लखनऊः इस साल देश में संचालित सभी स्कूलों में नई शिक्षा नीति को लागू किया गया है. नई शिक्षा नीति लागू होने के कारण सभी बोर्ड ने अपने यहां के किताबों के पाठ्यक्रमों में बड़ा बदलाव कर दिया है. ऐसे में कक्षा 1 से लेकर 12वीं तक के पढ़ाई कर रहे सभी छात्रों को इस साल हर हाल में नई किताबें खरीदनी पढ़ रही हैं. नई शिक्षा नीति के कारण किताबों की मांग बढ़ने व सप्लाई कम होने के कारण इनके दामों में भी अधिक बढ़ोतरी देखने को मिल रही है. इसका सीधा असर अभिभावकों के जेब पर पढ़ रहा है. सभी बोर्ड के सभी कक्षाओं में नई किताबें लागू हुई है. ऐसे में जो अभिभावक पुरानी किताबें लेकर बच्चों को दे देते थे. उन्हें भी इस साल हर हाल में नई किताबें ही खरीदनी पढ़ रही है.
बीते साल की तुलना में नई किताबों का मूल्य अचानक से बढ़ गया है. नई किताबों का बाजार मूल्य, पिछले साल की किताबों की तुलना में अधिक होने से अभिभावकों पर आर्थिक बोझ पड़ रहा है. एनसीईआरटी सिलेबस जारी होने के बाद नई शिक्षा नीति के तहत सिलेबस तैयार कर प्राइवेट प्रकाशकों ने किताबें प्रिंट करायी हैं. वहीं एनसीआरटीई की किताबों की मार्केट में काफी कमी है. आलम ये है कि राजधानी लखनऊ में अभिभावकों की जेब पर फीस के बाद कॉपी किताबों का बोझ तीन गुणा तक अधिक बढ़ गया है. स्कूलों ने इस साल अपने फीस में 10% की बढ़ोतरी की है, तो वही प्रकाशकों ने अपने किताबों के दामों में 30 फीसदी बढ़ोतरी कर दी है.
अभिभावक कल्याण संघ के अध्यक्ष प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि बीते साल जहां प्राइवेट स्कूलों में कक्षा 6 की किताबों का मूल्य अधिकतम 5500 रुपये तक था. वह इस बार बढ़कर 8000 रुपये तक पहुंच गया है. इसके अलावा नौवीं कक्षा में जहां पीते साल लगभग 6500 रुपये में किताबें व स्टेशनरी उपलब्ध करा दी गई थी. वहीं इस सर इसकी कीमत 10,000 रुपये से भी ऊपर पहुंच गई है. उन्होंने बताया कि गोमती नगर के एक बड़े प्राइवेट स्कूल में कक्षा एक की किताबें व स्टेशनरी का रेट 3000 रुपये से ऊपर पहुंच गया है.