लखनऊः कारगिल में दुश्मन सेना को धूल चटाकर विजय पताका फहराने वाले उत्तर प्रदेश के अमर शहीद कैप्टन मनोज पांडेय को उनके शहीद दिवस पर उत्तर प्रदेश सैनिक स्कूल परिवार ने श्रद्धांजलि दी. उत्तर प्रदेश सैनिक स्कूल परिसर स्थित शहीद स्मारक में परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज कुमार पांडेय को श्रद्धांजलि देने के लिए शुक्रवार को उनके पिता गोपीचंद पांडेय मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए. अमर शहीद कैप्टन मनोज कुमार पांडेय के नाम पर ही उत्तर प्रदेश सैनिक स्कूल का नाम बदलकर कैप्टन मनोज कुमार पांडेय उत्तर प्रदेश सैनिक स्कूल रखा गया था.
विद्यालय परिवार ने अर्पित की श्रद्धांजलि
विद्यालय के प्रधानाचार्य लेफ्टिनेंट कर्नल उदय प्रताप सिंह के साथ सैनिक स्कूल परिवार ने अपने इस अमर सपूत को याद किया. सैनिक स्कूल के इस होनहार बलिदानी ने राष्ट्र रक्षा के लिए कारगिल युद्ध में अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया था. इस कार्यक्रम में उनके जीवन वृत्त पर प्रकाश डाला गया और विद्यालय में उनसे जुड़े संस्मरण सुनाए गए. वहीं विद्यालय परिसर के सभी सदस्यों ने नम आंखों से अपने सपूत कैप्टन मनोज पांडेय को श्रद्धा सुमन अर्पित किए.
सैनिक स्कूल से मनोज पांडेय ने की थी पढ़ाई
कैप्टन मनोज पांडेय का जन्म 25 जून 1975 को सीतापुर में हुआ था, उनके पिता का नाम गोपीचंद पांडेय और माता का नाम मोहिनी पांडेय है. वह अपने परिवार के सबसे बड़े बेटे थे. उन्होंने उत्तर प्रदेश सैनिक स्कूल में शिक्षा प्राप्त की और राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के 90वीं कोर्स में प्रवेश किया. अपने एसएसबी के साक्षात्कार में जब साक्षात्कारकर्ता ने उनसे पूछा कि आप सेना में क्यों शामिल होना चाहते हैं तो उनका स्पष्ट उत्तर था कि मैं परमवीर चक्र जीतना चाहता हूं. कंधे एवं जांघ में गोली लगने के बाद भी उन्होंने अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए अपने कर्तव्य का निष्ठापूर्वक निर्वाह किया. उन्होंने पहले बंकर पर कब्जा किया और 2 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया. कारगिल अभियान की सफलता में यह एक निर्णायक और महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ.
मरणोपरांत मिला परमवीर चक्र
दो-तीन जुलाई 1999 की मध्य रात्रि में ऑपरेशन विजय के दौरान अदम्य साहस और अभूतपूर्व नेतृत्व का प्रदर्शन करते हुए कारगिल के बटालिक सेक्टर में खालूबार पहाड़ियों की जुबार चोटी पर मनोज पांडेय वीरगति को प्राप्त हुए. कैप्टन मनोज भारतीय सेना की रेजिमेंट 1/11 गोरखा राइफल्स के अधिकारी थे. उन्हें मरणोपरांत भारतीय सेना के वीरता के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया.