लखनऊ : कोरोना की दूसरी लहर लखनऊ में कहर बनकर टूटी. इसका अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि सिर्फ महीने में 17 तारीख तक यानी 17 दिनों में नगर निगम ने 5000 से अधिक डेथ सर्टिफिकेट जारी किए. यह आंकड़ा सिर्फ कोरोना से हुई मौतों का नहीं है. इसमें अन्य कारणों से मरने वाले लोगों की संख्या शामिल है. अगर पिछले 2 माह की बात करें तो 8000 से अधिक मृत्यु प्रमाण पत्र नगर निगम की तरफ से जारी किए गए हैं.
लगातार मौतें
कोरोना की चपेट में आकर लगातार लखनऊ में मौतें होती रहीं. इस बीच कई लोगों ने इलाज के अभाव में भी दम तोड़ा. नगर निगम से जारी होने वाले डेथ सर्टिफिकेट की संख्या गवाही दे रही हैं कि कोरोना काल लखनऊ वालों की सेहत के लिए काफी बुरा रहा. अपर नगर आयुक्त अमित कुमार ने बताया कि पिछले 2 माह में 8000 से अधिक मृत्यु प्रमाण पत्र नगर निगम की तरफ से जारी किए गए हैं. एक मई से 17 मई के बीच ही 5000 डेथ सर्टिफिकेट जारी किए गए.
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मौतों का सिलसिला अप्रैल से शुरू हुआ
लखनऊ नगर निगम ने 15 फरवरी से 21 मार्च तक 5970 प्रमाण पत्र जारी किया. अपर नगर आयुक्त अमित कुमार ने बताया कि जनवरी के महीने में प्रतिदिन 10 से 12 लोगों की मृत्यु प्रमाण पत्र जारी होते थे. वर्तमान समय में 150 से 200 आवेदन प्रतिदिन आ रहे हैं. अपर नगर आयुक्त का कहना है कि राजधानी के सभी आठ जोन के जोनल अधिकारियों को डेथ सर्टिफिकेट जारी करने के निर्देश दिए हैं ताकि लखनऊ नगर निगम मुख्यालय में लोगों को लंबी लाइन नहीं लगानी पड़े.
मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने का यह नियम
ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए अपर नगर आयुक्त अमित कुमार ने बताया कि 3 वर्ष पहले केंद्रीय ऑनलाइन सिस्टम लागू होने के बाद सरकारी अस्पतालों के साथ-साथ कुछ निजी अस्पतालों को भी जन्म मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार दिया गया था.
क्या कहते हैं अधिकारी
अपर नगर आयुक्त अमित कुमार का कहना है कि नॉर्मल दिनों में जनवरी फरवरी के महीने में प्रतिदिन 10 से 12 लोगों की मृत्यु प्रमाण पत्र जारी होते थे. पर वर्तमान समय में 150 से 200 आवेदन प्रतिदिन आ रहे हैं.
सामान्य दिनों में महीने भर में होते हैं 360 से 400 प्रमाण पत्र जारी
नगर निगम के अधिकारियों का कहना है कि सामान्य दिनों में प्रतिदिन 10 से 15 मृतकों के मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किए जाते हैं ऐसे में महीने भर में यह संख्या 360 से लेकर 400 तक ही पहुंचती है पर कोविड-19 संक्रमण के बाद इस संख्या में भारी इजाफा हुआ. और यही कारण है कि प्रतिदिन 150 से लेकर 200 तक आवेदन आ रहे हैं.
छुपाया जा रहा है डाटा!
लोगों का दावा है कि राजधानी लखनऊ में जब कोरोना संक्रमण तेजी से बढ़ने लगा, उसके बाद से सरकारी आंकड़े छुपाए जाने लगे. जहां स्वास्थ्य विभाग संक्रमण से प्रतिदिन 20 से 25 मौतों का दावा करता था, वही राजधानी के यदि श्मशान घाटों की बात की जाए तो भैसा कुंड व गुलाला घाट पर 150 से लेकर 250 तक प्रतिदिन डेड बॉडी का अंतिम संस्कार किया जाता था.
अचानक बढ़ने लगा डाटा
मार्च महीने के बाद से राजधानी लखनऊ में लगातार मौतों की संख्या बढ़ने लगी और यही कारण है कि जहां औसत दिनों में प्रतिदिन 10 से 12 लोगों के मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए एप्लीकेशन आती थी, वहीं अप्रैल और मई के महीने में यह संख्या 150 से 200 तक हो गई. ऐसे में ही राजधानी में जिस तरह से बड़ी संख्या में मौतें हो रही हैं या दुविधा की स्थिति है.
सभी जोन से जारी किए जा रहे हैं मृत्यु प्रमाण पत्र
अपर नगर आयुक्त अमित कुमार ने बताया कि राजधानी लखनऊ के सभी जोनल कार्यालय से मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किए जा रहे हैं. अपर नगर आयुक्त का कहना है कि राजधानी के सभी आठ जोन के जोनल अधिकारियों को अपने जोन के अंतर्गत हो रही मौतों के मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के निर्देश दिए हैं जिससे कि लखनऊ नगर निगम मुख्यालय में लोगों को अपने परिजनों के मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने के लिए लंबी लाइन न लगानी पड़े.
अधिकारी छुपा रहे हैं डाटा
अप्रैल महीने में जब भैसा कुंड के श्मशान घाटों पर बड़ी संख्या में डेड बॉडी आने लगी और लोगों को अपने परिजनों के अंतिम संस्कार के लिए लंबी-लंबी लाइनें लगानी पड़ी जिसके बाद से नगर आयुक्त अजय द्विवेदी ने नगर निगम को सभी अधिकारियों को किसी तरह के वक्तव्य ना जारी करने के निर्देश दे दिए इसके साथ ही नगर निगम के जो कर्मचारी श्मशान घाटों पर तैनात किए गए थे जब उनके द्वारा अंतिम संस्कार के लिए आई डेड बॉडी की संख्या लीक होने लगी तो इन कर्मचारियों को भी श्मशान घाटों से हटा दिया गया. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि लखनऊ नगर निगम और जिला प्रशासन ने मिलकर किसका था डाटा छुपाया और यही कारण है कि सरकारी आंकड़े और जमीनी हकीकत में काफी अंतर है.
क्या कहते हैं सरकारी आंकड़े-