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पिछड़ी सोच और धर्मांधता से हमेशा लड़ते रहे केरल के नए राज्यपाल

केरल के राज्यपाल बनाए गए आरिफ मोहम्मद खान को मुस्लिम समाज में पिछड़ेपन और धर्मांधता के खिलाफ लड़ने वाले राजनेता के तौर पर भविष्य में भी पहचाना जाएगा. वह अकेले ऐसे मुसलमान नेता हैं जिन्होंने दकियानूसी सोच, कट्टर प्रकृति के लोगों पर कठोर प्रहार किया. राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्र के साथ ETV BHARAT की खास रिपोर्ट.

पिछड़ी सोच और धर्मांधता से हमेशा लड़ते रहे आरिफ मोहम्मद खान.

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Published : Sep 1, 2019, 9:48 PM IST

लखनऊः आरिफ मोहम्मद खान ने वोट की राजनीति के बजाय हमेशा सिद्धांत को तवज्जो दी और इसका खामियाजा भी मुख्यधारा की राजनीति से बाहर रहकर भुगता. अब उनके केरल के राज्यपाल बनने को भी मोदी सरकार की सेकुलर मुसलमान को बढ़ावा देने की राजनीति का हिस्सा माना जा रहा है.

पिछड़ी सोच और धर्मांधता से हमेशा लड़ते रहे, केरल के नए राज्यपाल.


राजीव गांधी सरकार में बने थे मंत्री
आरिफ मोहम्मद खान ने जब देश की राजनीति में बगावत का झंडा बुलंद किया तो वह केंद्र सरकार में मंत्री की जिम्मेदारी संभाल रहे थे. राजीव गांधी की सरकार में मंत्री बनने से पहले उन्हें इंदिरा गांधी भी बेहद पसंद करने लगीं थी और उन्होंने ही 1980 में उन्हें कानपुर सीट से लोकसभा चुनाव लड़वाने का फैसला किया. 1984 में आरिफ मोहम्मद खान ने बहराइच लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ा और जीत कर राजीव गांधी की सरकार में मंत्री बने.

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खान ने शुरुआती पढ़ाई जामिया-मिलिया स्कूल से की
बुलंदशहर के बड़ा बस्ती गांव में जन्म लेने वाले मोहम्मद आरिफ खान ने शुरुआती पढ़ाई जामिया-मिलिया स्कूल दिल्ली से की इसके बाद वह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और लखनऊ विश्वविद्यालय के शिया कॉलेज भी पढ़ने के लिए पहुंचे. छात्र राजनीति में मशहूर हो चुके आरिफ मोहम्मद खान ने भारतीय क्रांति दल के टिकट पर बुलंदशहर की स्याना विधानसभा सीट पर किस्मत आजमाई लेकिन नाकामी हाथ लगी.


शाहबानो प्रकरण में राजीव गांधी से की थी बगावत.
स्याना विधानसभा के बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए और 1977 में विधानसभा सदस्य बनने में कामयाब रहे. 1980 में कानपुर से लोकसभा सदस्य और 1984 में बहराइच से लोकसभा सदस्य बनने वाले आरिफ ने 1986 में शाहबानो प्रकरण को लेकर राजीव गांधी से बगावत कर दी. उन्होंने राजीव गांधी सरकार के फैसले को गलत बताया और कहा कि विधवा महिलाओं के साथ नाइंसाफी नहीं करनी चाहिए. ऐसा कानून नहीं बनना चाहिए जो बेसहारा मुस्लिम महिला को गुजारा भत्ता देने से मना करे.


जनता दल सरकार में बने थे नागरिक उड्डयन मंत्री
आरिफ मोहम्मद खान हालांकि उस वक्त मुसलमानों में खासे लोकप्रिय हो चुके थे, लेकिन उनके इस प्रगतिशील रुख ने उन्हें कांग्रेस से रिश्ते तोड़ने पर मजबूर कर दिया और वह राजीव गांधी पर बोफोर्स कांड में भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहे वीपी सिंह के साथी बन गए. जनता दल में शामिल होकर उन्होंने केंद्र में नई सरकार बनवाने में अहम भूमिका निभाई और वीपी सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री नागरिक उड्डयन बने.


बहराइच लोकसभा सीट भी जीते थे चुनाव
बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर उन्होंने 1998 में बहराइच लोकसभा सीट से चुनाव जीता लेकिन बाद में अटल बिहारी वाजपेई के प्रधानमंत्री रहने के दौरान 2004 में भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ले ली. केवल 3 साल तक भाजपा के साथ रहकर उन्होंने 2007 में कमल का साथ भी छोड़ दिया. इसके बाद वह मुख्यधारा की राजनीति में नहीं दिखाई दिए और मुसलमान भी उन्हें अपना नेता मानने से इंकार कर चुके थे. ऐसे में कोई भी राजनीतिक दल उन्हें अपने साथ रखने के लिए तैयार नहीं दिखा.


तीन तलाक मुद्दे पर भाजपा का दिया साथ
तीन तलाक मुद्दे पर जब समूचा विपक्ष भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पानी पी-पीकर कोस रहा था. अकेले आरिफ मोहम्मद खान ऐसे मुसलमान नेता के तौर पर सामने आए जिन्होंने खुलकर तीन तलाक कानून का समर्थन किया. उन्होंने एक साथ तीन-तलाक को गैर इस्लामी परंपरा बताया और मुस्लिम समाज और महिलाओं की बेहतरी के लिए मोदी सरकार के कदम को पूरी तरह से जायज करार दिया.


राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मोदी सरकार ने उनको केरल में राज्यपाल बनाकर मुसलमानों के एक बड़े वर्ग को इस्लाम की सही शिक्षा से रूबरू कराने की दिशा में कदम बढ़ाया है.

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