उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

यूपी के इस मुख्यमंत्री के दांव से भाजपा को उबरने में लगे 14 साल

सुभाषचंद्र बोस के बाद देश में अगर किसी को नेताजी कह कर संबोधित किया गया तो वो हैं यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव. देश व प्रदेश की सियासत में खुद की अलग हैसियत रखने वाले मुलायम सिंह यादव आज भले ही सक्रिय सियासत से दूरी बनाए हुए हैं, लेकिन उनके सियासी दांव के कारण ही सूबे की सत्ता से भाजपा को 14 साल तक दूर रहना पड़ा. वहीं, समाजवादियों में आज भी नेताजी के चरखा दांव की चर्चा आम है.

सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव
सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव

By

Published : Jan 5, 2022, 2:14 PM IST

हैदराबाद: यूपी में सभी सियासी पार्टियां आगामी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) की तैयारियों में जुटी हैं. वहीं सत्ता में पूर्ण बहुमत से आई भाजपा और सूबे की मुख्य विपक्षी पार्टी सपा ने प्रचार की रफ्तार को तेज कर दिया है. खैर, आज हम सूबे के एक ऐसे मुख्यमंत्री की सियासी दांवों के बारे में बताएंगे, जिनके चरखा दांव से भाजपा को उबरने मे एक-दो साल नहीं, बल्कि 14 साल लग गए. वहीं, उनके सियासी सक्रियता में कभी भी प्रदेश में भाजपा का एक छत्र राज नहीं हो सका.

गुरु तक को नहीं बख्शा

सूबे के छोटे से जिला इटावा जिसे बीहड़ों का बार्डर भी कहा जाता है. जहां से शुरू होता है बागियों और डाकुओं का क्षेत्र. ऐसे जिले की एक तहसील सैफई जहां 22 नवंबर, 1939 को मुलायम सिंह (Mulayam Singh Yadav) का जन्म एक यदुवंशी परिवार में हुआ. वहीं से सियासत की शुरुआत करने वाले नेताजी ने इस शास्त्र को शस्त्र बना लिया और सियासी शास्त्र में मास्टर की डिग्री हासिल की. 1967 तक मुलायम सिंह यादव बतौर शिक्षक लोगों के बीच प्रचलित थे. लेकिन शिक्षकों की आवाज उठाने के साथ ही वो युवाओं के इतने पसंदीदा हो गए की पूरे जनपद में जब भी कोई प्रोग्राम होता तो उन्हें भाषण के लिए आमंत्रित किया जाने लगा. इधर, 1967 में लोहिया के संपर्क में आए मुलायम सिंह ने पहली जसवंत नगर से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ा था.

सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव

हालांकि, उनके पिता सुधर सिंह उन्हें पहलवान बनाना चाहते थे, लेकिन जब पहलवानी के गुरु चौधरी नत्थू सिंह ने ही उन्हे सियासत में उतारने की घोषणा कर दी तो खुद उनके पिता ने भी उन्हें कभी नहीं रोका. वहीं, मैनपुरी कुश्ती प्रतियोगिता में मुलायम सिंह का चरखा दांव नत्थुसिंह को इतना पसंद आया कि पहलवानी गुरु और तत्कालीन जसवंत नगर सीट से विधायक नत्थुसिंघ ने अपनी सीट उन्हें सौंप दी.

इसे भी पढ़ें - वाराणसी में 9 जनवरी को कांग्रेस की होने वाली मैराथन स्थगित

अपने सियासी गुरु राम मनोहर लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से 1967 में वो चुनाव जीतकर विधायक बने और विधानसभा पहुंचे थे. लेकिन जैसे ही 1968 में राम मनोहर लोहिया का निधन हुआ. विवादों के बीच ही पार्टी छोड़कर मुलायम सिंह यादव ने चौधरी चरण सिंह से हाथ मिला लिया. उनके साथ कंधे से कंधा मिलाने का वादा करते हुए भारतीय क्रांति दल में शामिल होने वाले नेताजी 5 सालों में ही इतने मुलायम हो गए कि चौधरी चरण सिंह को बीच चुनावों में छोड़कर 1974 में भारतीय लोकदल में शामिल हो हुए.

जिससे मजबूर होकर चौधरी चरण सिंह को भी क्रांति दल का विलय करना पड़ा. फिर जब इंदिरा गांधी के विरोध में सारे दल एक होने लगे तो मुलायम सिंह यादव इमरजेंसी में छूटकर आए और जनता पार्टी में शामिल हो गए. ये वही जनता पार्टी थी, जिसके संस्थापकों में एक नाना साहब थे. 1977 में वो पहली बार यूपी सरकार में सहकारिता मंत्री बने. इसी समय उन्होंने सहकारी (कॉपरेटिव) संस्थानों में अनुसूचित जाति के लिए सीटें आरक्षित करवाई थी. इससे मुलायम सिंह यादव पिछड़ी जातियों के बीच काफी प्रिय हुए थे.

सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव

साल 1979 में जनता पार्टी से खुद को अलग करते हुए चौधरी चरण सिंह के साथ लोकदल पार्टी बनाई. 1987 में चौधरी चरण सिंह के निधन के बाद अजीत सिंह से उनका टकराव हो गया. वो पहली बार था जब मुलायम सिंह यादव खुद किसी पार्टी की अगुवाई कर रहे थे. वहीं, 1989 में उन्होंने अपने समर्थक विधायकों के साथ वीपी सिंह के जनता दल में शामिल हुए. 1989 में लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव भी हुए तो दिसंबर माह में मुलायम सिंह यादव पहली बार सूबे के मुख्यमंत्री बने.

इसे भी पढ़ें - अखिलेश यादव अगर अयोध्या जाएं तो वहां पर रामलला के दर्शन जरूर करें : स्वतंत्र देव सिंह

1990 में ही वीपी सिंह का साथ छोड़कर चंद्रशेखर के साथ समाजवादी जनता पार्टी की नींव डाली. लेकिन उनका ये साथ भी अधिक दिनों तक नहीं चला और 1992 में खुद समाजवादी पार्टी बनाई. 1993 में कांशीराम के बसपा के साथ मिलकर यूपी में सरकार बनाई और दूसरी बार मुख्यमंत्री बने. लेकिन ये साथ भी 1995 में छूट गया. 1996 में प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल मुलायम सिंह यादव का विरोध लालू यादव ने किया. जिससे 1996 से 1998 तक देश के रक्षामंत्री बनकर उन्हें संतोष करना पड़ा. वहीं, 2002 में भाजपा से बसपा के अलग होने पर कई महीनों तक सूबे में राष्ट्रपति शासन लगा रहा. उसके बाद जब चुनाव हुआ तो चरखा दांव से मशहूर मुलायम सिंह यादव ने 196 सीट पर रही भाजपा को मध्यावधि चुनाव में 96 पर लाकर खड़ा कर दिया.

तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह खुद भी उपचुनाव में हार गए थे. मुलायम सिंह यादव ने अपनी छोटी कद काठी के बड़े दिमाग से भाजपा और बसपा के विधायकों को तोड़कर मिलाने में भी सफल रहे. जिसमें कांग्रेस, रालोद, निर्दलीय के साथ बसपा विधायकों को तोड़कर 29 अगस्त, 2003 मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बनें. जिसके बाद से 2017 विधानसभा चुनावों तक 14 साल भाजपा को सूबे में सत्ता का वनवास झेलना पड़ा.

ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप

ABOUT THE AUTHOR

...view details