लखनऊ : प्रदेश में बड़ी संख्या में आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति के रूप में मदद देकर आगे की पढ़ाई पूरी करने में समाज कल्याण विभाग मदद करता है. कुछ वर्ष पहले छात्रवृत्ति में बड़े-बड़े घोटाले भी सामने आए, लेकिन 2022 में जब योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी तो आईपीएस की नौकरी छोड़ राजनीति में आए असीम अरुण को समाज कल्याण विभाग का जिम्मा दिया गया. असीम अरुण ने बड़ी मेहनत से भ्रष्टाचार रूपी गंदगी हटाने का अभियान चलाया. पारदर्शिता लाने के लिए उन्होंने योजनाओं में तमाम बड़े बदलाव भी किए. विद्यार्थियों के खातों में छात्रवृत्ति का पैसा सीधे ट्रांसफर किए जाने की व्यवस्था हुई. समाज कल्याण विभाग भविष्य में अपने काम को बेहतर करने के लिए और क्या योजनाएं बना रहा है, यह जानने के लिए हमने बात की इस विभाग के स्वतंत्र प्रभार के मंत्री असीम अरुण से. देखिए पूरी बातचीत...
भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के लिए नीतियां बदलीं : समाज कल्याण विभाग महत्वपूर्ण महकमा है और आप बड़ी जिम्मेदारी निभा रहे हैं. आपने सुधारों और भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के लिए कई नीतियां बदली हैं. छात्रवृत्ति को लेकर आपने हाल के दिनों में क्या बदलाव किए हैं? इस पर समाज कल्याण मंत्री असीम अरुण कहते हैं 'अभी जो बदलाव किए गए हैं, वह डीबीटी (डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर) यानी सीधे खाते में पैसा भेजने के लिए काम किया गया है. सभी लाभार्थियों को आधार कार्ड से जोड़ा गया है. इससे जितने घपले की संभावनाएं थीं, वह काफी हद तक हम लोग दूर कर चुके हैं. हालांकि यह चोर-सिपाही का खेल है. हमें लगातार देखना है कि कहीं और कोई संभावना तो नहीं है. अब हम लोग छात्रवृत्ति के मामले में बहुत बड़ा परिवर्तन कर रहे हैं. चरणबद्ध तरीके से विद्यालयों में फेशियल रिकग्निशन सिस्टम ला रहे हैं. क्योंकि हमने पाया कि घपला तो अब नहीं हो रहा है, लेकिन बच्चों का दाखिला कराया गया, वह बच्चे कॉलेज कभी आए भी नहीं. उनकी छात्रवृत्ति ले ली गई और उन्होंने कभी परीक्षा भी नहीं दी. अथवा वह फेल हो गए पहले साल में या दूसरे साल आए ही नहीं. इसे टेक्निकली भ्रष्टाचार तो नहीं कह सकते, लेकिन सरकार को पैसा तो बर्बाद हुआ ही.
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यूपी में कैशलेस पढ़ाई :क्या आपकी सरकार मायावती सरकार की तरह विद्यार्थियों को कैशलेस पढ़ाई की सुविधा देगी? बच्चों को छात्रवृत्ति बाद में दिए जाने के बजाय सीधे कॉलेजों को विभाग से पैसा जाए और बच्चों को बिना पैसों के दाखिले मिल सकें. क्या ऐसी कोई नीति लाने की योजना है सरकार की? इस पर मंत्री असीम अरुण कहते हैं 'यह केंद्र सरकार की योजना थी, जिसमें कि बच्चों को फीस नहीं देनी होती थी, विद्यालयों को सीधे छात्रवृत्ति का पैसा पहुंच जाता था. इसको लेकर बहुत बड़े-बड़े घपले हुए. मदरसा बोर्ड में भी यही हुआ. जांच में पता चला कि न मदरसा है और न ही बच्चे, लेकिन पैसा वहां चला गया. इसको बदलने के लिए आधार के माध्यम से सीधे बैंक खातों में पैसा भेजने की व्यवस्था की गई. हमें उसके अच्छे परिणाम भी मिले. हालांकि अब यह समस्या सामने आने लगी कि जिस बच्चे की पारिवारिक आय ही दो लाख रुपये है, वह कैसे 50 हजार रुपये प्रतिवर्ष की फीस भरे. उसे यह भी नहीं पता कि अंत में उसे छात्रवृत्ति मिलेगी भी या नहीं. हमने इसे समझा और आमूलचूल तरीके से इसे बदल दिया. इस बार जब पोर्टल खुला है, तो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति विद्यार्थियों के लिए फ्रीशिप कार्ड की व्यवस्था को लागू किया है. इसका मतलब यह हुआ कि बच्चे हमारे पोर्टल पर आएंगे. किस कॉलेज में दाखिला चाहते हैं, यह जानकारी देंगे, जिसके बाद उन्हें एक पेज का प्रिंट आउट मिल जाएगा. जब विद्यार्थी वह फार्म लेकर संबंधित कॉलेज जाएंगे, तो उन्हें 'जीरो बैलेंस पर' दाखिला मिल जाएगा. यह व्यवस्था अभी सरकारी और अनुदानित विद्यालयों में लागू है. निजी विद्यालयों में हम यह व्यवस्था अगले साल से लागू करेंगे.