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वाजिद अली शाह अवध महोत्सव: दूसरी शाम रही गायन व नृत्य के नाम - उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी

राजधानी के संगीत नाटक अकादमी में वाजिद अली शाह अवध महोत्सव के दूसरे दिन शानदार गायन प्रस्तुति देखने को मिली. शाम को वादन, नृत्य, कथक संग भजनों से महोत्सव में आए लोग भाव विभोर हो गए.

वाजिद अली शाह अवध महोत्सव की दूसरी शाम में गायन प्रस्तुति.
वाजिद अली शाह अवध महोत्सव की दूसरी शाम में गायन प्रस्तुति.

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Published : Mar 21, 2021, 8:01 AM IST

लखनऊ:संस्कृति और पर्यटन विभाग की ओर से आयोजित वाजिद अली शाह अवध महोत्सव की दूसरी संध्या संगीत की विभिन्न विधाओं से सजकर गुलदस्ते की तरह खूबसूरत नजर आई. शनिवार को गोमती नगर स्थित उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी में गायन, वादन और नृत्य के बेहतरीन कार्यक्रम हुए. कव्वाली और कथक की शानदार प्रस्तुति ने लखनऊवासियों का मन मोहा.

वाजिद अली शाह अवध महोत्सव

हिन्दुस्तानी और कर्नाटक शास्त्रीय संगीत की शैलियों का दिखा समन्वय
कार्यक्रम का आगाज भातखण्डे संगीत संस्थान अभिमत विश्वविद्यालय की ओर से वाद्यवृंद की प्रस्तुति से हुआ. जिसमें विश्वविद्यालय के शिक्षक-शिक्षिकाओं एवं विद्यार्थियों ने भाग लिया. विश्वविद्यालय के समूह ने राग काफी, राग बहार और राग मियां की मल्हार और जनसम्मोहिनी की स्वर-सरिता बहाई. प्रस्तुति में जहां हिन्दुस्तानी और कर्नाटक शास्त्रीय संगीत की शैलियों का समन्वय था. वहीं होली पर आधारित रचनाएं भी प्रस्तुत की गईं. वाराणसी से आईं शिवानी शुक्ला आचार्य ने भजन गायन किया. उन्होंने कई रचनाएं प्रस्तुत कीं, जिनमें बाजे रे मुरलिया, होरी खेलैया और बतावा मितवा कहां नाही हो भोला शामिल थे.

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अवधी गायन से शुरू हुआ कार्यक्रम
संस्कार गीतों की प्रस्तुति में अवध के लोकगीतों की पूरी परंपरा दिखी. केवल कुमार, पद्मा गिडवानी के दल ने गौरी गणेश वंदना-गौरी गणेश मनाओ से कार्यक्रम का आरंभ किया.

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अवध की संस्कृति की चर्चा
कार्यक्रम की संध्या पर विशेषज्ञों ने अवध की संस्कृति के विविध पक्षों की चर्चा हुई. लोकसंगीत की विशेषज्ञ विद्या बिन्दु सिंह ने कहा कि लोक संगीत केवल मनोरंजन के लिए नहीं होते हैं, बल्कि अपनी संस्कृति और आराध्य से जोड़ता है. उन्होंने कहा कि लोक और शास्त्रीय संगीत एक दूसरे के पूरक हैं. वरिष्ठ कथक गुरु पूर्णिमा पांडेय ने कहा कि कथक को जीवित रखने में दरबारों और तवायफों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. उन्होंने कहा कि समाज में महिलाओं के नृत्य को बहुत सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता था.

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