लखनऊ: ऐसे तो अब तक मुस्लिमों को भाजपा विरोधी माना जाता रहा है. लेकिन भाजपा सूत्रों की मानें तो अबकी उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बहुल विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी उम्मीद से ज्यादा बेहतर प्रदर्शन करने वाली है. लेकिन यह तो भाजपा की ओर से दावा किया जा रहा है. लेकिन सूबे की मौजूदा सियासी हालात को देख ऐसा लगता नहीं है कि भाजपा को मुस्लिमों का वोट और वो भी उस अनुपात में मिलेगा, जिसका दावा पार्टी कर रही है. क्योंकि सूबे के सियासी इतिहास में कभी भाजपा और मुस्लिमों के बीच बेहतर तालमेल वाली स्थिति बनी ही नहीं.
वहीं, सूबे के सियासी जानकार प्रोफेसर डॉ. ललित कुचालिया ने कहा कि भाजपा के दांव और दावे दोनों में कुछ खास मजबूती नहीं दिख रही है और अगर मुस्लिमों को साधने की कोई प्लानिंग बनाई भी गई है तो उसके सफल होने उम्मीद कम ही है.
खैर, भाजपा अब सियासी दूरी को पाटने के लिए विशेष रणनीति के तहत केंद्र व राज्य सरकार की सरकारी योजनाओं के साथ-साथ लाभान्वितों की सूची तैयार करने की योजना के साथ आगे बढ़ रही है.
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ये है भाजपा की प्लानिंग
बता दें कि सूबे में करीब 115 ऐसी सीटें हैं, जहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक की भूमिका में हैं. साथ ही इनसे से अधिकांश सीटें पश्चिम उत्तर प्रदेश में हैं. ऐसे में अब भाजपा ने मुस्लिमों को अपने साथ करने को रणनीति बनाने के अलावा सरकारी नीतियों का भी सहारा लिया है. इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का सहारा लिया गया है.
सरकारी आकंड़ों के मुताबिक उज्जवला योजना के लाभार्थियों में 39 फीसद मुस्लिम हैं और आवास योजनाओं के 37 फीसद लाभार्थी मुस्लिम बताए जा रहे हैं. वहीं, सूबे में मुस्लिम मतदाताओं की कुल संख्या करीब 20 फीसद के आसपास है.
हालांकि, मुस्लिम पहले कांग्रेस के साथ थे. लेकिन 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी विध्वंस के बाद वो कांग्रेस से दूर होते चले गए. इधर, अब तक वो समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के अलावा अन्य छोटे दलों को वोट करते रहे हैं. लेकिन भाजपा ने 'सबका साथ, सबका विकास' के नारे के साथ अब मुस्लिमों को भी अपने साथ करने की योजना बनाई है.
सूत्रों की मानें तो पार्टी की नजर उन सीटों पर है, जहां 2017 के चुनाव में उसे 5000 से कम वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा था. ऐसे में माना जा रहा है कि 2017 के चुनाव में करीब दो फीसद मुस्लिमों ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया था. साथ ही गौर करने वाली बात यह है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को उन इलाकों में बड़ी कामयाबी मिली थी, जहां दंगें हुए थे.