लखनऊ: अगस्त क्रांति को क्रांति दिवस के तौर पर मना रही समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों पर धरना दे रही है. हालांकि पार्टी के इस कदम को उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल का ताज छिनने से उत्पन्न बेचैनी की कवायद माना जा रहा है, लेकिन समाजवादी पार्टी का एक खेमा पार्टी के हल्ला बोल तेवर का समर्थक है.
समाजवादी पार्टी में अभी ऐसे कार्यकर्ताओं और नेताओं की बड़ी तादाद है, जो चाहते हैं कि समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल है तो उसी के अनुरूप सरकार के खिलाफ सड़क पर आंदोलन की अगुवाई भी करें. लेकिन पार्टी ने पिछले दिनों कई ऐसे मौके गवाएं हैं. सोनभद्र नरसंहार कांड में कांग्रेस की प्रियंका गांधी दिल्ली से चलकर मिर्जापुर पहुंच गई, लेकिन समाजवादी पार्टी के शीर्ष नेताओं ने इस दिशा में सोचा भी नहीं. बाद में पार्टी ने वहां अगले दिन अपना एक प्रतिनिधिमंडल भेजा.
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इसके तुरंत बाद समाजवादी पार्टी ने रामपुर में अपने पार्टी नेता मोहम्मद आजम खां के समर्थन में कई जिलों के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को प्रदर्शन के लिए भेजा. यह कार्यक्रम भी अपेक्षा के अनुरूप अंजाम नहीं पा सका. ऐसे में जब समाजवादी पार्टी एक बार फिर उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ ताल ठोंक रही है, तो सवाल यह जरूर खड़ा हो रहा है कि क्या वह सरकार विरोधी माहौल बनाने में कामयाब हो सकेगी.
समाजवादी पार्टी ने पिछले दिनों कई ऐसे मौके गवांए हैं, जिनसे उसकी राजनीतिक साख कम होती दिखाई दे रही है. लोकसभा में समाजवादी पार्टी के नेता मोहम्मद आजम खां ने पहले पार्टी की किरकिरी कराई. उसके बाद धारा 370 पर भी पार्टी लोकसभा में पूरी तरह कंफ्यूज दिखाई दी. ऐसे में अगस्त क्रांति के बहाने पार्टी उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी खोई जमीन को कितना वापस हासिल कर पाएगी यह एक बड़ा सवाल है.
-योगेश मिश्र, राजनीतिक विश्लेषक