राजनीतिक विश्लेषक डॉ मनीष हिंदवी लखनऊ : उत्तर प्रदेश का मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी, सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को मुद्दों पर घेरने के बजाय ऐसे सतही और हल्के विषय उठा रही है, जो यह सोचने पर विवश करते हैं कि क्या पार्टी में विचारशील लोग नहीं हैं अथवा उन्हें असल मुद्दों की समझ नहीं है. छह साल से प्रदेश की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी की असफलताएं गिनाना इतना भी कठिन नहीं है कि उसे घेरने के लिए सतही विषयों का सहारा लिया जाए. किसानों की आमदनी दोगुनी करने का विषय हो या भ्रष्टाचार के मसले, बिजली की लगातार बढ़ती दरें हों या भवन निर्माण सामग्री की आसमान छूती कीमतें, छुट्टा पशुओं से बर्बाद होते किसानों का दर्द हो या युवाओं को रोजगार देने का मसला, ऐसे अनेक विषय हैं, जिन पर थोड़ा तैयारी करने के बाद सत्तारूढ़ दल से सवाल किए जा सकते हैं कि आखिर उन्होंने इन विषयों में क्या किया? यही नहीं सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव सत्तारूढ़ दल को घेरने के लिए सबसे ज्यादा ट्विटर का सहारा लेते हैं, जबकि इससे बड़े प्लेटफार्म उनके सामने हैं.
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का टि्वटर अकाउंट देखने से पता लगता है कि वह 2012 से 2017 तक अपनी सरकार के काम पर मुग्ध हैं. वह यह बताते नहीं थकते कि जब खुद मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने कौन-कौन से विकास के काम किए. हर दो-एक दिन में उनके ट्विटर से अपनी सरकार में किए गए कामों की प्रशंसा और वर्तमान सरकारों से तुलना दीवानगी देखी जा सकती है. अखिलेश यादव को यह समझना होगा कि यदि समाजवादी पार्टी सरकार ने इतना ही अच्छा काम किया था तो उसे जनता ने नकार क्यों दिया? और यदि जनता विकास की भाषा समझती ही नहीं तो फिर अखिलेश यादव के वही बात दोहराने से क्या फायदा. कोई भी दल सत्ता में आने के लिए वही बातें कहता और करता है, जिससे जनता का सरोकार हो और जनता प्रभावित होकर उसे सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाए. स्वाभाविक है अखिलेश यादव के दावों को जनता पहले ही नकार चुकी है. वह भी एक नहीं दो दो बार. ऐसे में उन्हें इससे निकल कर नए मुद्दों की तलाश करनी चाहिए. यही नहीं सारस, सड़क पर चलते छुट्टा जानवरों और अपनी सरकार की उपलब्धियों से इतर सत्तारूढ़ भाजपा सरकार की खामियां ढूंढने पर काम करना चाहिए. जनता के सामने जब तक सरकार एक्सपोज नहीं होती, वह सत्ता से बाहर नहीं होगी.
हाल के दिनों में अखिलेश यादव द्वारा किए गए ट्वीट देखें तो उनमें कभी सड़क पर घूमते आवारा पशुओं का विषय होता है, तो कभी बनारस में असमय बारिश और ओलावृष्टि जैसी आपदा की शिकार हुई टेंट सिटी पर मखौल, कभी वह वन विभाग द्वारा सारस को पक्षी विहार ले जाने का विषय उठाते हैं तो कभी सिपाहियों द्वारा जीप को धक्का लगाए जाने का मुद्दा. थानों और तहसीलों में भ्रष्टाचार आज भी चरम पर है, लेकिन यह मुद्दा अखिलेश यादव को शायद प्रासंगिक न लगता हो. यह बात दीगर है कि जिन लोगों से थानों और तहसीलों में अवैध वसूली की जाती है, वह गरीब गांव के निवासी होते हैं. भवन निर्माण सामग्री की बात करें तो चाहे लोहा हो, मौरंग या सीमेंट की बात हो, हर एक वस्तु के दाम सपा के शासनकाल में रहे दामों से काफी ज्यादा हैं. पिछली भाजपा सरकार में तो एक बोरी सीमेंट के बराबर एक बोरी मौरंग के दाम पहुंच गए थे. 2022 के विधानसभा चुनाव में खुद प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ने किसानों को छुट्टा जानवरों से मुक्ति दिलाने का वादा किया था. सपा अध्यक्ष और उनके सलाहकार इसकी हकीकत क्यों नहीं जांचते. क्यों नहीं इस विषय को मुद्दा बनाकर बड़ा आंदोलन खड़ा करते हैं. ऐसा नहीं है कि कोई सरकार पूरी की पूरी दूध में धुली है. जब भारतीय जनता पार्टी विपक्ष में थी, तब उसने विपक्ष की अच्छी भूमिका निभाई और सत्ता पक्ष की हर नाकामी को जोर-शोर से उठाकर जनता में अपना विश्वास जीता. अब यह सपा को तय करना है कि वह कैसी रणनीति बनाते हैं, सत्ता पाने के लिए.
इस विषय में राजनीतिक विश्लेषक डॉ मनीष हिंदवी कहते हैं कि 'अखिलेश यादव के जो ट्वीट आ रहे हैं, चाहे वो सारस वाले मसले पर हो या और अन्य मसलों पर छोटे-छोटे ट्वीट आ रहे हैं. इसको लेकर प्रदेश में निराशा तो है कि बड़े-बड़े मसले हैं. जैसे योगी सरकार बार-बार कहती है कि करप्शन खत्म, जीरो टॉलरेंस. गलत है करप्शन बढ़ गया है. लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति ऐसी नहीं है जैसी वह दिखाना चाह रहे हैं. महंगाई है, बेरोजगारी है, तमाम ऐसे मसले हैं जो कहीं ना कहीं प्रदेश को परेशान कर रहे हैं. बिजली की बढ़ती कीमतें हैं, तमाम चीजें हैं, लेकिन जो विपक्ष का रुख होना चाहिए था वह रुक नहीं दिख रहा है. परेशानी का मुद्दा यह है वह विपक्ष जो गति को रोक दिया करता था वह चर्चा का विषय बन कर रह गया है और वह विपक्ष दिख नहीं रहा है. कोई बड़ा आंदोलन, कोई बड़ी बंदी मेरे तो दिमाग में नहीं आती है, जो इधर हाल फिलहाल में हुई हो. यह बात ठीक है कि विपक्ष अब अपनी भूमिका का निर्वाहन वैसे नहीं कर पाता रहा है जहां उसे करना चाहिए. ट्वीट करना एक बात हो सकती है. सोशल मीडिया का जमाना है, हमें सोशल मीडिया को अपने प्रभाव में रखना है, लेकिन सड़क का आंदोलन सड़क का आंदोलन होता है. गति और दिशा उसी से बदलती है. अब वक्त आ गया है कि बड़े मसलों को उठाया जाए. आने वाले समय में निकाय चुनाव हैं. उसेके बाद लोकसभा चुनाव है, जो बहुत कुछ तय करेंगे चीजों को. भाजपा की जो सबसे ज्यादा ताकत है वह केंद्र की सरकार से है. अगर केंद्र में सरकार हिलती है या बदलती है तो कहीं ना कहीं पूरे विपक्ष को फायदा करेगी, लेकिन वह फायदा लेने के लिए विपक्ष को सड़क पर उतरना पड़ेगा और गंभीर मसलों को उठाना पड़ेगा.'
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