शिमला:हिन्दू धर्म में हर पर्व और त्यौहार का अलग महत्व है, लेकिन दो पर्व ऐसे होते हैं, जिनसे सनातन धर्म में वर्ष भर के शुभ और मांगलिक कार्यों के लिए शुभ और अशुभ समयावधि को निर्धारित किया जाता है. ये पर्व हैं देवशयनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी. आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है तथा कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव उठनी या फिर प्रबोधनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. प्रत्येक वर्ष देवशयनी एकादशी के बाद से सभी मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है, तो वहीं दूसरी ओर देवोत्थान एकादशी के बाद शुभ और मांगलिक कार्यों का दौर शुरू हो जाता है. इसलिए हिन्दू पंचांग के अनुसार इस दिन को विशेष माना जाता है.
मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री हरि विष्णु आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को क्षीरसागर में विश्राम करने के लिए चले जाते हैं. श्री हरि विष्णु लगभग चार माह तक योग निद्रा में विश्राम करने के बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात देवोत्थान एकादशी के दिन निद्रा से जागते हैं. भगवान श्री हरि विष्णु के योग निद्रा से जागने के बाद ही शुभ और मांगलिक कार्यक्रम जैसे मुंडन, शादी, नामकरण आदि शुरू हो जाते हैं
देवउठनी एकादशी में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं
भगवान विष्णु को समर्पित एकादशी व्रत में केला, आम, अंगूर आदि के साथ सूखे मेवे जैसे बादाम, पिस्ता आदि का सेवन किया जा सकता है। इसके अलावा सभी प्रकार फल, चीनी, कुट्टू, आलू, साबूदाना, शकरकंद, जैतून, नारियल, दूध, बादाम, अदरक, काली मिर्च, सेंधा नमक आदि का सेवन किया जा सकता है।
महत्वपूर्ण समय
व्रत- देवउत्थान एकादशी
दिन- सोमवार, 15 नवंबर
सूर्योदय- सुबह 06:20 बजे