लखनऊ : घूमने को तो पूरी दुनिया है, लेकिन लखनऊ हमारी आदत हो गई है. हम कश्मीर से महज तीन माह के लिए ही धंधे के लिए निकलते हैं तो क्या इन 90 दिनों में हम सुकून से पैसा भी नहीं कमा सकते हैं. कश्मीर में भी रेहड़ी पटरी वाले हैं, जो यूपी से आते हैं और फल सब्जियां बेचते हैं उन्हें तो वहां ऐसे हटाया नहीं जाता और न ही परेशान किया जाता है. ये वार्ता के कुछ वो अंश हैं जो राजधानी में कश्मीर से ड्राई फ्रूट बेचने आए कश्मीरी युवकों और ईटीवी भारत के बीच हुई.
जब कश्मीरी युवकों ने किया हंगामा :तीन वर्ष पहले लखनऊ के हजरतगंज में पुलिस चेकिंग के दौरान दारोगा ने कुछ कश्मीरी युवकों से उनकी आईडी मांग ली. इस पर कश्मीरी युवकों ने हंगामा शुरू कर दिया और आरोप लगाया कि पुलिस उन्हें शक की नजरों से देख रही है, जबकि वे पैसे कमाने के लिए यूपी आए हैं. दो वर्ष पहले एलडीए के कुछ कर्मचारियों ने गोमती ब्रिज पर ड्राई फ्रूट बेच रहे कश्मीरी युवकों की पिटाई कर दी और उनका ड्राई फ्रूट गोमती नदी में फेंक दिया. दो दिन पहले लखनऊ नगर निगम ने एक दर्जन कश्मीरी युवकों को अपने ट्रक में बैठा लिया. जिसके बाद युवकों और नगर निगम कर्मचारियों के बीच काफी कहासुनी हुई. इन सभी घटनाओं के बीच कश्मीरी युवकों ने हमेशा कहा कि लखनऊ आने पर उन्हें जानबूझ कर टारगेट किया जाता है. जबकि कश्मीर में जब यूपी के लोग घूमने या काम करने आते हैं तब तो हम लोग स्वागत करते हैं.
लखनऊ में हमारे साथ होता है बुरा बर्ताव : जम्मू कश्मीर के कुलग्राम से बीते 10 वर्षों से लखनऊ में ड्राई फ्रूट बेचने आए शाहिद कहते हैं कि उन्हें तो बस लखनऊ की आदत सी हो गई है. शाहिद कहते हैं कि 10 वर्षों से हर वर्ष तीन माह के लिए लखनऊ आते हैं और यहां ड्राई फ्रूट बेच कर कुछ 30-40 हजार रुपये कमा कर वापस अपने घर चले जाते हैं. अब हम कश्मीर से लखनऊ में पैसा कमाने आ रहे हैं तो ऐसी ही जगह दुकान लगाएंगे जहां लोग खरीद भी करें नही तो हम लोग बर्बाद ही हो जाएंगे.
प्रशासन सिर्फ हम पर ही दिखाता है ताकत : कुलग्राम से ही आने वाले रिजवान ने कहा कि नगर निगम बस उन्हें ही हटाने में अपनी ताकत दिखाती है, जबकि जिस कैसरबाग में वो लोग किराए पर रह रहे वहां सड़कों पर सैकड़ों मोटरसाइकिल खड़ी रहती हैं. उन्हें हटाने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाता है. हम कमजोर और बाहरी हैं तो कोई भी आकर हम पर अपनी ताकत आजमा लेता है. किराए पर कमरा 10 हजार रुपये में लिया है. जिसमें पांच लोग रहते हैं बाकी खर्चा मिलाकर सात हजार रुपये खर्च हो ही जाते हैं. ऐसे में यदि हम लोगों को हर माह 10 हजार रुपये बचत में लाना है तो ऐसे रिहियासी इलाकों में ही ड्राई फ्रूट बेचना पड़ेगा, लेकिन वहां से भी हम लोगों को आए दिन भगाया जाता है. कभी कभी तो हम लोगों से मारपीट भी होती है.