उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

पीएम मोदी ने बताया, काशी का रत्नेश्वर महादेव मंदिर कैसे संवरा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में स्थित रत्नेश्वर महादेव मंदिर को लेकर ट्वीट किया है. उन्होंने इशारा किया है कि पहले और अब इस मंदिर में बहुत बदलाव हुए हैं. ईटीवी भारत ने रत्नेश्वर महादेव मंदिर के बारे में बताया था कि आखिर यह मंदिर पीसा की मीनार से भी ज्यादा क्यों झुका हुआ है.

ratneshwar mahadev temple varanasi
रत्नेश्वर महादेव मंदिर.

By

Published : Jan 15, 2021, 9:44 PM IST

Updated : Jan 15, 2021, 10:12 PM IST

लखनऊ :शिव की नगरी काशी धरती पर उन पुराने जीवंत शहरों में गिनी जाती है, जिसका वर्णन पुराणों और शास्त्रों में मिलता है. यहां के कुछ मंदिर ऐसे हैं, जो उसे दुनिया में अलग बनाते हैं. ऐसा ही एक पवित्र और अद्भुत मंदिर मणिकर्णिका घाट और सिंधिया घाट के बीच में स्थित है, जिसका नाम है-रत्नेश्वर महादेव मंदिर. अद्भुत डिजाइन से बनाई गई इटली की पीसा की मीनार भले ही 4 डिग्री झुकी हो और इसकी ऊंचाई 54 मीटर हो, लेकिन 400 साल पुराना यह मंदिर 9 डिग्री झुका हुआ है और इसकी ऊंचाई 40 मीटर है, जो अपने आप में अद्भुत और आश्चर्यजनक है. इस मंदिर को लेकर किए गए ट्वीट को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रिट्वीट किया है.

मंदिर से जुड़ी है कई दंत कथाएं

पुराणों में वर्णित जिन दंत कथाओं का जिक्र है, उसमें सबसे ज्यादा प्रचलित महारानी अहिल्याबाई होल्कर और उनकी दासी रत्नाबाई की कहानी है. स्थानीय लोगों का कहना है कि ऐसा कहा जाता है कि लगभग 400 वर्ष पूर्व महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने जब मणिकर्णिका घाट पर तारकेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण करवाया था तो उससे प्रभावित होकर उनकी दासी रत्नाबाई ने उसके ठीक सामने एक दूसरे शिव मंदिर का निर्माण कराया, लेकिन अंतर बस इतना था कि अहिल्याबाई होल्कर के द्वारा बनवाया गया मंदिर गंगा घाट के ऊपर था और रत्नाबाई द्वारा बनवाया गया मंदिर गंगा घाट की तलहटी में मां गंगा के नजदीक था.

स्पेशल रिपोर्ट...

लगभग 40 फीट ऊंचा गुजरात शैली पर बने इस भव्य मंदिर को बनवाने में जब रत्नाबाई को दिक्कत आने लगी तो उन्होंने कुछ पैसे महारानी अहिल्याबाई होल्कर से उधार भी लिए. इस पर महारानी अहिल्याबाई ने मंदिर को देखने की इच्छा जाहिर की. मंदिर देखकर वह इतना प्रभावित हुईं कि उन्होंने इसका नाम न देने का आग्रह रत्नाबाई से किया, लेकिन रत्नाबाई नहीं मानी और इस मंदिर का नाम उन्होंने अपने नाम पर रत्नेश्वर महादेव रखा, जिसकी जानकारी होने पर अहिल्याबाई होल्कर नाराज हो गईं और यह श्राप दिया कि इस मंदिर में पूजा-पाठ सिर्फ 2 महीने ही हो पाएगा. इसके बाद यह मंदिर 10 महीनों तक तो मिट्टी और पानी में डूबा रहता है और सिर्फ 2 महीने ही इसमें पूजा होती है.

ये भी पढे़ं :'पीसा की मीनार' से भी ज्यादा झुका है काशी का यह मंदिर

दूसरी कथा

दूसरी कथा यह भी है कि इस मंदिर को काशी करवट के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन काशी करवट का असली मंदिर भगवान विश्वनाथ मंदिर के नजदीक नेपाली कपड़ा इलाके में है. पश्चिम बंगाल व अन्य इलाके के आने वाले लोग इस मंदिर को मातृऋण मंदिर के नाम से जानते है. एक दंतकथा यह भी है कि इस मंदिर का निर्माण मातृऋण को चुकाने के लिए करवाया गया था, लेकिन मां के ऋण का भुगतान कभी नहीं किया जा सकता. इसलिए यह खुद-ब-खुद टेढ़ा हो गया और अब तक उसी तरह ही है. फिलहाल अलग-अलग दंत कथाएं इस मंदिर से जुड़ी हैं और कौन सही है और कौन गलत, यह तो शास्त्र ही बता सकते हैं, लेकिन मंदिर की अद्भुत निर्माण शैली और उसके झुकाव को देखकर यह मंदिर आज भी देश-विदेश से आने वाले लोगों को अपनी ओर खींचता है.

Last Updated : Jan 15, 2021, 10:12 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details