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अपर्णा का जनाधार नहीं पर सियासी संदेश देने में कामयाब रही भाजपा - भारतीय जनता पार्टी

मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव को भारतीय जनता पार्टी में शामिल कर बीजेपी ने बड़ा संदेश देने की कोशिश की है. हालांकि अपर्णा यादव का यह कदम कोई चौंकाने वाली बात नहीं है. वह पिछले कई साल से भाजपा के कामों, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की खुलकर प्रशंसा करती रही हैं. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी उन्हें बधाई देकर साफ कर दिया कि वह अपर्णा के कदम से हैरान नहीं हैं और उन्हें अंदाजा था कि वह भाजपा की राह पकड़ सकती हैं.

सियासी संदेश देने में कामयाब रही भाजपा
सियासी संदेश देने में कामयाब रही भाजपा

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Published : Jan 19, 2022, 8:02 PM IST

लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी ने सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव को पार्टी में शामिल कर समाजवादी परिवार में बड़ी सेंध लगाने का काम किया है. दूसरी ओर दिल्ली में एनडीए के सहयोगी दलों ने साझा पत्रकार वार्ता कर एकता का संदेश दिया. वहीं छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में पत्रकारों से बात कर किसानों के मुद्दे पर भाजपा सरकार को जमकर घेरा. इन सभी खबरों के क्या मायने हैं, आइए समझते हैं...

मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव को भारतीय जनता पार्टी में शामिल कर बीजेपी ने बड़ा संदेश देने की कोशिश की है. हालांकि अपर्णा यादव का यह कदम कोई चौंकाने वाली बात नहीं है. वह पिछले कई साल से भाजपा के कामों, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की खुलकर प्रशंसा करती रही हैं. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी उन्हें बधाई देकर साफ कर दिया कि वह अपर्णा के कदम से हैरान नहीं हैं और उन्हें अंदाजा था कि वह भाजपा की राह पकड़ सकती हैं. दरअसल अपर्णा यादव 2017 में लखनऊ की कैंट विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ीं थीं, किंतु उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था. इसके बाद सपा में उन्हें अधिक तवज्जो नहीं मिली. वह राजनीतिक रूप से बहुत महत्वाकांक्षी हैं और चाहती थीं कि वह सक्रिय रूप से पार्टी में अपना योगदान करें, किंतु समाजवादी पार्टी में उन्हें अहमियत नहीं मिल सकी. दूसरी ओर परिवार का झगड़ा है. मुलायम सिंह यादव व उनकी दूसरी पत्नी साधना गुप्ता के पुत्र प्रतीक यादव की पत्नी अपर्णा 'यादव परिवार' में अलग-थलग ही रहीं. पांच साल में परिवार के झगड़े न सुलझते देख अपर्णा ने अलग राह पकड़ना ही उचित समझा. अपर्णा का कोई जनाधार नहीं है और न ही वह कोई स्थापित नेता हैं, इसलिए समाजवादी पार्टी पर उनके जाने से कोई खास प्रभाव नहीं पड़ने वाला है. हां, एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव जरूर रहेगा. हालांकि यह भी देखना होगा कि क्या आगे चुनाव प्रचार आदि में अपर्णा 'यादव परिवार' में अपनी उपेक्षा की बात जनता के सामने रखती हैं या नहीं. इतना जरूर है कि अपर्णा को भाजपा में लाकर पार्टी ने सपा पर एक दबाव जरूर डाला है.

भाजपा सरकार में पांच साल मंत्री रहने वाले ओबीसी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य व दो अन्य मंत्रियों के समाजवादी पार्टी में शामिल होने से भाजपा बैकफुट पर थी. इस डैमेज को कंट्रोल करने के लिए बुधवार को एनडीए के सहयोगी दलों की साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर एकजुटता का संदेश दिया. अनुप्रिया पटेल सहित एनडीए के अन्य पिछड़े नेताओं ने यह बताने का प्रयास किया कि सपा में गए पिछड़े नेता अवसरवादी हैं और पांच साल सरकार में रहने के बाद अवसर देखकर पाला बदल लिया. भाजपा की यह कोशिशें अपनी जगह हैं, किंतु जनता दल बदल और दावों दोनों को समझती है. चुनावी मौसम में दलों की कोशिशें अपनी जगह हैं, किंतु जनता का वोट किसके खाते में और क्यों जाएगा, इसके पीछे के कई पहलू होते हैं.

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छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बुधवार को प्रदेश कांग्रेस कार्यालय पर कृषि पर श्वेत पत्र जारी करते हुए भाजपा सरकार में किसानों की उपेक्षा पर आड़े हाथों लिया. उन्होंने कहा कि भाजपा ने वादा किया था कि किसानों की आय दोगुनी होगी, किंतु किसानों का दर्द दोगुना होगा. दरअसल बघेल का सरकार को घेरने का यह कामयाब दांव है. सरकार के दावे अपनी जगह हैं, किंतु जमीनी हालात में आजतक कोई बदलाव नहीं दिखाई दे रहा. किसानों की उन्नति के नाम पर चंद गिने-चुने चेहरे ही मिलेंगे. गांव-गिरांव में लोगों का कृषि से मोह भंग होता जा रहा है. यह कहना कठिन है कि बघेल की कोशिशों का प्रदेश में कांग्रेस को कितना लाभ होगा, लेकिन उन्होंने पीड़ित किसानों के मन को तो छुआ ही है.

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