यूपी का माफियाराज में बात उस गैंगेस्टर की जिसने बनारस की तंग गलियों से जुर्म की दुनिया में कदम रखा और बन गया पूर्वांचल का सिरमौर. कौन है ये जरायम का सरताज जिसके गले तक कानून के हाथ भी नहीं पहुंच सके. आपको बताएं उससे पहले अगर आप जानना चाहते हैं शार्प शूटर माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी की अनसुनी कहानी या जानना चाहते हैं मोहब्बत में नाकाम भोला जाट कैसे बना जुर्म की दुनिया का बेताज बादशाह या जानना चाहते हैं गर्लफ्रेंड, महंगी गाड़ियों के शौकीन 'सुपारी किलर' अमित भूरा की खूनी दास्तां तो ईटीवी भारत पर यूपी का माफिया राज के नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर ज़रूर पढ़ें.
ये दौर था जब पूर्वांचल में मुख्तार अंसारी, बृजेश सिंह, मुन्ना बजरंगी सरीखे माफ़ियायों की सल्तनत चल रही थी. हर छोटे मोटे गुंडों के लिए ये 'आइडल' थे और वो इनकी तरह ही पूर्वांचल में राज करने का सपना देखते थे. ऐसा ही एक नौजवान था विश्वास शर्मा जो गंगा की लहरों को देखते पूरे बनारस ही नहीं पूरे पूर्वांचल पर हुकूमत करने का ख्वाब बुना करता. हालांकि उसके पिता श्रीधर अपना घरबार छोड़ नेपाल से करीब 500 किमी दूर भोले बाबा की नगरी आए थे अपने दो बच्चों की किस्मत संवारने का ख्वाब लेकर.
माफियाओं के किस्सों ने बदल दी ज़िन्दगी
काम में मशगूल श्रीधर बेटे विश्वास पर ध्यान नहीं दे पा रहा था और वो गली के आवारा लड़कों के साथ मिलकर तमाम ऐब पालता जा रहा था. बाबा भोलेनाथ की पवित्र नगरी वाराणसी वैसे तो मंत्रोच्चार, धार्मिक संवाद और आरती के घंटे घड़ियाल से गुंजायमान रहती है तो इसकी तंग गलियों में भटके युवा जुर्म की ए बी सी भी सीखते हैं. इन्ही में से एक था विश्वास शर्मा. बनारस की तंग गलियों में बड़ा होने वाला लड़का मोहल्ले में नेपाली के नाम से मशहूर हुआ. नेपाल में जन्म लेने के कारण उसे ये उपनाम मिला लेकिन यही नाम आगे चलकर आतंक का दूसरा नाम बन गया. काशी नगरी की कपिलेश्वर गली में किराए के मकान में विश्वास अपने एक भाई, एक बहन और माता पिता के साथ रहता था. गरीबी से आज़िज विश्वास पैसा कमाने की तरकीबें खोजा करता, इसके लिए उसे सीधा रास्ता नहीं जुर्म का रास्ता ही समझ आता था. तीन भाई बहनों में सबसे बड़े विश्वास नेपाली को इन तंग गलियों में मुख्तार अंसारी, ब्रजेश सिंह या मुन्ना बजरंगी जैसे माफिया डॉन के किस्से सुनने को मिलते थे. मुफलिसी की मार और माफिया डॉन्स के रुआबी किस्सों ने विश्वास के दिमाग पर ख़ासा असर डाला...और एक दिन उसने भी जुर्म के रास्ते पर पहला कदम बढ़ा दिया.
जुर्म की दुनिया में एंट्री
विश्वास अब जल्दबाज़ी में था, उसे जल्दी पैसे कमाने थे. गंगा के घाट पर बैठ कर गांजा के कश मारते मारते वो रोज़ाना नई नई प्लानिंग करता और आखिर उसने रंगदारी से अपना धंधा शुरू करने की योजना बनाई. पहले शिकार के तौर पर एक दाल व्यापारी को चुना. दाल व्यापारी से रंगदारी मांगी लेकिन व्यापारी ने पुलिस से शिकायत कर दी. विश्वास के खिलाफ साल 2001 में भेलुपुर थाने में पहला मुकदमा दर्ज हुआ. पुलिस नहीं चाहती थी कि बनारस में एक और गैंगस्टर पैदा हो, इसलिए डर पैदा करने के लिए विश्वास के पिता और भाई को थाने उठा लाई. 7 दिन तक विश्वास के पिता को थाने में रखा और जब छोड़ा तो उन्होंने बनारस ही छोड़ दिया. काशी और अपने बेटे से नाता तोड़ पिता श्रीधर वापस नेपाल चले गए. इंतकाम की आग में जल रहे विश्वास नेपाली ने मौका मिलते ही दिन दहाड़े दाल व्यापारी की हत्या कर दी जिसने उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई थी. इस सनसनीखेज़ हत्याकांड के साथ ही विश्वास नेपाली पुलिस और अपराधी दोनों की नज़रों में चढ़ चुका था.
जुर्म की काली दुनिया का हिस्सा बनते ही विश्वास को एक से बढ़कर एक कुख्यात आकाओं का साथ मिलने लगा. अनुराग त्रिपाठी उर्फ़ अन्नू त्रिपाठी, बाबू यादव, मोनू तिवारी, बंशी यादव जैसे कुख्यात अपराधियों का साथ मिलते ही विश्वास का विश्वास दोगुना हो गया. जुर्म के रास्ते पर उसके कदम और तेज़ी से बढ़ने लगे. रंगदारी मांगना उसका मुख्य पेशा हो गया था और हत्या कर देना उसके बाएं हाथ का खेल बन चुका था.
जब बाजार में विश्वास नेपाली ने खुद लगवाए अपने पोस्टर
पूर्वांचल की सबसे बड़ी दाल मडी विशेश्वरगंज के व्यापारियों के लिए वो दिन किसी बड़े तूफान से कम नहीं था. मंडी पहुंचते ही दीवारों पर लगे एक पोस्टर ने व्यापारियों की नींद उड़ा दी. यहां की हर दीवार पर एक पोस्टर लगा था जिसमें विश्वास नेपाली ने लिखा था कि जान प्यारी है तो पैसा देना पड़ेगा. ये पोस्टर खुद नेपाली ने प्रिंट कर हर दीवार पर लगवाये थे. ये पोस्टर विश्वास नेपाली ने खुद अपने कंप्यूटर से बनाये थे. अन्नू त्रिपाठी और बंशी यादव की जेल में हत्या के बाद विश्वास थोड़ा कमज़ोर ज़रूर पड़ा लेकिन किसी मौके पर पूर्वांचल के माफिया मुन्ना बजरंगी की नज़र विश्वास नेपाली पर पड़ गई. मुन्ना बजरंगी गैंग में एंट्री के साथ ही विश्वास नेपाली के अपराध का ग्राफ तेज़ी से बढ़ने लगा. मुन्ना बजरंगी जिन भी अपराधों को अंजाम देता उसका मास्टर प्लान विश्वास नेपाली बनाता था. अपराध को अंजाम देकर कैसे मौके से फरार होना है, ये नेपाली ही बताता था.
अपराध का हाईटेक तरीका
कहते हैं कि विश्वास नेपाली अपने पास कभी फोन नही रखता था. रंगदारी के लिए जब भी उसे फोन करना होता था तो नया नंबर लेता था, कॉल करता और सिम फेंक देता. इंटरनेट सर्फिंग में भी नेपाली माहिर था. विश्वास नेपाली ने जरायम की दुनिया में राज करने के लिए इंटरनेट का भी जमकर फायदा उठाया था. ये वो वक़्त था जब साइबर पुलिस उतनी एक्टिव नहीं थी और अपराधी भी इंटरनेट के बारे में कम जानते थे. उस वक़्त विश्वास ने इंटरनेट से जुड़े सभी दांव पेंच एक साइबर कैफे संचालक से सीख लिए थे. उसने अपने गुर्गे ऋषि पंडित उर्फ अर्जुन पंडित को भी इंटरनेट के इस्तेमाल के गुर सिखा दिए थे. साल 2012 को जब ऋषि पंडित को वाराणसी पुलिस ने गिरफ्तार किया तो उसने बताया कि विश्वास कभी भी अपने पास मोबाइल नही रखता था. वो जब भी किसी अपराध की योजना बनाता तो मेल के ड्राफ्ट में लिख कर छोड़ देता और जिसे पढ़ना होता वो ड्राफ्ट में ही खोल कर पढ़ लेता था. विश्वास नेपाली का यही तरीका उसे हमेशा पुलिस से बचाता रहा. विश्वास नेपाली वाराणसी का ही नही बल्कि अब पूर्वांचल में भी जरायम की दुनिया का एक बड़ा नाम बन गया था. मुन्ना बजरंगी का राईट हैण्ड बन चुके विश्वास नेपाली पर अब पुलिस ने 50 हजार का इनाम घोषित कर दिया था. विश्वास नेपाली के ऊपर अब तक हत्या, लूट और रंगदारी के करीब 17 मुकदमे दर्ज थे.