लखनऊ : विधानसभा चुनाव 2022 के बाद कांग्रेस ने प्रदेश में अपनी खस्ताहाल हालत को सुधारने के लिए नए प्रदेश अध्यक्ष के साथ ही छह प्रांतीय अध्यक्ष का नियुक्त किए थे. इस टीम का पहली परीक्षा उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव था. 13 मई को आए परिणाम में इस टीम की भी कलई खुल कर सामने आ गई. वर्ष 2023 का निकाय चुनाव का परिणाम कांग्रेस के लिए अच्छा नहीं रहा. वर्ष 2017 के चुनाव परिणाम की तुलना में परिणाम बेहतर खराब रहा है. आलम यह है कि खुद प्रदेश अध्यक्ष के साथ ही प्रांतीय अध्यक्ष तक भी अपने मूल्यों में पार्टी की नैया पार नहीं लगा पाए हैं. ऐसे में एक बार फिर से पार्टी संगठन नए सिरे से समीक्षा करने की तैयारी कर रहा है कि आखिर चुनाव में पार्टी से कहां गलतियां हो गई हैं.
बता दें. निकाय चुनाव के लिए राजनीतिक और जातीय समीकरण को देखकर सभी प्रांतीय अध्यक्षों को अलग-अलग क्षेत्रों की जिम्मेदारी सौंपी गईं. कुछ समय पहले ही बसपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए एक नेता को अवध क्षेत्र की जिम्मेदारी सौंपी गई. अवध क्षेत्र के समस्त जनपदों में पार्षद और महापौर प्रत्याशियों का चयन की जिम्मेदारी दी गई. हालांकि चुनाव में ने अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए. प्रदेश अध्यक्ष के गृह जनपद में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बृजलाल खाबरी के गृह जनपद जालौन में 11 सीटों में 9 पर पार्टी के प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई है. यहां की एक सीट पर पार्टी को कोई प्रत्याशी ही नहीं मिल पाया था. प्रदेश अध्यक्ष के गृह नगर उरई में कांग्रेस पार्टी चौथे स्थान पर रही.
कांग्रेस के कई चहेते प्रत्याशियों की जमानत जब्त, जानिए के प्रदर्शन की पूरी कहानी बताया गया है कि जिले की रामपुरा, माधौगढ़, उमरी नगर पंचायत में प्रत्याशियों के वोट तीन अंक तक नहीं पहुंच पाए. वर्ष 2017 के चुनाव में कांग्रेस को जिले में सिर्फ एक ही सीट पर सफलता मिल पाई थी. यह हाल सिर्फ प्रदेश अध्यक्ष के यहां ही नहीं कई प्रभारियों के जनपदों में भी देखा जा सकता है. कोई प्रदेश के सबसे अधिक कार्य क्षेत्र बनाने से नगर निगम में कांग्रेस 86 वार्ड पर प्रत्याशी उतारे थे. जिसमें से केवल 8 पर ही जीत मिली. वहीं 65 से अधिक सीटों पर कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई. इसके अलावा यहां के नगर पंचायत और नगरपालिका के सीट पर पार्टी का खाता तक नहीं खुला. यह जिला पार्टी के कद्दावर नेता व प्रांतीय अध्यक्ष अजय राय के कार्य क्षेत्र में आता है.
राजधानी लखनऊ की बात करें तो पार्टी की जिम्मेदारी बसपा से आए कद्दावर नेता नकुल दुबे के हाथ में है. पार्टी ने उन्हें अवध क्षेत्र की जिम्मेदारी सौंपी हुई है. नगर निकाय चुनाव की बात करें तो लखनऊ में वर्ष 2017 में पार्टी के पास सात पार्षद थे. 2023 में घटकर सिर्फ चार ही रह गए हैं. नगर पालिका और नगर पंचायत के चुनाव में भी पार्टी को कोई खास फायदा नहीं हुआ है. इसके साथ ही प्रभारी का चयनित महापौर प्रत्याशी तो अपनी जमानत तक नहीं बचा पाया. कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की मानें तो दूसरे दलों से आकर पार्टी की कमान संभालने वाले कई नेता अपनी राजनीति को चमकाने के लिए विपक्षी दलों के सम्पर्क में हैं. कांग्रेस के राज्यसभा सांसद प्रमोद तिवारी अपने प्रभाव के चलते लालगंज नगर पंचायत में चेयरमैन पद पर कांग्रेस के उम्मीदवार को जीत दिलाने में सफल रहे.
बहरहाल इस बार के निकाय चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा. प्रदेश के 17 मेयर पदों पर पार्टी का खाता तक नहीं खुला है. वर्ष 2017 में भी पार्टी एक सीट नहीं जीत पाई थी. इस बार भी वही स्थिति रही. कांग्रेस ने जहां पिछली बार 15 नगर निगम में कुल 110 पार्षद जीतने में कामयाब हुए थे. वहीं इस बार 17 नगर निगमों में केवल 77 पार्षद ही जीत सके हैं. नगर पालिका अध्यक्ष पद पर वर्ष 2017 में कुल नौ प्रत्याशी जीते थे. इस बार चार प्रत्याशी ही जीत पाए हैं. इसके अलावा नगर पालिका सदस्य 2017 में 158 प्रत्याशी जीते थे. इस बार 89 प्रत्याशी ही जीत दर्ज करने में कामयाब हो सके हैं. नगर पंचायत अध्यक्ष जहां पिछली बार 17 कांग्रेस उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी. वहीं इस बार यह आंकड़ा घटकर 13 रह गया है. नगर पंचायत सदस्य में 2017 में 126 कैंडिडेट जीत कर आए थे, इस बार केवल 77 ही रह गए हैं. निकाय चुनाव में कांग्रेस की हार पर मंथन का दौर भी शुरू हो गया है. जल्दी इस वर्ष में प्रदेश अध्यक्ष की अध्यक्षता में बैठक होगी. जिसमें सभी पदाधिकारियों को शामिल होने के लिए कहा गया है.
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