लखनऊ :अस्थमा में सांस की नलियों में जलन, सिकुड़न या सूजन की स्थिति और उनमें ज़्यादा बलगम बनना, जिससे सांस लेने में कठिनाई होती है. केजीएमयू के पल्मोनरी एवं क्रिटिकल केयर विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. वेद प्रकाश के मुताबिक दमा मामूली हो सकता है या इसके होने पर रोज़मर्रा के काम करने में समस्या आ सकती है. कुछ मामलों में इसकी वजह से जानलेवा दौरा भी पड़ सकता है. मौजूदा समय में वातावरण में प्रदूषण होने के कारण भी दमा के मरीजों को खास दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. कई बार प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ जाता है कि अस्थमा का मरीज जब बाहर निकलता है तो उसकी हालत गंभीर हो जाती है. अस्थमा के बारे में जागरूकता बढाने और बेहतर अस्थमा नियंत्रण के लिए मई के पहले मंगलवार को विश्व अस्थमा दिवस मनाया जाता है. ग्लोबल इनिशएटिव फार अस्थमा (GINA) ने 2023 विश्व अस्थमा दिवस के लिए थीम के रूप में "अस्थमा केयर फॉर ऑल" को चुना है. अस्थमा केयर फॉर ऑल संदेश दिया है.
डॉ. वेद ने कहा कि प्रदूषण तो अस्थमा का एक कारक है ही, लेकिन इसके अलावा मॉस्किटो कॉइल और स्मोकिंग भी बड़ा कारक है. मॉस्किटो कॉइल से निकलने वाला धुआं सौ सिगरेट के धुएं के बराबर होता है. इसलिए देखा गया है कि जिन घरों में मॉस्किटो कॉइल जलाया जाता है उस घर के किसी न किसी सदस्य को अस्थमा जरूर होता है. इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में चुल्हे के सामने बैठकर खाना बनाने वाली महिलाओं को भी अस्थमा होता है. उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी समस्या यही है कि जिन लोगों को अस्थमा है उन्हें इस बात की खबर ही नहीं है अगर समय पर समुचित इलाज मिल जाए तो इन मरीजों को अस्थमा से मुक्ति मिल सकती है. इसके अलावा घर में अगर कोई व्यक्ति धूम्रपान करता है तो धूम्रपान के जरिए निकलने वाले धुएं से महिलाएं व बच्चे व बुजुर्ग अधिक प्रभावित होते हैं.
अस्थमा से हर वर्ष अनुमानित रूप से 2.5 लाख लोगों की मृत्यु होती है. पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अस्थमा अधिक पाया जाता है. अस्थमा मुख्य रूप से बच्चों में होता है और दुनियाभर में अनुमानित 14 प्रतिशत बच्चे इस बीमारी से प्रभावित हैं. हर वर्ष अस्थमा के चलते कई बच्चों का स्कूल छूटना है. अस्थमा की बीमारी से पड़ने वाला आर्थिक बोझ बहुत महत्वपूर्ण है. वर्ष 2021 में एक अनुमान के हिसाब से पूरे विश्व में लगभग रु 6 लाख करोड अस्थमा की बीमारी से निपटने के लिए खर्च हुए हैं.
ग्लोबल अस्थमा रिपोर्ट 2018 के अनुसार लगभग 6.2 प्रतिशत भरतीय (लगभग 74 मिलियन लोग) अस्थमा से प्रभावित हैं. जिसमें लगभग 2-3 प्रतिशत बच्चे प्रभावित हैं. भारत में नॉन इन्फेक्टिव कारणों से होने वाली सभी मृत्यु का 10 प्रतिशत हिस्सा अस्थमा की वजह से होता है. भारत में अस्थमा का प्रसार बढ़ने के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार है. एक अध्ययन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में अस्थमा से पीडित केवल पांच प्रतिशत लोगों का सही निदान और उपचार किया जाता है.
विश्व अस्थमा दिवस
इस दिन की स्थापना 1993 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर अस्थमा (GINA) द्वारा की गई थी. यह दिवस पहली बार 1998 में 35 से अधिक देशों में मनाया गया था. डब्ल्यूएचओ के अनुसार यह आकलन किया गया था कि वर्ष 2016 में विश्व स्तर पर 339 मिलियन से अधिक लोगों को अस्थमा था और वैश्विक स्तर पर अस्थमा के कारण 417,918 मौतें हुईं.
विश्व अस्थमा दिवस का महत्व