लखनऊ: उत्तर प्रदेश में टीबी मरीजों के इलाज के लिए नई गाइडलाइन जारी की गई है. इसमें 18 वर्ष से कम आयु के मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट (एमडीआर) टीबी मरीजों की दवा में बदलाव किया गया है. ऐसे में अब इन्हें इंजेक्शन से छुटकारा मिलेगा तो वहीं टेबलेट की डोज से ही वैक्टीरिया का सफाया हो सकेगा.
बता दें कि उत्तर प्रदेश में जनवरी से अब तक 2 लाख 54 हजार नए टीबी के मरीज रजिस्टर्ड किए गए हैं. वहीं 15 हजार मरीज ड्रग रेजिस्टेंट के हैं. इन सभी का नजदीकी डॉट्स सेंटर, डॉट्स प्लस सेंटर पर इलाज चल रहा है. टीबी ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल के अनुसार मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट (एमडीआर) के मरीजों के लिए नई दवा 'बीडाकुलीन' बेहद कारगर है, लेकिन अभी तक इसे सिर्फ 18 वर्ष से अधिक उम्र के मरीजों को मुहैया कराने का प्रावधान था. वहीं अब राष्ट्रीय क्षय नियंत्रण कार्यक्रम के तहत 5 से 18 वर्ष तक के मरीजों को भी 'बीडाकुलीन' से इलाज करने के निर्देश दिए गए हैं. ऐसे में इस उम्र के मरीजों को भी इंजेक्शन से छुटकारा मिलेगा.
ओरल डोज ट्रीटमेंट पर जोर, 6 माह का कोर्स
राज्य क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम अधिकारी डॉ. संतोष कुमार के मुताबिक मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट (एमडीआर) टीबी मरीजों के इलाज की नई गाइडलाइन जारी की गई है. देश को वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त बनाने का लक्ष्य तय किया गया है. ऐसे में नए मरीजों की खोज के साथ-साथ उनके संपूर्ण इलाज पर ध्यान दिया जा रहा है. इसी कड़ी में अब देश में 5 से 18 वर्ष तक के मरीजों को भी ओरल डोज ट्रीटमेंट में शामिल किया गया है. इसमें इंजेक्शन से छुटकारा मिलेगा. वहीं लाखों रुपये का 6 माह का 'बीडाकुलीन' दवा का कोर्स मुफ्त मिलेगा.
इंजेक्शन से दर्द से इलाज ब्रेक होने का खतरा
डॉ. संतोष कुमार के मुताबिक मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट (एमडीआर) टीबी मरीजों के लिए 6 से 7 दवाएं चलती हैं. इनमें केनामाइसिन, कैप्रियोमाइसिन इंजेक्शन भी शामिल है. टेबलेट-इंजेक्शन की कंबाइंड डोज मरीजों के वजन और बीमारी के लिहाज से 9 माह से 2 वर्ष तक दी जाती है. इस दौरान इंजेक्शन कई बार मरीज छोड़ देते हैं. ऐसे में ट्रीटमेंट ब्रेक होने का खतरा रहता है.