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उत्तर प्रदेश में परिवारवाद के सहारे खूब फलफूल रहे हैं क्षेत्रीय राजनीतिक दल - Analysis of UP Bureau Chief Alok Tripathi

उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारे में परिवारवाद की भीड़ देखी जा सकती है. सपा, बसपा, अपना दल, सुभासपा, निषाद पार्टी समेत कई दलों में परिवारवाद की लंबी शृंखला है. देखा जाए तो इस परंपरा को जनमत भी हासिल है. पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण.

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Published : Jul 21, 2023, 8:09 PM IST

लखनऊ :उत्तर प्रदेश में परिवारवाद की राजनीति खूब फलफूल रही है. समाजवादी पार्टी हो या अन्य क्षेत्रीय दल, परिवारवाद की राजनीति सभी को खूब रास आ रही है. हां, भाजपा में अन्य दलों की तरह का परिवारवाद नहीं दिखाई देता. दूसरे दलों में पिता राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तो उसके बेटे महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभाल रहे हैं. यदि महिला अध्यक्ष है तो पति या अन्य रिश्तेदार पार्टी के वारिस के रूप में दिखाई देते हैं. अच्छी बात यह है कि इसे प्रदेश की जनता ने स्वीकार कर लिया है और इस परिवारवाद से किसी को कोई दिक्कत दिखाई नहीं देती. यदि जनता को इससे दिक्कत होती तो इन पार्टियों के नेता बार-बार चुनकर कैसे आ पाते.

मुलायम सिंह यादव का परिवार.



प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी की बात करें तो परिवारवाद में सबसे लंबा कुनबा इसी पार्टी का है. समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव थे. अब उनके बेटे पूर्व मुख्यमंत्री और विधायक अखिलेश यादव पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. अखिलेश के चाचा रामगोपाल यादव पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और राज्यसभा में पार्टी के नेता हैं. दूसरे चाचा शिवपाल यादव भी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं. अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव लोकसभा सांसद हैं. मुलायम सिंह यादव के भाई अभयराम यादव के पुत्र धर्मेंद्र यादव पूर्व सांसद हैं. मुलायम के दूसरे भाई रामगोपाल यादव के पुत्र अक्षय यादव भी सांसद रहे हैं. अखिलेश के चाचा रतन सिंह यादव के पुत्र तेज प्रताप यादव भी पूर्व सांसद हैं. मुलायम के छोटे भाई राजपाल यादव का छोटा बेटा अंशुल यादव मैनपुरी का जिला पंचायत अध्यक्ष है. अखिलेश के चाचा शिवपाल सिंह यादव के पुत्र आदित्य यादव पीसीएफ के चेयरमैन रहे हैं. माना जा रहा है कि अगली पीढ़ी भी सक्रिय राजनीति में अहम पदों पर दिखाई देगी.

सोनेलाल पटेल का परिवार.



प्रदेश के तीसरे बड़े राजनीतिक दल की बात करें तो अपना दल (सोनेलाल) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल हैं और उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा भी है. इनके पिता सोनेलाल पटेल ने पार्टी की नींव रखी थी. अनुप्रिया के पति आशीष पटेल पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष और प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं. खुद अनुप्रिया पटेल भी इस समय केंद्र सरकार में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री हैं. केंद्र की पिछली सरकार में भी वह मंत्री रही हैं. वह 2012 में विधानसभा सदस्य के रूप में भी चुनी गई थीं. परिवार में विवाद के बाद अनुप्रिया की मां कृष्णा पटेल ने अपना दल (कमेरावादी) नाम की अलग पार्टी गठित की है. 2022 के विधानसभा चुनाव में कृष्णा पटेल ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया और प्रतापगढ़ सदर सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा. कृष्णा पटेल अपनी बड़ी बेटी पल्लवी पटेल के लिए भी टिकट चाहती थीं, लेकिन अखिलेश यादव ने उन्हें सपा के टिकट पर सिराथू विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा और वह जीतने में सफल रहीं.

संजय निषाद का परिवार.




अब बात भाजपा गठबंधन के एक और साथी निर्बल इंडिया शोषित हमारा आम दल यानी निषाद पार्टी की. निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद हैं. वह प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री भी हैं. उनके पुत्र राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद के अध्यक्ष हैं. दूसरे बेटे इसी संगठन में प्रदेश अध्यक्ष हैं. उनका तीसरा बेटा इसी संगठन का प्रदेश प्रभारी है. साले निषाद पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं. संजय निषाद की पत्नी पार्टी की महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. संजय निषाद अपने बेटों को सांसद व विधायक भी बनवाने में कामयाब रहे. हालांकि उन्हें अपनी पार्टी के बजाय भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ना पड़ा. बेटे प्रवीण निषाद संत कबीर नगर से भाजपा के सांसद हैं. छोटे बेटे सरवन चौरी चौरा विधानसभा सीट से भाजपा विधायक हैं. संजय निषाद का तीसरा बेटा भी पार्टी में पदाधिकारी है.

ओम प्रकाश राजभर का परिवार.



हाल ही में भाजपा गठबंधन में शामिल हुए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर हैं. उनके पुत्र अरविंद राजभर पार्टी के प्रमुख महासचिव हैं. दूसरे पुत्र अरुण राजभर पार्टी के महासचिव और प्रवक्ता हैं. ओम प्रकाश राजभर को अपने बेटों को स्थापित करने के लिए बड़ा संघर्ष करना पड़ा, हालांकि उन्हें अब तक कोई सफलता नहीं मिली है. पहली बार वह योगी सरकार में शामिल हुए और कैबिनेट मंत्री भी बने. अपने बेटों के समायोजन के लिए उन्होंने भाजपा पर खूब दबाव बनाया. वह चाहते थे कि उनके बेटों को विधान परिषद व किसी आयोग का अध्यक्ष बनाकर समायोजित कर लिया जाए, पर भाजपा ने बात नहीं मांनी. इसके बाद उन्होंने बागी तेवर दिखाने शुरू कर दिया तो योगी आदित्यनाथ ने उन्हें मंत्रिपरिषद से बाहर कर दिया. वर्ष 2022 विधानसभा चुनाव उन्होंने सपा के साथ गठबंधन कर लड़ा. चुनाव बाद वह अखिलेश यादव पर फिर विधान परिषद सीट के लिए दबाव बनाने लगे. बात नहीं बनी तो गठबंधन फिर टूट गया. अब वह फिर भाजपा गठबंधन में हैं. शायद इस बार उनकी बात बन जाए.

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का परिवार.
बसपा में परिवारवाद.





पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पुत्र चौधरी अजीत सिंह ने 1996 में राष्ट्रीय लोक दल की स्थापना की थी. कोरोना से संक्रमित हो जाने के कारण अजीत सिंह का निधन हो गया, जिसके बाद उनके पुत्र जयंत चौधरी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल का खासा प्रभाव माना जाता है. वर्ष 2022 के विधानसभा चुनावों में रालोद का सपा के साथ गठबंधन था और उसे आठ विधानसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी. सपा के सहयोग से जयंत चौधरी राज्यसभा के सदस्य भी बन गए हैं. यदि बहुजन समाज पार्टी की बात करें तो पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती हैं और अब उनके भतीजे आनंद उनकी विरासत संभालने के लिए तैयार हो रहे हैं. आनंद की राजनीतिक गतिविधियां धीरे-धीरे बढ़ रही हैं. कांग्रेस और भाजपा राष्ट्रीय पार्टियां हैं और इनमें अलग तरह का परिवारवाद है.

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