लखनऊ: रेशम निदेशालय उत्तर प्रदेश की ओर से पांच दिवसीय सिल्क एक्सपो की शुरुआत हुई. सिल्क एक्सपो गोमती नगर स्थित पर्यटन भवन में लगाया गया है. इस दौरान मुख्य अतिथि राज्यमंत्री चौहान उदय भान सिंह ने इसका शुभारंभ किया. एक्सपो में रेशम उत्पादन से वस्तु उत्पादन की सभी विधाओं और गुणवत्ता युक्त रेशम कीट पालन, कोया उत्पादन, धागा करण तक की गतिविधियों को प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया. आम जनमानस का शुद्ध सिल्क की पहचान कराने के लिए वस्त्र परीक्षण प्रयोगशाला, केंद्रीय रेशम बोर्ड वाराणसी द्वारा परीक्षण किया जा रहा है.
पर्यटन भवन में सिल्क एक्सपो की शुरुआत, किसानों को बांटा गया पुरस्कार
लखनऊ में रेशम निदेशालय उत्तर प्रदेश की ओर से पांच दिवसीय सिल्क एक्सपो की शुरुआत की गई है. इसका शुभारंभ राज्यमंत्री चौहान उदय भान सिंह ने किया. कार्यक्रम के दौरान रेशम कीट पालकों को सम्मानित भी किया गया.
उत्तर प्रदेश में रेशम उत्पादन का कार्य 57 जिलों में किया जा रहा है. शहतूती (44 जनपद), टसर (13 जनपद) और एरी (8 जनपद) में रेशम का उत्पादन किया जा रहा है. 25000 कृषक परिवार इस व्यवसाय से जुड़े हैं. सिल्क एक्सपो में कर्नाटक, मध्य प्रदेश, दिल्ली, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश राज्यों के 29 रेशमी वस्त्र उत्पादकों और व्यापारियों ने अपने रेशमी उत्पाद बेचने के लिए स्टॉल लगाया. मुख्य अतिथि ने प्रदर्शनी के स्टालों का अवलोकन किया और सचिव व निदेशक (रेशम), उत्तर प्रदेश ने दीप प्रज्ज्वलन कर पंडित दीनदयाल रेशम उत्पादकता पुरस्कार वितरण कार्यक्रम का शुभारंभ किया.
किसानों को किया गया सम्मानितट
कार्यक्रम में रेशम कीट पालकों के मध्य प्रतिस्पर्धा जागृत किए जाने के उद्देश्य से शहतूती, टासर और अरंडी क्षेत्र के 47 चयनित सर्वश्रेष्ठ रेशम कोया उत्पादकों और धागा करण क्षेत्र से दो व बुनाई क्षेत्र से एक उद्यमी को 11000 रुपए पुरस्कार राशि, शॉल और मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया. वाराणसी की शहतूती सेक्टर की राविया, सोनभद्र की टसर सेक्टर से मनीषा देवी और चित्रकूट से एरी सेक्टर के लिए रिंकू को सम्मानित किया गया.
राज्य मंत्री ने दिए निर्देश
इस दौरान राज्य मंत्री उदय भान सिंह ने प्रदेश में रेशम की मांग के सापेक्ष उत्पादन करने के लिए विभाग आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिए. उन्होंने बताया कि प्रदेश में रेशम उत्पादन को बढ़ावा दिए जाने के लिए रेशम उत्पादन की समस्याओं और संभावनाओं को दृष्टिगत रखते हुए कर्नाटक स्टेट सेरीकल्चर रिसर्च एंड डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट बेंगलुरू के वैज्ञानिकों से अध्ययन कराया गया है, जिसमें तराई और मैदानी क्षेत्र के 15 जनपदों को चिन्हित करते हुए रेशम उत्पादन के कार्य पर फोकस किए जाने का सुझाव दिया है.