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लखनऊ: कम हुआ वायु प्रदूषण, अस्थमा के मरीजों में भारी कमी

राजधानी लखनऊ में लॉकडाउन के दौरान जहां एक ओर लोगों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा. वहीं दूसरी ओर लॉकडाउन से काफी फायदे भी नजर आ रहे हैं. लॉकडाउन में गाड़ियों के न चलने से वातावरण शुद्ध हो गया और साथ ही अस्थमा के मरीजों में भी भारी कमी देखने को मिल रही है.

लॉकडाउन के दौरान अस्थमा के मरीजों में हुई कमी
लॉकडाउन में वातावरण हुआ शुद्ध

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Published : May 23, 2020, 8:25 AM IST

लखनऊ: यूं तो लॉकडाउन कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए लगाया गया था, जिससे संक्रमण को फैलने से रोका जा सके. लॉकडाउन की वजह से एक तरफ लोगों को दिक्कतों का सामना तो करना पड़ा लेकिन अब लॉकडाउन के फायदे भी सामने आ रहे हैं. पिछले लगभग दो महीने के लॉकडाउन के दौरान वातावरण में साफ हवा महसूस की गई है. इससे सांस की बीमारी की दर में कमी आई है और अस्थमा के मरीजों की दवाइयां तक बंद हुई है.

लॉकडाउन से लाभ
कोरोना के कारण देशव्यापी लॉकडाउन है. इस लॉकडाउन के कारण पूरे देश में लोगों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. लॉकडाउन से देश में कई प्रदूषित शहरों की वायु गुणवत्ता में सुधार हुआ है. लखनऊ के लोगों को अब साफ हवा मिल रही है. वहीं लोग शुद्ध हवा में सांस ले रहे हैं. साफ आसमान शोरगुल का निम्न स्तर पक्षियों की चहचहाहट और सबसे महत्वपूर्ण प्रदूषण रहित हवा प्रदूषण में कमी के संकेत दे रही है. ये सभी लॉकडाउन के सबसे बड़े फायदे साबित हो रहे हैं.

लॉकडाउन में वातावरण हुआ शुद्ध

अस्थमा के मरीजों की संख्या हुई कम
काफी अरसे बाद राजधानी लखनऊ समेत कई ऐसे शहर हैं, जहां पर वायु प्रदूषण महसूस किया गया है. राजधानी लखनऊ के बलरामपुर अस्पताल के विशेषज्ञ डॉक्टर एके गुप्ता ने बताया कि शुद्ध हवा में अस्थमा के मरीजों की सेहत में सुधार देखने को मिल रहा है. अस्थमा के मरीजों को सांस लेने में भी कम दिक्कतें हो रही हैं. वहीं राजधानी लखनऊ के अस्पताल के डॉक्टर आशुतोष दुबे ने बताया कि लॉकडाउन के कारण वातावरण में प्रदूषण कम हुआ है. रोजाना पहले करीब 250 तक अस्थमा के मरीज आते थे वहीं अब केवल सिर्फ 20 से 30 केस ही सामने आ रहे हैं.

करीब दो महीने से लॉकडाउन की वजह से सड़कों पर गाड़ियां नहीं है और न ही शोर. इस वजह से लोगों को स्वच्छ हवा मिल रही है. शोर कम होने की वजह से ध्वनि प्रदूषण भी नहीं हो रहा, जिसके अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं.

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