लखनऊ : वह सुल्तानपुर, वाराणसी और लखनऊ में करीब बीस वर्ष पुलिस की नौकरी कर चुका है. उसने क्राइम ब्रांच में रहकर अपराधियों की एक-एक गतिविधियों पर नजर रखी, सर्विलांस के हर गुण सीखे और अपराधियों को पकड़ने की हर तकनीकी पर काम किया और फिर बन गया राजधानी पुलिस के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द. इस सिपाही पर आरोप है कि उसने एक बेकसूर बुजुर्ग को उसके ही बेटे की हत्या की साजिश रचने का आरोपी बनाया. फिर सिपाही पर आजमगढ़ के एक व्यापारी को उठाकर लखनऊ में लूट करने का आरोप लगा. इस सिपाही को पुलिस आज तक गिरफ्तार नहीं कर सकी. इससे पहले बर्खास्त सिपाही ने बुर्का पहनकर कोर्ट में सरेंडर किया था. आइए जानते हैं उसी शातिर बर्खास्त सिपाही की कहानी, जो पड़ रहा है अपने ही विभाग पर भारी.
जेल में बंद अपराधी का खेवनहार बना, बुजुर्ग को बनाया बेटे का हत्यारा
16 अक्टूबर 2013, लखनऊ के सआदतगंज में रहने वाले आयुष साहू की हत्या कर दी गई. यह हत्या अकील नाम के एक अपराधी ने करवाई थी, पुलिस की जांच शुरू हुई और अपराधी अकील तक पुलिस पहुंचने वाली थी, इसी बीच अकील का खेवनहार बना वर्ष 1998 बैच का क्राइम ब्रांच में तैनात सिपाही धीरेंद्र यादव. अकील ने सिपाही धीरेंद्र यादव को अपने साथ मिलाया और रच डाली एक ऐसी साजिश, जिसका राज खुलने पर पुलिस महकमे के सभी अधिकारी हैरान रह गए थे. सिपाही धीरेंद्र यादव ने आयुष की हत्या के मामले में एक एफआईआर दर्ज करवाई और इसमें आयुष के पिता श्रवण साहू को मुख्य साजिशकर्ता बताया गया. इतना ही नहीं इस मामले में क्राइम ब्रांच ने राजधानी के पारा थाने की मदद से चार मासूमों को जेल भी भिजवा दिया. जिसके बाद तत्कालीन एसएसपी लखनऊ मंजिल सैनी ने धीरेंद्र यादव को पुलिस सेवा से बर्खास्त कर दिया और उसके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज करवाया गया, लेकिन गिरफ्तार नहीं कर सकी.
दो वर्ष फरारी के बाद फिल्मी स्टाइल में बुर्का पहन किया सरेंडर
धीरेंद्र यादव, जो पुलिस की हर गतिविधियों की जानकारी रखता था. क्राइम ब्रांच में लंबे वर्षों तक काम करने के चलते उसका मुखबिर तंत्र मजबूत था और कैसे सर्विलांस से बचना है उसके हर पैतरों से वाकिफ था वह दो वर्षों तक पुलिस की गिरफ्त से मीलों दूर रहा, हालांकि धीरेंद्र यादव खुलकर बैटिंग करना चाहता था ऐसे में उसने एक बार जेल जाना ही ठीक समझा. लिहाजा मार्च 2019 को उसने फिल्मी स्टाइल में लखनऊ कोर्ट में एंट्री ली व बुर्का पहन खुद को सरेंडर कर दिया. पुलिस को कानों कान खबर नहीं लग सकी. सात माह बाद धीरेंद्र जेल से रिहा हुआ.
बर्खास्त सिपाही पर एक और अपराध करने का आरोप
कई वर्ष बाद एक बार फिर यूपी पुलिस का बर्खास्त सिपाही लखनऊ पुलिस के लिए चुनौती बन गया. इस बार भी इस सिपाही ने पुलिसकर्मियों और मुखबिरों का तंत्र बनाया और रच डाली 250 किलोमीटर दूर मौजूद एक कपड़ा व्यापारी के अपहरण की साजिश. 29 नवंबर 2023 को आजमगढ़ के भोगनवाला निवासी कपड़ा व्यापारी इस्तियाक को कुछ लोग खुद को क्राइम ब्रांच का बताकर राजधानी के निरालानगर स्थित होटल ले आए. इस्तियाक को आजमगढ़ से अपहरण कर लाने वालों में हसनगंज थाने में तैनात दरोगा अनुराग द्विवेदी, सिपाही यूसुफ, पुलिस का मुखबिर शेखर, हिस्ट्रीशीटर दिनेश गुप्ता और नसीम शामिल थे, हालांकि इस पूरी साजिश को रचने वाला वही बर्खास्त सिपाही धीरेंद्र यादव था. इन सभी ने व्यापारी इस्तियाक से होटल में लूटपाट की और उसे भगा दिया. पीड़ित हसनगंज थाने पहुंचा जहां से उसे भगा दिया गया. इसी दौरान पैसों को लेकर धीरेंद्र यादव और मुखबिर शेखर में झगड़ा हुआ और फिर इस पूरे मामले की पोल खुल गई. इस बार फिर एक दरोगा और सिपाही के खिलाफ एफआईआर हुई, धीरेंद्र यादव को भी आरोपी बनाया गया. पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन बर्खास्त सिपाही धीरेंद्र फिर से गायब हो गया.