उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

लखनऊ पोस्टर विवाद: सुप्रीम कोर्ट से यूपी सरकार को झटका - लखनऊ में पोस्टर मामला

लखनऊ में हुई सीएए हिंसा में शामिल आरोपियों के पोस्टर लगाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, जिसके बाद तीन जजों की बेंच को इस मामले को सौंप दिया गया है.

लखनऊ पोस्टर विवाद
सुप्रीम कोर्ट से यूपी सरकार को झटका

By

Published : Mar 12, 2020, 1:20 PM IST

लखनऊ:उत्तर प्रदेश में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान कथित रूप से हिंसा फैलाने वालों के पोस्टर लखनऊ में लगाए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से दलील दी कि निजता के अधिकार के कई आयाम हैं.

कोर्ट ने कहा है कि यह मामला बहुत महत्वपूर्ण है और यूपी सरकार से पूछा है कि क्या उसके पास इस तरह के पोस्टर लगाने की शक्ति है. कोर्ट ने यूपी सरकार से कहा कि अब तक, ऐसा कोई कानून नहीं है जो आपकी कार्रवाई को वापस कर सके.

इलाहाबाद के चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस रमेश सिन्हा की बेंच ने अपने आदेश में कहा कि लखनऊ के जिलाधिकारी और पुलिस कमिश्नर 16 मार्च तक होर्डिंस हटवाएं. साथ ही इसकी जानकारी रजिस्ट्रार को दें. हाईकोर्ट ने दोनों अधिकारियों को हलफनामा भी दाखिल करने का आदेश दिया है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीएए प्रदर्शन के दौरान कथित हिंसा के आरोपियों का पोस्टर हटाने का आदेश दिया है. लखनऊ के अलग-अलग चौराहों पर वसूली के लिए 57 कथित प्रदर्शनकारियों के 100 पोस्टर लगाए गए हैं.

हाईकोर्ट के आदेश को उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट जनरल राघवेंद्र सिंह ने कहा कि सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा था

हाईकोर्ट की विशेष खंडपीठ ने 14 पेज के फैसले में राज्य सरकार की कार्रवाई को संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत निजता के अधिकार (मौलिक अधिकार) के विपरीत करार दिया था. अदालत ने कहा था कि मौलिक अधिकारों को छीना नहीं जा सकता है. ऐसा कोई भी कानून नहीं है जो उन आरोपियों की निजी सूचनाओं को पोस्टर-बैनर लगाकर सार्वजनिक करने की अनुमति देता है, जिनसे क्षतिपूर्ति ली जानी है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि सामान्यतय: न्यायपालिका में आने पर ही अदालत को हस्तक्षेप का अधिकार होता है, लेकिन जहां अधिकारियों की लापरवाही से मूल अधिकारों का उल्लंघन किया गया हो, अदालत किसी के आने का इंतजार नहीं कर सकती. निजता के अधिकार के हनन पर अदालत का हस्तक्षेप करने का अधिकार है. साथ ही प्रदेश सरकार से 16 मार्च तक पोस्टर हटाने के संबंध में की गई कार्रवाई पर रिपोर्ट देने के आदेश दिए थे.

इस आदेश के बाद प्रदेश सरकार ने उच्चस्तरीय मंथन किया. इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के सभी पहलुओं पर मंथन और विधिक राय के लिए लखनऊ के लोकभवन में उच्चस्तरीय बैठक हुई. तमाम तकनीकी पहलुओं पर मंथन के बाद तय किया गया कि इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की शरण ली जाएगी. लिहाजा, बुधवार को प्रदेश सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल कर दी गई थी.

इसे भी पढ़ें:-CAA हिंसा के आरोपियों का पोस्टर हटाने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई शुरू

ABOUT THE AUTHOR

...view details