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हरिद्वार महाकुंभ क्यों है खास, विद्वानों से जानें इसका राज

भारत के चार स्थानों में महाकुंभ का आयोजन होता है. प्रयागराज, उज्जैन, नासिक और हरिद्वार में लगने वाले कुंभ में सबसे खास महत्व हरिद्वार कुंभ का है. आप भी जानिए क्यों खास है हरिद्वार का कुंभ और कैसा है इस बार का संयोग. देखिए इस खास रिपोर्ट में...

हरिद्वार महाकुंभ
हरिद्वार महाकुंभ

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Published : Jan 5, 2021, 10:19 PM IST

हरिद्वार: पृथ्वी पर अमृतपान का विशेष अवसर यानी महाकुंभ भारत में केवल 4 स्थानों पर लगता है. इनमें भी विश्वप्रसिद्ध धर्मनगरी हरिद्वार का कुंभ महापर्व सभी कुंभों में खास माना जाता है. हरिद्वार कुंभ में साधु-संतों के दुर्लभ दर्शन होते है. ऐसा लगता है कि देवलोक से सभी देवी-देवता संतों के रूप में एक साथ पृथ्वी पर आ गए हों. धर्म के जानकार बताते है कि कुंभ पर्व बृहस्पति ग्रह की ब्रह्मांड में गति के अनुसार निर्धारित होता है. जब बृहस्पति कुंभ राशि में आते हैं, तब कुंभ का योग बनता है. सामान्य तौर पर बृहस्पति कुंभ राशि मे 12 वर्ष बाद आते हैं. तब हरिद्वार में कुंभ का योग बनता है और इसी कारण कहा जाता है कि हरिद्वार का कुंभ सबसे खास होता है. क्या है हरिद्वार कुंभ की मान्यता? क्यों है हरिद्वार का पुराणों में महत्व ? देखिए हमारी खास रिपोर्ट...

हरिद्वार महाकुंभ क्यों है खास.

4 स्थानों पर लगता है कुंभ

उज्जैन, प्रयागराज, नासिक और हरिद्वार मे कुंभ का आयोजन होता है. हरिद्वार में 4 महीने तक कुंभ का आयोजन होता है. लेकिन, पुराणों में इसका उल्लेख नहीं मिलता, क्योंकि जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में आता हैं,तभी हरिद्वार का कुंभ मनाया जाता है. अप्रैल के महीने में यह ग्रह अपनी चाल बदलते हैं. एक मान्यता यह भी है कि सभी अखाड़ों के अपने-अपने ईष्ट होते हैं. जनवरी में इन अखाड़ों के ईष्ट देवताओं का पर्व पड़ता है. उसी के अनुसार अखाड़ों द्वारा गंगा स्नान किया जाता है. तभी से यह मान्यता चली आ रही है कि हरिद्वार का कुंभ 4 महीने तक साधु संतों द्वारा मनाया जाता है. शाही स्नान अप्रैल के महीने में ही होता है और शाही स्नान के मौके पर सभी अखाड़ों के साधु संत शाही रूप में पूरे हरिद्वार का भ्रमण कर मां गंगा में डुबकी लगाते हैं.

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हरिद्वार में अमृत स्नान का विशेष महत्व
जल्द ही हरिद्वार में अमृत स्नान करने का शुभ अवसर आने वाला है. मान्यता है कि इस अवसर के लिए देवी-देवता, साधु-संत और हिंदू धर्म को मानने वाले 12 साल इंतजार करते हैं. पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश को लेकर देवताओं और असुरों में छीनाझपटी होने लगी तो अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें धरती पर चार स्थानों पर गिरी थीं. इनमें हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन शामिल हैं. जिन स्थानों पर अमृत की बूंदे गिरी थी, उन चारों स्थानों पर प्रत्येक 12 साल के बाद विशिष्ट ग्रह योग में कुंभ पर्व मनाया जाता है. इनमे हरिद्वार कुंभ को सबसे खास माना जाता है.

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मान्यता है कि हरिद्वार ब्रह्मकुंड में अमृत की बूंद गिरी थी

धार्मिक मान्यता है कि हरिद्वार में जब अमृत की बूंदे गिरी थी, तब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में विद्यमान थे. ज्योतिषाचार्य प्रतीक मिश्र पुरी का कहना है कि हरिद्वार कुंभ सबसे प्राचीन कुंभ है. क्योंकि, जब कुंभ राशि में बृहस्पति और मेष राशि में सूर्य विद्यमान थे, तब हरिद्वार ब्रह्मकुंड में अमृत की बूंद गिरी थी. यह कुंभ योग वैशाखी 14 अप्रैल से 14 मई के मध्य बनेगा. इस वक्त अमृत सिद्धि योग होगा और प्रात: काल 6 बजे हर रोज स्नान करने से कुंभ का फल प्राप्त होगा.

ज्योतिषाचार्य का कहना है कि बृहस्पति को एक राशि से दोबारा उस राशि में आने में 12 वर्ष का समय लगता है. वह हर राशि में 1 वर्ष रहते हैं. इस बार के बृहस्पति 11 वर्ष कुछ महीने में ही कुंभ राशि में प्रवेश कर रहे हैं. ऐसा संयोग कई कुंभ के बाद बनता है. ऐसा संयोग 1939 में बना था. उसी प्रकार हरिद्वार में 2022 में कुंभ होना था, जो अब 2021 में ही हो रहा है. हरिद्वार कुंभ इसी ग्रह योग में पड़ने के कारण ही सबसे खास माना जाता है.

हरिद्वार कुंभ की छटा सबसे निराली

हरिद्वार कुंभ की छटा सबसे खूबसूरत और निराली होती है. जब साधु-संत कुंभ स्नान के लिए निकलते है, तब ऐसा लगता है जैसे देवलोक से सभी देवी देवता धरती पर एक साथ आ गए हों. इसके साथ ही हरिद्वार का कुंभ पूरे शहर में देखने को मिलता है. इसी कारण हरिद्वार के कुंभ की अलग ही मान्यता है. महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव रवींद्र पुरी का कहना है कि हरिद्वार कुंभ का अपना ही महत्व है. इसका पुराणों में भी वर्णन मिलता है. क्योंकि सतयुग में पुष्कर, त्रेता में नैनी सारण, द्वापर में कुरुक्षेत्र और कलयुग में हरिद्वार को प्रधान तीर्थ की मान्यता है.

हरिद्वार की भूमि में एक अध्यात्मिक आभा है और पहाड़ों से निकलकर मां गंगा का समतल स्थान भी हरिद्वार ही है. इसलिए हरिद्वार के कुंभ का एक विशेष महत्व है. हरिद्वार कुंभ शीतकाल में प्रारंभ होता है और गर्मी के मौसम आने पर पूर्ण होता है. इसलिए हरिद्वार का कुंभ सबसे लंबा कुंभ होता है. वर्तमान समय में बृहस्पति की गति के अनुसार इस बार का कुंभ 11 वर्ष के बाद ही लग रहा है. हरिद्वार देवभूमि उत्तराखंड की धार्मिक राजधानी है और यहीं पर देश-विदेश से हिंदू धर्म के लोग कुंभ मनाने आते हैं. यहां लोग अपने परिजनों का का अस्थि विसर्जन करने भी आते हैं.

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हरिद्वार सनातन धर्म का प्रमुख केंद्र
हरिद्वार का कुंभ इसलिए भी भव्य होता है, क्योंकि यहां पर सभी 13 अखाड़ों के स्थान है. सभी धार्मिक गतिविधियां हरिद्वार से ही चलती हैं. निर्मल पंचायती अखाड़े के कोठारी जसविंदर सिंह का कहना है कि हरिद्वार सनातन धर्म का प्रमुख केंद्र है. यहां पर हर पंथ के साधु-संतों का निवास है. देश-दुनिया के हिंदुओं की आस्था का केंद्र है. साथ ही हरिद्वार के कुंभ में आसपास के राज्यों के लोगों के लिए आना काफी आसान होता है. इसलिए जो लोग नासिक, उज्जैन और इलाहाबाद के कुंभ में नहीं जा पाते, वे लोग हरिद्वार के कुंभ में मां गंगा में आस्था की डुबकी लगाने आते हैं. इस कारण हरिद्वार के कुंभ का अलग ही अलौकिक दृश्य होता है. हरिद्वार में तमाम अखाड़ों में साधु-संत धूनी लगाकर विराजमान होते हैं. सन्यासी अखाड़ों में जाओ तो अलग नजारा देखने को मिलता है. निर्मल अखाड़ों में जाओ तो अलग नजारा दिखता है. उदासीन और वैराग्य में संतों का अलग ही नजारा श्रद्धालुओं को देखने को मिलता है. हरिद्वार में अनेक प्रकार के संत विराजमान है.

मोक्ष का द्वार हरिद्वार

हरिद्वार को मोक्ष का द्वार भी कहा जाता है. उत्तराखंड की धार्मिक राजधानी के रूप में भी हरिद्वार विराजमान है. हरिद्वार का पुराणों में भी वर्णन मिलता है और हरिद्वार में तमाम मठ मंदिरों के साथ ही सभी अखाड़ों के स्थान भी है. जो भी श्रद्धालु हरिद्वार कुंभ में आता है, वह अलग ही नजारा अपने मन में बसा कर जाता है. हरिद्वार कलयुग का प्रधान तीर्थ है और जो एक बार हरिद्वार में आकर मां गंगा में आस्था की डुबकी लगा ले, तो उसे सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है.

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