लखनऊ :महर्षि वाल्मीकि का जन्म अश्विन मास के पूर्णिमा तिथि के दिन माना जाता है, लिहाजा हर साल इस तिथि को वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है. इस साल अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक ये दिन 20 अक्टूबर को पड़ रहा है.
वाल्मीकि जयंती का महत्व
लखनऊ :महर्षि वाल्मीकि का जन्म अश्विन मास के पूर्णिमा तिथि के दिन माना जाता है, लिहाजा हर साल इस तिथि को वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है. इस साल अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक ये दिन 20 अक्टूबर को पड़ रहा है.
वाल्मीकि जयंती का महत्व
महर्षि वाल्मीकि के जन्म को लेकर कई अलग-अलग मान्यताएं प्रचलित हैं, माना जाता है कि उनका जन्म महर्षि कश्यप और देवी अदिति के 9वें पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चर्षिणी से हुआ था. ये भी माना जाता है कि महर्षि वाल्मीकि ने ही इस दुनिया में पहले श्लोक की रचना की थी. पौराणिक आख्यानों की मानें तो जब भगवान श्रीराम ने माता सीता का त्याग कर दिया था तब माता सीता ने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में जाकर निवास किया था. वहीं उसी आश्रम में लव-कुश दोनों भाइयों ने जन्म लिया. वाल्मीकि के नाम को लेकर भी एक जनश्रुति प्रचलित है. कहा जाता है कि महर्षि वाल्मीकि की ध्यान शक्ति इतनी अद्भुत थी कि एक बार वे ध्यान में ऐसे लीन हुए कि दीमक ने उनके शरीर के ऊपर अपने घर के निर्माण कर लिया, लेकिन महर्षि का ध्यान तब भी भंग नहीं हुआ. जब महर्षि की साधना पूरी हुई तब जाकर ही उन्होंने दीमक को अपने शरीर पर से हटाया. कदाचित तभी से दीमक के घर को वाल्मीकि भी कहा जाने लगा.
डाकू से महर्षि कैसे बने वाल्मीकि
कथाओं के मुताबिक महर्षि वाल्मीकि का नाम रत्नाकर था और वे डाकू थे, बाद में जब उन्हें इस बात का ज्ञान हुआ कि वे गलत राह पर हैं तब उन्होंने उस रास्ते को छोड़ दिया. देवर्षि नारद ने उन्हें राम नाम जपने की सलाह दी, वे राम नाम में इस कदर लीन हो गए कि एक तपस्वी के रूप में ध्यान करने लग गए. मान्यता है कि उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें ज्ञान का भंडार दिया, जिसके बाद उन्होंने रामायण लिखी.