इस दिन एक रसूल अल्लाह की राह में नाकामयाब हुए थे. इसलिए यह दिन अल्लाह से अपने गुनाहों कि माफी मांगने का है न कि बेजुबान जानवर की बलि देकर ईद मनाने का.
वसीम रिजवी ने अब बकरीद के त्योहार पर दिया विवादित बयान अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर चल रही बहस के बीच वसीम रिजवी ने राज्य विधि आयोग के मसौदे का समर्थन किया. बीते शनिवार को उन्होंने मुस्लिम कौम की तुलना कुकुरमुत्ते से की थी. वसीम रिजवी ने कहा कि हिंदुस्तान में मुसलमानों कि तादाद कुकुरमुत्तों की तरह बढ़ रही है. जब भी इसपर कानून को बनाए जाने की बात होती है तो मुसलमानों के नाम पर राजनीति करने वाली कुछ सियासी पार्टियां आड़े आती हैं. रिजवी ने कहा कि हिंदुस्तान सब धर्मों का है और देश की तरक्की के लिए सभी धर्मों को इन बातों पर अमल करना होगा. वसीम रिजवी बोले कि सिर्फ सुविधाओं से वंचित करने से काम नहीं चलेगा. इस कानून में सजा का भी प्रावधान होना चाहिए. कानून बनाया जाना और उसको लागू करना हिंदुस्तान के मुसलमानों के लिए बेहद जरूरी है.
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इस बीच ईद-उल-अजहा को लेकर वसीम रिजवी द्वारा दिया गया बयान मुस्लिम समुदाय को नाराज करने वाला है. बता दें कि रविवार को जिल हीज्ज महीने का चांद नजर आने के बाद ईद उल-अजहा की तारीख का ऐलान हो गया है. भारत में यह पर्व 21 जुलाई को मनाया जाएगा. बकरीद को कुर्बानी का त्योहार भी कहा जाता है. इस दिन मुसलमान किसानों से महंगे से महंगा बकरा खरीद कर कुर्बान करते हैं, जिसका हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को दिया जाता है. आर्थिक दृष्टि से भी देश में बकरीद के मौके पर बड़ा कारोबार होता है. गांव, देहात से किसान और व्यापारी बकरे लेकर मंडियों में बेचने आते हैं, जिससे उनको अच्छा मुनाफा होता है.