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जयंती: साहित्यकारों ने कविता सुनाकर हरिवंश राय बच्चन को किया याद

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कवि हरिवंश राय बच्चन की जयंती पर साहित्यकारों ने कविता सुनाकर उन्हें याद किया. इस मौके पर उनकी कृति मधुशाला को याद किया गया.

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Published : Nov 27, 2020, 8:43 PM IST

Updated : Nov 28, 2020, 1:19 PM IST

birth anniversary of harivansh rai bachchan
कवि हरिवंश राय बच्चन.

लखनऊ:हर साल 27 नवंबर को कवि हरिवंश राय बच्चन की जयंती मनाई जाती है. इसी कड़ी में राजधानी में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. इस साल भी साहित्यकारों ने कविता सुनाकर हरिवंश राय बच्चन को याद किया.

'मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम अपने ही हाथों से आज पिलाऊंगा प्याला,
पहले भोग लगा लूं तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।'

हरिवंश राय बच्चन की यह कविता लोगों के दिल और दिमाग में ऐसा चढ़ी कि हर कोई इसको गुनगुनाने लगा. अपने जीवन काल में उन्होंने 26 कविता संग्रह लिखे. वहीं चार आत्मकथा और 24 विविध भी लिखे. हरिवंश राय बच्चन की जयंती पर जब ईटीवी भारत ने शहर के साहित्यकारों से बात की तो उन्होंने कविता गाकर उनको याद किया.

साहित्यकारों ने हरिवंश राय बच्चन को किया याद.

कौन थे हरिवंश राय बच्चन
हरिवंश राय बच्चन हिंदी भाषा के कवि और लेखक थे. उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति मधुशाला है. हरिवंशराय बच्चन का जन्म 27 नवंबर को इलाहाबाद में हुआ था. पिता का नाम प्रताप नारायण श्रीवास्तव व माता का नाम सरस्वती देवी था. उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमए और कैंब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य के विख्यात कवि डब्ल्यूबी यीट्स की कविताओं पर शोध कर पीएचडी की थी. इसी समय उन्होंने 'नीड़ का निर्माण फिर' जैसे कविताओं की रचना की.

कविता संग्रह
तेरा हार, मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, आत्मपरिचय, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, आकुल अंतर, सतरंगिनी, हलाहल, बंगाल का काल, खादी के फूल, सूत की माला, मिलन यामिनी, प्रणय पत्रिका, धार के इधर-उधर, आरती और अंगारे, बुध और नाच घर, त्रिभंगीमा, चार खेमें चौसठ खूंटे, दो चट्टानें, बहुत दिन बीते, कटती प्रतिमाओं की आवाज, उभरते प्रति मानों के रूप, जाल समेटा, नई से नई पुरानी से पुरानी कविता संग्रह लिखा.

शलाका पुरुष थे हरिवंश राय बच्चन
वरिष्ठ साहित्यकार पद्मकांत शर्मा बताते हैं कि हरिवंश राय बच्चन हिंदी साहित्य के शलाका पुरुष थे. बच्चन जी हिंदी कविताओं के आधार स्तंभ हुए थे. बच्चन जी ने मधुशाला, मधुबाला समेत कई बेहतरीन रचनाएं लिखीं. उन्होंने हरिवंश राय बच्चन की कविता- 'मैं कायस्थ कूलेदभव मेरे पुरखों ने इतना ढाला, मेरे तन के लोहू में है पहचहत्तर प्रतिशत है डाला, पुश्तैनी अधिकार मुझे है मदिरालय के आंगन पर, मेरे दादा परदादा के हाथ बिकी थी मधुशाला' को बड़े मोहक ढंग से प्रस्तुत की.

विदेश से लौटकर वापस यूनिवर्सिटी में ही रुके
वरिष्ठ साहित्यकार गोपाल चतुर्वेद बताते हैं, जब मैं इलाहाबाद से इंग्लिश में एमए कर रहा था, तब हरिवंश राय बच्चन पीएचडी करने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी गए हुए थे. यूनिवर्सिटी में बच्चन जी का नाम तो था ही, साथ में उनकी यादें भी थीं. बच्चन जी जब विदेश से लौटकर आए तो यूनिवर्सिटी में ही रुके. वहीं उन्होंने उमर खय्याम से प्रेरित होकर मधुहाला रचना लिखी. फिर मधुशाला लिखी. कुछ समय बाद बच्चन जी वित्त मंत्रालय में वहीं से ही ओएसडी बनकर चले गए. जवाहर जी उनको बहुत अच्छी तरह जानते थे. बच्चन जी कवि के मामले में ऐसे प्रख्यात थे, जैसे आज अमिताभ बच्चन फिल्मों में प्रख्यात हैं.

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विरल कवि थे बच्चन
वरिष्ठ कवि व लेखक अरविंद चतुर्वेद बताते हैं कि हरिवंश राय बच्चन अद्भुत प्रतिभा के साथ उभर कर आते हैं. क्योंकि उनके जो समवर्ती कवि थे, उनमें नरेंद्र शर्मा, डॉ. रामकुमार वर्मा और रामधारी सिंह दिनकर हैं. इनमें हरिवंश राय बच्चन इस मायने में विरल कवि हैं, क्योंकि उन्होंने काव्य भाषा को अलंकरणों का या कहा जाए सजावट का जो बोझ था, उसको उन्होंने उतारा.

Last Updated : Nov 28, 2020, 1:19 PM IST

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