लखनऊ: उत्तर प्रदेश में प्राविधिक शिक्षा परिषद और संयुक्त प्रवेश परीक्षा परिषद की लापरवाही का खामियाजा 8 हजार छात्र-छात्राओं को भुगतना पड़ रहा है. यहां बैठे अधिकारी इन बच्चों के भविष्य से खेलने में लगे हैं. संयुक्त प्रवेश परीक्षा परिषद की ओर से पहले तो खाली सीट पर छात्रों का दाखिला लिए जाने की छूट दी गई, जब दाखिला लेकर अभ्यर्थियों ने सालभर पढ़ाई कर ली, तो अब प्राविधिक शिक्षा परिषद ने इन्हें सेमेस्टर परीक्षाओं में बैठने से रोक दिया है. छात्रों का कहना है कि एक ओर जहां हजारों रुपये की फीस कॉलेजों की दी, वहीं पूरे साल का नुकसान प्राविधिक शिक्षा परिषद कर रहा है. यह सभी मामले सिर्फ फार्मेसी कॉलेजों के हैं.
उत्तर प्रदेश में डिप्लोमा इन फार्मेसी पाठ्यक्रम का संचालन करने वाले कॉलेजों की संख्या वर्तमान में करीब 892 है. इन कॉलेजों में दाखिले लेने की जिम्मेदारी संयुक्त प्रवेश परीक्षा परिषद की है, जबकि दाखिला ले चुके छात्रों की परीक्षाएं प्राविधिक शिक्षा परिषद कराता है. पिछले साल कोरोना संक्रमण (Corona Viras) के चलते पॉलीटेक्निक संस्थानों में प्रवेश की प्रक्रिया देर से शुरू हो पाई थी. जून 2020 में आवेदन शुरू हुए. सितंबर में प्रवेश परीक्षा और अक्टूबर 2020 में काउंसलिंग हुई. नवंबर तक प्रवेश लिए गए. जानकारों की मानें तो कोरोना संक्रमण के इस दौर में बढ़ी संख्या में कॉलेजों में दाखिला लेने के बाद छात्र गायब हो गए. उन्होंने शुरुआती दौर में ही पढ़ाई छोड़ दी. ऐसे में संयुक्त प्रवेश परीक्षा परिषद की ओर से एक फरवरी 2021 को एक पत्र जारी किया गया. इसमें सभी शिक्षण संस्थानों को खाली सीट पर प्रवेश लेने की छूट दी गई.
संस्थाओं में अध्ययनरत ऐसे पंजीकृत या अपंजीकृत सभी छात्र-छात्राओं के प्रवेश अर्थदंड 1000 रुपये प्रति छात्र की दर से लेते हुए प्रवेश परीक्षा परिषद में पंजीकरण एवं विनियमित किया जाएगा. यह आदेश तत्कालीन प्रभारी सचिव सुरेंद्र सिंह के हस्ताक्षर से जारी किया गया. इस आदेश के आधार पर संस्थाओं से करीब 8000 छात्र-छात्राओं का ब्योरा परिषद में भेजा गया. शुल्क भी जमा कराया गया.